मानवता का रक्षक व पोषक होने से गोवर्धन पर्व एक महान पर्व

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goverdhanमनमोहन कुमार आर्य

मनुष्य जीवन का पोषण अन्न, फल, जल व वायु सहित गोदुग्ध से होता है। इन खाद्य पदार्थों में सभी पदार्थ जड़ रूप में होते हैं। उनमें मनुष्यों व अन्य प्राणियों की तरह जीवन नहीं होता अतः इनको खाने व भक्षण करने से इन्हें कोई दुःख व पीड़ा नहीं होती। हमारे सभी खाद्य पदार्थों में गोदुग्ध का विशेष महत्व है। यह सन्तान के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु पर्यन्त हमें निरोग, बलवान और हमारी बुद्धि को उत्तम बनाता है। गोदुग्ध के विकल्प संसार में प्रायः नहीं है। हमें तो लगता है जब तक संसार में गाय है तभी तक इस संसार में मनुष्य आदि प्राणी हैं अन्यथा गाय के न रहने पर संसार में मनुष्यों की उपस्थिति भी समाप्त हो जायेगी। गो माता का संरक्षण व पोषण संसार के प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य व धर्म है। जिन्हें इसका बोध नहीं है, उन्हें भी गाय विषयक उपयोगिता व महत्ता का अध्ययन कर अपने ज्ञान को यथार्थ धरातल पर स्थापित करना चाहिये। हमारी दृष्टि में गाय वायु, जल तथा अन्न की तरह उपयोगी और अपरिहार्य है। यह भी वर्णन कर दें कि देशी नस्ल के गाय के गुण जर्सी व दूसरी गायों में नहीं होते। अतः दुग्धपान के लिए देशी गाय का दुग्ध ही सर्वोत्तम होता है। इसलिए देशी गाय के संरक्षण एवं पोषण के लिए विशेष कार्य किये की आवश्यकता है।

हमारे देश व संसार में अनेक पर्व व दिवस मनायें जाते हैं एवं महापुरुषों की जयन्तियां मना कर उन्हें श्रद्धांजलियां दी जाती हैं। जल संरक्षण दिवस, महिला दिवस, पर्यावरण दिवस, सेना दिवस, टैक्नोलोजी दिवस, दीवाली, होली, दशहरा आदि पर्व, इन दिवसों की महत्ता को ध्यान में रखकर ही मनाये जाते हैं। सब मत-मतान्तरों को अपने अपने पर्व व दिवस प्रिय होते हैं। संसार में सम्भवतः वैदिक आर्य हिन्दू धर्म ही ऐसा है कि जिसमें वर्ष में एक दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस पर ‘गोवर्धन पर्व’ मनायें जाने की परम्परा है। गोवर्धन अथवा गो संवर्धन का मनुष्यों के जीवन में सुख व शान्ति बनाये रखने में महत्व है। इसी कारण इस पर्व को मनाया जाता है। गाय भोजन के नाम पर घास खाती है जो कि मनुष्यों के किसी काम की नहीं होती। परमात्मा ने सृष्टि में घास व पशुओं का चारा प्रचुर मात्रा में स्वयं ही उत्पन्न किया हुआ है। इसे मनुष्यों के अन्नादि आहारों की तरह किसानों को बोना नहीं पड़ता। इसके विपरीत पशुओं का चारा अपने आप उत्पन्न होता है और वर्ष भर सर्वत्र सुलभ होता है। घास खाकर गाय हमें अमृत के समान व अमृत ही दुग्ध के रूप में देती है जिससे हमारी क्षुधा शान्त होती है, शरीर में वृद्धि होती है, बल मिलता है, स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है तथा शरीर सुन्दर व सुडौल होता है। गोदुग्ध का सेवन करने से आयु में वृद्धि भी होती है। इसके साथ ही गाय से हमें खेती करने के लिए बैल मिलते हैं जो हल में जुत कर किसानों द्वारा खेती करके प्रचुर मात्रा में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खाद्यान्न उत्पन्न करते हैं। गाय व बैल का चर्म भी उनके मरने पर हमारे पैरों की कांटे, कठोर भूमि व सर्दी से रक्षा करता है। गोदुग्ध पीने वाला मनुष्य बहुत कम रोगी होता है। पर्यावरण के संरक्षण में भी गाय का महत्व है। अनुसंधान के आधार पर यह तथ्य भी सामने आया है कि एक तोला गोघृत से हवन करने से एक टन वायु का शोधन व सुधार होता है। प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ गीता में भी यज्ञ से बादल उत्पन्न होने, उससे वर्षा होने, वर्षा से अन्न उत्पन्न होने और अन्न खा कर मनुष्यों का जन्म होने की बात कही गई है। गोघृत से अग्निहोत्र करने से पर्यावरण शुद्धि सहित अनेकानेक अन्य लाभ भी होते हैं। गोदुग्ध व गोबर रेडियों धर्मिता से भी रक्षा करता है। गोदुग्ध सर्पदंश में सर्पविष के निवारण में भी उपयोगी होता है। अतः गायों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने, उनके पालन व रक्षण करने, उसके दुग्ध की गुणवत्ता में सुधार करने, उसे निवास की अच्छी परिस्थितियां प्रदान करने व अच्छा चारा खिलाने व गोपालन करने का संकल्प व व्रत लेने का पर्व है। इन कार्यों को करने से हानि किसी की नहीं होती अपितु सभी का लाभ होता है। दुःख है कि बहुत से बुद्धिजीवी गाय के इन उपकारों का बदला उसका पालन व रक्षा न कर उसकी हत्या करने-कराने व उसका मांस खाने के लिए भी करते हैं। वेदों व वैदिक साहित्य में गो को ‘अघ्न्या’ अर्थात् जिसको वध करना घोर पाप है अर्थात् जो अवध्य है, बताया गया है। यह वेदों की वा ईश्वर की स्पष्ट आज्ञा है। जो इसकी अवहेलना करता है वह अकर्तव्य करने से महापापी होता है। गाय के इन व अनेकानेक अन्य गुंणों के कारण गाय को विश्व की माता ‘गो विश्वस्य मातरः’ भी कहा गया है। हमारा यह भी अनुमान है कि जो मनुष्य सारा जीवन अच्छी नस्ल की देशी गाय का दुग्ध पीता है, उसको कैंसर सहित अन्य अनेकानेक भयंकर रोग नहीं होते। यदि हों भी तो वह अपवाद स्वरूप व नगण्य ही होते हैं। इसका कारण यह है कि गाय का दुग्ध अमृत होने से सभी रोगों की औषधि भी है। अतः गाय को अपनी माता के समान मानकर सभी को इसकी रक्षा व पूजा करनी चाहिये।

