मालदीव का संकट और भारत

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दुलीचन्द रमन
हिन्द महासागर में स्थित छोटे-छोटे द्वीपों से बना देश मालदीव आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। मालदीव अन्दर ही अन्दर सुलग रहा था लेकिन घर से बाहर धुंआ तब दिखाई देने लगा जब उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश अब्दुल्ला सईद ने भ्रष्टाचार और आंतकवाद के आरोपों में कैद राजनीतिक बंदियों की रिहाई के निर्देश वर्तमान सरकार को दे दिये।
उच्चतम न्यायालय का यह आदेश महज राजनैतिक बंदियों को छोड़ देने तक सीमित नहीं था अपितु इसके परिणाम दूरगामी होगें। ंराजनीतिक बंदियों में पूर्व राष्ट्रपति नशीद, सत्ताधारी दल के कुछ असंतुष्ट भी थे। इससे राष्ट्रपति यामीन की सरकार अल्पमत में आ जाती। पूर्व राष्ट्रपति नशीद जो वर्तमान में विदेश में निर्वासित जीवन बिता रहे है उनकी भी घर-वापिसी का रास्ता साफ हो जाता। लेकिन वर्तमान राष्ट्रपति यामीन इस प्रकार का घटनाक्रम नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने मालदीव में 15 दिनों के लिए आपातकाल थोप दिया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश अब्दुल्ला सईद और एक अन्य जज अली हमीद को भी जेल में डाल दिया गया। पुलिस प्रशासन के भी वरिष्ठ अधिकारियों को अपदस्थ कर दिया गया। किसी भी देश में संवैधानिक संस्था उच्चतम न्यायालय के आदेशों की सत्ताधारी नेता द्वारा अवहेलना का सीधा सा मतलब तानाशाही की तरह जाता है।
उपरोक्त संदर्भ में तो यह मामला किसी देश का अंदरूनी मामला लगता है। लेकिन मालदीव में जो घटनाक्रम चल रहा है उसकी पटकथा चीन द्वारा लिखी जा रही है। भारत के संबंध कभी इस पड़ोसी देश के साथ मित्रतापूर्ण थे। लेकिन आजकल मालदीव चीन की गोद में बैठा है। सार्क के सदस्य मालदीव ने पिछले ही दिनों चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है। मालदीव की वर्तमान सरकार भारतीय हितों को चोट पहुँचा रही है और यह सब चीन के इशारे पर हो रहा है। पूर्व में भारतीय कंपनी जी.एम.आर. द्वारा राजधानी माले में जो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया जा रहा था उसके निर्माण का ठेका वर्तमान सरकार ने भारतीय कंपनी से छीनकर चीन की कंपनी को दे दिया। चीन मालदीव में निवेश के नाम पर वहां के सत्ता-प्रतिष्ठान को प्रभावित करने की स्थिति में पंहुँच गया है।
ऐतिहासिक रूप से भारत के मालदीव के साथ दोस्ताना संबंध रहे है। 1988 में जब तात्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद ग्यूम की सरकार का तख्ता-पलट की कोशिश हुई थी तो भारतीय सेना ने ‘ओपरेशन कैक्टस’ के तहत कार्यवाही करते हुए उसे नाकाम कर दिया था। 2014 में ‘आपरेशन नीर’ के तहत मालदीव को त्वरित तौर पर पीने के पानी की सप्लाई कर मालदीव को जल-संकट से उबारा था।
मालदीव की जनता पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद ग्यूम, बिट्रेन में निर्वाचित पूर्व राष्ट्रपति नशीद भारत हितैषी माने जाते है। मालदीव की वर्तमान सरकार के रूख को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक मालदीव की यात्रा को स्थगित रखा हुआ है।
