डा. राधे श्याम द्विवेदी
जन्मगत विकारः-
कभी कभी बच्चों में गंभीर शारीरिक या मानसिक विकृति जन्मजात ही देखन को मिल जाती है। कुछ शारिरिक विकृति प्रायः प्रारम्भ में ही दिख जाती है। कुछ की जानकारी माता पिता या अभिभावक को बहुत बाद में मालूम होती है। गर्भावस्था मे औषधियों का प्रयोग भी बहुत सावधानी से करना चाहिए। एलोपौथी की पद्धति में यह बात स्पष्ट रूप से बतायी गयी है कि दूध पिलाते समय इन दवाइयों का प्रयोग वर्जित है। लेकिन कुछ एलोपैथी डाक्टर इन नियमों का पालन नहीं करवाते हैं और अपनी इच्छानुसार परामर्श देते है। मरीजों को तकनीकी जानकारी नहीं रहती हैं। इस कारण बच्चों में विकलांगता या मानसिक विकृति की घटना व केस हो जाते हैं।
मानसिक विकृतियां कुछ समय बीतने के बाद ही जानकारी में आती है जैसे – अविकसित मस्तिष्क , मंद बुद्धि या फिर विछिप्तता आदि। विकलंगता से प्रभावित कुछ बच्चों का आंशिक या पूर्ण उपचार संभव होता है। कुछ विकलांगता तो चिकित्सक के सामथ्र्य से परे भी होता है। प्रकति के मार से पीड़ित इन बच्चों व इनके माता पिता को इन्हें संभालने के के कारण इनका अपना जीवन भी कष्टप्रद हो जाता है। इस प्रकार के बच्चों के उपचार में अपना तन मन धन सब कुछ लुटा कर भी वे यथा संभव सामान्य जीवन जीने योग्य बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। उस समय बहुत कष्टकर हो जाता है जब किसी किसी परिस्थिति में उपचार संभव नहीं होता हैं। अथवा माता पिता के सामथ्र्य से ही बाहर हो जाता है। कुछ ही एसे मामले होते है कि शारीरिक विकलांगता प्रायः दूर हो जाती है या यथासंभव उस बच्चे को आत्म निर्भर बनाया जा सकता है।
शारीरिक विकलांगता में दृष्टिहीनों, मूकवधिरों या फिर हाथ पैरों की विकलांगता से पीड़ित बच्चों के लिए तो व्यवस्थायें हैं। परन्तु अभिशप्त बच्चों के लिए कुछ व्यवस्थायें नहीं होती है। सरकार द्वारा स्थापित किये गये पुनर्वास केन्द्र में भ्रष्टाचार ज्यादा होता है। कुछ निजी संस्थाओं से चलाये जाने वाले संस्थान या केन्द्र जो देश में हैं वह बहुत मंहगे होते हैं। सामान्य आय वर्ग के लोग इसका खर्चा उठा ही नहीं सकते है।
इस प्रकार के बच्चे शारीरिक श्रम नहीं नहीं करते है। उनका मस्तिष्क स्थिर सा रहता है। शरीर तो निरन्तर बढता ही जाता है। उनका आयु बढने से तमाम अन्य रोग भी परेशान करते हैं। यदि समय रहते यथा संभव उपचार इन बच्चों को मिले तो कुछ सीमा तक उसमें सुधार लाया जा सकता है। इसी प्रकार कुछ एसे केन्द्र, जो समाज सेवा की ही भावना से सम्पन्न लोग चलायें तो वहां एसे बच्चों की सामाजिकता में सुधार किया जा सकता है।
परिवेशगत विकारः-