महर्षि दयानन्द ने गोरक्षा व गोपालन के महत्व को दर्शाने वाली लघु पुस्तिका ‘‘गोकरूणानिधि” लिखी है जो गाय के महत्व पर अपने समय व आज की भी एक अन्यतम पुस्तक है। महर्षि दयानन्द में ज्ञान की पराकाष्ठा थी। उनके इस ज्ञान ने ही उन्हें गाय माता का अपूर्व भक्त बनाया था। इस पुस्तक में महर्षि दयानन्द ने आर्थिक आधार पर भी गाय से होने वाले लाभों की चर्चा करते हुए बताया है कि एक गाय की एक पीढ़ी से 4,10,440 व्यक्ति एक बार के भर पेट भोजन से तृप्त होते हैं। इस पर यदि गाय की पीढ़ी-पर-पीढ़ी से होने वाले दुग्ध व बैलों से होने वाले कृषि के अन्न की गणना करें तो असंख्य प्राणियों को भोजन का लाभ एक गाय की अनेक पीढ़ियों से होता है। इतना ही नहीं स्वामी दयानन्द जी लिखते हैं कि जितने आरोग्यकारक और बुद्धिवर्धक आदि गुण गाय के दुग्ध से होते हैं, उतने भैंस के दूध और भैंसे आदि से नहीं हो सकते। इसलिए आर्यों ने गाय को सर्वोत्तम पशु माना है। हम यह समझते हैं कि महर्षि दयानन्द ने जो गणना की है वह गणित के नियमों से पुष्ट होने के कारण भ्रान्तिरहित एवं सर्वमान्य तथ्य है। इस पर भी यदि भारत या इसके किसी राज्य किंवा विश्व के किसी देश में मांसाहार के लिए गोहत्या होती है तो वह मानवीय गुणों अंहिसा, दया, करूणा, प्रेम, स्नेह, उदारता, कृतज्ञता आदि के विरूद्ध होने से घोर अन्यायपूर्ण कार्य है। महर्षि दयानन्द ने यह भी लिखा है कि एक गाय की अनेक पीढ़ियों से असंख्य लोगों का पालन होता है वहीं एक गाय को काट कर खाने से अधिक से अधिक 80 लोग एक बार में तृप्त हो सकते हैं। ‘‘देखों ! तुच्छ लाभ के लिए लाखों प्राणियों को मार असंख्य मनुष्यों की हानि करना महापाप क्यों नहीं?’’