राष्ट्रपति यामीन के आपातकाल थोपने के निर्णय का विश्वस्तर पर विरोध हो रहा है। राष्ट्रपति ने अपने दूत चीन, पाकिस्तान तथा सऊदी-अरब जैसे देशों में भेजे जिससे उसकी राजनीतिक व रणनीतिक मंशा समझी जा सकती है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी ने इस विषय पर टेलीफोन पर मंत्रणा की है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति भारत से बार-बार सैन्य हस्तक्षेप की मांग कर रहे है। जबकि चीन बार-बार इस बात को दोहरा रहा है कि यह मालदीव का आंतरिक मामला है तथा मालदीव की संप्रभुता का सम्मान होना चाहिए।
चीन के अपने हित है वह चाहता है कि मालदीव में उसकी कठपुतली सरकार बनी रहे। ताकि वह मालदीव की सरकार से अपने मनचाहे कानून पास करवा सके। चीन मालदीव के किसी द्वीप को स्थायी रूप से खरीदकर वहां अपना सैनिक अड्डा बनाना चाहता है। चीन का दबदबा मालदीव में कितना बढ़ गया है इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मालदीव पहुँचने वाले कुल पर्यटकों में 90 प्रतिशत चीनी होते है तथा मालदीव की अर्थव्यवस्था का एक तिहाई हिस्सा पर्यटन से ही आता है। वर्ष 2011 से पहले मालदीव में चीन का दूतावास तक नहीं था। बाद में हिन्द महासागर में मालदीव के रणनीतिक महत्व को देखते हुए चीन ने निवेश के नाम पर अपनी विस्तारवादी गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर दिया। भारत के लिए एक अन्य खतरा यह भी है कि मालदीव इस्लामी कट्टरवाद का अड्डा बनता जा रहा है। मालदीव के करीब 200 नागरिक अंतर्राष्ट्रीय आंतकवादी संगठन आई.एस.आई. की तरह से लड़ने के लिए सीरिया भी गये है।
मालदीव को लेकर अभी तक मोदी सरकार ने अपने पत्ते नहीं खोले है। लेकिन कुटनीतिक प्रयासों के माध्यम से अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास शुरू कर दिया है। विदेश मंत्रालय पश्चिम के देशों अमेरिका व आसियान के देशों से लगातार संपर्क में है। भारत यह नहीं चाहेगा कि जिस प्रकार श्रीलंका ने अपनी हब्बनटोटा बंदरगाह को चीन को सौंपकर भारत के पड़ोस में परेशानी खड़ी कर दी है उसी प्रकार मालदीव में भी चीन का दबदबा बना रहेगा तो हिन्द महासागर में भारत की चुनौतियाँ बढ़ जायेगी।
वास्तव में पिछले वर्ष भारत और चीन के मध्य भूटान के डोकलाम क्षेत्र को लेकर जिस प्रकार संघर्ष की स्थिति बनी थी कमोवेश उसी प्रकार की स्थिति मालदीव में बनती नज़र आ रही है। भारत अभी तक किसी उकसावे की कार्यवाही से बच रहा है। वर्ष 1988 में जब भारत ने मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप किया था तब के हालात और आज के हालात में फर्क है। उस समय वहां के सतारूढ़ दल ने इसके लिए मदद मांगी थी लेकिन आज अगर सेना का विकल्प चुना गया तो हमारी सेना का मुकाबला मालदीव के राष्ट्रीय सुरक्षा बलों से होगा, जो रणनीतिक तौर पर सही नहीं होगा।
भारत को वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करके मालदीव की सत्ताधारी पार्टी पर अतंर्राष्ट्रीय दबाव बनाने के प्रयास करने होगें ताकि मालदीव में आपातकाल का जल्द से जल्द खात्मा हो सके तथा उच्चतम न्यायालय के जजों व राजनीतिक बंदियों की रिहाई को सुनिश्चित किया जा सके। भारत को किसी भी कीमत पर मालदीव को चीन के हाथों का खिलौना बनने से रोकना होगा। क्योंकि भारत के पड़ोस में आग लगेगी तो उसकी आंच भारत को लगना तय है।

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