सामान्यतः कोई बच्चा अपने परिवेश के अनुसार ही अपना विकास करता है। यदि वह जन्म के तुरन्त बाद से या जब वह संभलने लायक हो जाय तबसे जानवरों के बीच रहने लगे तो वह उसी की तरह आदतें व व्यवहार करने लगता है। इसे पुनः ट्रैक पर लाने के लिए प्यार व सामाजिक व्यवहार से जीने लायक तो बनाया जा सकता है, किन्तु इसका सामान्य विकास घरों व समाज में पलने वाले बच्चों की तरह नहीं बन सकता है। बालपन में रहने व मानव व्यवहार सामान्य तौर पर ना पाने के कारण उसका स्वाभाविक विकास अवरूद्ध हो जाता है। वह अपने हमउम्र के अन्य बालकों से बिलकुल अलग ही दिखने लगते हैं । इस प्रकार के बच्चे यदि जंगल में जानवरों के संग पड़ जाते हैं तो बिलकुल अलग ही व्यवहार एवं आचरण वाले बन जाते है। उनका जानवरों जैसा ही विकास होने लगता है। वे उसी तरह का आचरण करने लगते हैं। वे आम बालक बालिकाओं जैसा ना होकर ताउम्र आसामान्य ही रहते हैं।
मानव विज्ञानी एवं समाजशास्त्री इन आसामान्य बच्चों का पालन उनकी जरूरत के अनुरूप अलग तरह से करते है। इन्हें पूर्णरूपेण बिलकुल अलग भी नहीं रखा जाना चाहिए । इन्हें आम मानव में घुलने व मिलजुल कर रहने के लिए खास निरीक्षकों व सहायको की मदद से तैयार किया जाता है। मानव जहां बुद्धिजीवी होने के कारण अपना भरण पोषण करने में सक्षम होता है। वहीं वह अन्य पशुपक्षियों की भी भली भांति रक्षा कर सकता है। इतना ही नहीं एसे भी उदाहरण मिले हैं कि मानव इन प्राकृतिक पशुपक्षियों के बीच रह भी लेता हैं औेर सुरक्षित भी रहता है। प्राचीन समय में जंगलों में जानवर व आदमी एक ही जगह पर विना किसी वैर भाव के रहते देखे व सुने गये हैं। परन्तु उनका विकास एक सा ना होकर अपने वंशानुगत गुणों के अनुरूप ही देखा गया है।
जब कोई बालक जन्म लेता है तो सर्वप्रथम अपनी मां के दूध के सहारे जीता है और उसके ही सानिध्य में पलता हैं। इसके बाद वह अपने परिवार तथा वाद में अपने वातावरण के अनुकूल स्वयं को ढालता हैं और तदनुरूप उसका पालन पोषण होता है। उसे एक अनुकूल सामाजिक वातावरण में सुरक्षित रहने व अपना प्रारम्भिक विकास करने का अवसर प्राप्त होता है। यदि माता पिता में किसी का अभाव होता हैं तो उसका सर्वांगीण विकास न होकर आधा अधूरा विकास होता है। परित्यक्त वच्चे प्रतिकूल परिस्थितियों में आसामान्य आचरण करने लगते है। यदि इन्हें उचित वातावरण नहीं मिला तो वे जानवरों जैसे तथा जड़वत हो जाते हैं। यह भी देखा गया है कि किसी समय में मानव भी जानवरों जैसा ही आचरण करता था और भोजन आहार भी उसी तरह करता था, परन्तु चूंकि उसमें संवेदनाये, सोचने की क्षमता और अनुभव आदि अपेक्षाकृत ज्यादा था। इस कारण वह सबका नियन्ता बन, सबका संचालन भी करने लगा है।
समय समय पर एसी घटनाये प्रकाश में आती हैं जो सामान्य जीवन प्रक्रिया से अलग देखी गयी है। समाचार पत्रों में इस प्रकार के घटनायें प्रकट हुई हैं । कुछ बच्चों का पालन उसके मां बाप व समाज से न होकर किसी लापरवाही या संयोग से जंगली जानवरों तेंदुआ, शेर, भेड़िया, भालू, बकरी , चिकार, बन्दर, कुत्ता, विल्ली, चिड़िया, मगरमच्छ, आदि हर प्रजाति में इनका जाना देखा गया है। बन्दर व भेड़िये में ममता का ज्यादा भाव देखा गया है। मानव के पूर्वजों में जो आनुवंसिक गुण रहे उन्ही तत्वों की सक्रियता से जंगली पशु मानव के आपात्काल में सहायक व संपूरक देखे गये है। रूडियार्ड किपलिंक की ’जंगल बुक’ में मोगली की कहानी भी इसी प्रकार की हैं। उस बालक का जंगल के जानवरों ने पालन किया था।