गोकरूणानिधि पुस्तक में महर्षि दयानन्द ने गाय से इतर बकरी का उल्लेख कर लिखा है कि एक बकरी की एक पीढ़ी से 25,920 लोगों का एक समय का पर्याप्त भोजन होता है तथा इसकी पीढ़ी-पर-पीढ़ी के हिसाब से असंख्य लोगों का पालन होता है।  हम यहां महर्षि दयानन्द के कुछ बहुत ही उपयोगी विचारों को प्रस्तुत कर रहें हैं जिससे उनकी भावना का ज्ञान पाठकों हो सके। वह लिखते हैं कि ‘जैसे ऊंट- ऊंटनी से लाभ होते हैं, वैसे ही घोड़े-घोड़ी और हाथी आदि से अधिक कार्य सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार सुअर, कुत्ता, मुर्गा, मुर्गी और मोर आदि पक्षियों से भी अनेक उपकार होते हैं। जो मनुष्य हिरन और सिंह आदि पशु और मोर आदि पक्षियों से भी उपकार लेना चाहें तो ले सकते हैं, परन्तु सबकी रक्षा उत्तरोत्तर समयानुकूल होवेगी। वर्त्तमान में परमोपकारक गो की रक्षा में मुख्य तात्पर्य है। दो ही प्रकार से मनुष्य आदि का प्राणरक्षण, जीवन, सुख, विद्या, बल और पुरूषार्थ आदि की वृद्धि होती है–एक अन्नपान, दूसरा आच्छादन। इनमें से प्रथम के बिना तो सर्वथा प्रलय और दूसरे के बिना अनेक प्रकार की पीड़ा प्राप्त होती है।

देखिए, जो पशु निःसार घास-तृण, पत्ते, फल-फूल आदि खावें और दूध आदि अमृतरूपी रत्न देवें, हल-गाड़ी आदि में चलके अनेकविध अन्न आदि उत्पन्न कर, सबके बुद्धि, बल, पराक्रम को बढ़ाके नीरोगता करें, पुत्र-पुत्री और मित्र आदि के समान मनुष्यों के साथ विश्वास और प्रेम करें, जहां बांधे वहां बंधे रहें, जिधर चलावें उधर चलें, जहां से हटावें वहां से हट जावें, देखने और बुलाने पर समीप चले आवें, जब कभी व्याघ्रादि पशु वा मारनेवाले को देखें, अपनी रक्षा के लिए पालन करनेवाले के समीप दौड़कर आवें कि यह हमारी रक्षा करेगा। जिसके मरे पर चमड़ा भी कांटों आदि से रक्षा करे, जगंल में चरके अपने बच्चे और स्वामी के लिए दूध देने के नियत स्थान पर नियत समय पर चलें आवें, अपने स्वामी की रक्षा के लिए तन-मन लगावें, जिनका सर्वस्व राजा और प्रजा आदि मनुष्य के सुख के लिए है, इत्यादि शुभगुणयुक्त, सुखकारक पशुओं के गले छुरों से काटकर जो मनुष्य अपना पेट भर, सब संसार की हानि करते हैं, क्या संसार में उनसे भी अधिक कोई विश्वासघाती, अनुपकारक, दुःख देनेवाले और पापी मनुष्य होंगे?’

मनुष्य उसी को कहते हैं कि जो उपकार का बदला उपकार से देता है। यदि गाय माता हमें अपना दुग्ध प्रदान करती है तो हमारा कर्तव्य है कि हम भी उसके लिए निवास व चारे का प्रबन्घ करें। ऐसा न करके हम मनुष्य होने के स्थान पर कृतघ्न-मनुष्य सिद्ध होते हैं। गो मांसाहारी मनुष्य इस लिए भी कृतघ्न सिद्ध होते हैं कि पशुओं को यह पता होता है कि कौन उनका रक्षक व कौन भक्षक है। वनों में अब सिंह हिरणों आदि शाकाहारी प्राणियों के पास आने का प्रयास करता है तो वह तीव्र गति से उससे दूर भागते हैं परन्तु गाय आदि सभी शाकाहारी पशु मनुष्य को देखकर भागते नहीं अपितु उसके समीप आते हैं। इससे सिद्ध होता है ईश्वर द्वारा पशुओं को स्वाभाविक ज्ञान दिया गया है जिसके अनुसार उन्हें यह ज्ञान है कि मनुष्य उनका भक्षक नहीं अपितु रक्षक है। अतः मांस खाने के लिए गाय आदि पशुओं की हत्या न तो मनुष्य का कर्तव्य है और न ही गोमांस भक्ष्य पदार्थ है। यह वर्जित एवं निन्दित अनष्टि भोजन है। ऐसा होने पर भी देश व विश्व में निर्दोष व उपकारी गायों की हत्या मांसाहार के लिए की जाती है जो अत्यन्त दुःखद है।

वर्तमान परिस्थितियों में गोरक्षकों, पशुप्रेमियों और मानवतावादियों को गोवर्धन पर्व के दिन गोरक्षा करने, गोहत्या न होने देने, गोपालन करने, गोदुग्ध का ही सेवन करने व गोहत्या के विरोध में प्राणपण से प्रचार करने का प्रण व संकल्प लेना चाहिये। इसी में इस पर्व की सार्थकता है और ऐसा करके ही विश्व में मनुष्यता स्थापित होगी और विश्व सुरक्षित रह सकेगा। हम यह भी अनुभव करते है कि गोरक्षा करना प्रत्येक गोभक्त का जन्म सिद्ध मौलिक अधिकार है। ओ३म् शम्।

 

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