इस श्रृंखला में मैने उपलब्ध दो दर्जन आसामान्य बच्चों का अध्ययन व परिचय प्रस्तुत किया। इन सबको बचपन में कोई जानवर उठा ले गया था या इन्हे घरवालों ने छोड़ दिया था। बाद में ये पुनः मानवों के बीच आये और उन लोगों का एक अलग ही अन्दाज में पालन किया गया। कुछ तो काम चलाऊ जीने लायक तो बन गये और कुछ अपने वातावरण को अनुकूल ना ढ़ाल पाने के कारण समय से पूर्व ही काल कवलित हो गये। अप्राकृतिक रूप ये पालने वाले ये संरक्षक इन बच्चों की परवरिश मानव जैसा तो कर नहीं सकते, पर जीने के योग्य उन्हें बनाकर ही रखतेे थे। उनके ममता में कहीं कोई कमी तो दीखती नहीं है।
भेड़ियों द्वारा पले बच्चे
1.रामलस और रेमूज दो लड़कियां भी रोम में भेड़ियों द्वारा उठा लीे गयीं। उन्हें खुखार भेड़िनियों ने अपने बीच रखकर उनका देख भाल कीं थी। वे अपना दूध पिलाई। अपने साथ रखी। यह कहानी कल्पित मात्र नहीं हो सकती है।
2.भारत के आगरा में दीना शनीचर बालक का पालन पोषण इसाई अनाथालय में हुआ था। उसे बुलन्दशहर के जंगलों से 1867 में पकड़कर आगरा लाकर ंपाला गया था। यह थोड़ा समझदार हो गया था। इसने अपनी 35 साल की जिन्दगी जी थी। एक दूसरा बालक मैनपुरी से लाया गया था और वह 4 माह ही जी सका था।
3.इसी प्रकार 1920 में मिदनापुर प. वंगाल में अमला व कमलााओं का पालन पोषण, इसाई अनाथालय में हुआ था। इनमें अमला 18 माह में पकड़ में आगई थी। यह लगभग एक साल जीवित रही। गुर्दे के संक्रममण की बीमारी से इसकी जल्द मृत्यु हो गयी थी। कमला लगभग 5 साल जीकर काम चलाउ आदतें सीख चुकी थी।
4.श्यामदेव नामक बालक को सुल्तानपुर के जंगल से 1972 में खोजा गया था। इसे भेड़िया े पाल रहा था। बाहर पालने में दिक्कत आने पर 1978 में मदर टेरेसा के आश्रम में भर्ती कर दिया गया। 1985 में लखनऊ में इसकी मृत्यु हो गई। इसने कभी भी मानव के गुण सीख नहीं पाया।
2.बकरी द्वारा पले बच्चे:-
डैनियल एंडीज बकरियों के साथ रहने वाली लड़की पेरू में 1990 में मिली थी । यह 4 साल की थी तब खो गयाी थी इसने 8 साल जंगल में विताये थे। 12 वर्ष की उम्र में यह पकड़ में आई थी। इसने कोई भी मानवीय संवेदनायें नहीं सीख सकी थी।
3.चिकारा द्वारा पले बच्चे:- आठ माह का सीरियाई चिंकारा लड़का 1946 सीरिया के जंगलों में चिंकारा (कलपुंछ) द्वारा उठा लिया गया लड़का था। 9 साल जंगल में बिताने के बाद 10 वर्ष की उम्र में यह पकड़ में आया था। यह 9 साल वाहर मानव के साथ की जिन्दगी जीकर 19 वर्ष की उम्र में मृत्यु को प्राप्त हुआ था।
4.बन्दर द्वारा पले बच्चे:-
1.बेलोे नाइजीरियाई का लड़का 6 माह में ही घर द्वारा त्याग दिया गया द्व जो चिम्प या बन्दर द्वारा 1 साल तक पाला गया था। यह लड़का 1996 में मिला था । इसे मानव के बीच सुधारने के लिए 6 साल का समय लगाना पड़ा था। इसमें थेड़ा ही सुधार हो पाया था। 10 वर्ष की उम्र में इसकी मृत्यु हो गयी थी।
2.जान सिसबुनिया यूगांडा का एक बालक था जो पिता के डर व भय से घर छोड़कर भाग गया था। यह12 साल तक बन्दरों के बीच में रहा । इसे 1991 में खोजा गया था । इसमें थोड़ी मानवीय संवेदनायें आ गयी थी। यह गीत भी गा लेता था।
5.कुत्ता द्वारा पले बच्चे:-
1.ट्रायन कलन्दर रोमानिया में 4 वर्ष की उम्र में गायब हुआ था। यह 3 साल तक कुत्तों द्वारा पाला गया था। यह 7 साल के होने पर 2002 में पकड़ में आया था। यह बोलने में समर्थ नहीं हो पाया था। यद्यपि यह प्राइमरी स्कूल जाना शुरू कर दिया था।
2.ओकसाना मलाया यूक्रेन में एक डरी सहमी लडकी थी। 3 साल की उम्र में उसके माता पिता घर से निकाल दिये थे। वह 5 साल तक कुत्ते द्वारा पाली जा रही थीं। 8 साल की होने पर 1991 में उसे पकड़ा गया था। उसमें मानवीय संवेदनायें नही बन पायी थी। वह बहुत मुश्किल से बात कर पाती थी। उसे 18 साल तक बाहर मानवों के बीच रखा गया । फिर 26 साल के होने पर 2010 में मानसिक रूप से अक्षम लोगों के अस्पताल में उसे भेजा गया था। जहां वह गायों की देखभाल कर ले जाने लगीं ।
3.इवान मिशुका चार साल पर विछड़ा था। कुत्तों के पहुच से छूटने के बाद 2 साल तक बचाव दल तथा 4 साल तक अपने शुरूवाती घर में विताय थे। इसी समय उसकी मृत्यु हो गयी थी।
4.आंद्रेई साइबेरिया का 3 माह की उम्र्र में घर से छोड़ा हुआ बच्चा था । कुत्तांे के सानिध्य में वह उसके गुणों का संवाहक हो गया था। अनाथालय में पल रहे इस बालक ने कुछ गुण सीख रखे हैं।
6.जंगली पशुओं में पले बच्चे
1.रोचम पेंगिंग नामक कम्बोडियाई लड़की 8 साल की उम्र में खो गई थी। वह 10 साल तक जंगलों में अनेक जानवरों के बीच में पली थी। 19 साल की उम्र में वह 2007 में पकड़ में आयी थी । 30 साल की उम्र उसने मानवों के बीच गुजारी थी। 49 -.50 की उम्र में वह एक बार फिर घर से भागकर जंगल में गायब हो गयी थी। उसमें परिणाम सकारात्मक नहीं पाये गये।
2.पीटर वन्य बालक हनावर देश मे 12 साल की उम्र में पकड़ा गया था । इसने 68 साल की जिन्दगी गुजारी थी। वह दो तीन शब्द का उच्चारण कर पाता था।
3.नताशा साइवेरिया की एक लड़की कुत्ते व बिल्लियों के बीच में पली बढ़ी थी। इसे 5 साल की उम्र में पुनर्वास केन्द्र की निगरानी में लाया गया था। जो सकारात्मक परिणाम दिखायी है।
4.शैम्पेन देश में मिली एक लड़की जंगल में पली बढी थी। वह जंगली आदते सीख चुकी थी। इसमें कोई सुधार नहीं पाया गया।
5.विक्टर एवीरान फ्रांस के जंगलों में पला हुआ था। वह जानवर जैसे मौसम को सहने लायक बन गया था। उसे सिखाने पर कुछ सुधार देखा गया था। 40 वर्ष वह जीवित रहा।
7.चिड़ियों द्वारा पले बच्चेः- लगभग 2000 ई में जन्मा इस बालक को एक चिड़ियों के आवास के पास के बातावरण में पाले जाने के कारण उसमें सारे विकास चिड़ियों जैसे हुए थे। 8 साल की उम्र में इसे मुक्त कराया गया था। उसमें बहुत कम ही मानवीय संवेदनाये आ पायी थी।
8.भालू द्वारा पले बच्चेः-जार्ज मारानज दो साल में विछड़कर भालू के साथ 14 साल तक पला हुआ था। 16 साल की उम्र में उसे पकड़ा गया था उसमें मन्द गति से सुधार पाया गया था।
9. जिन्न लड़की:-यह कैलीफोर्निया की एक खोई हुई लड़की है। 13 साल तक कमरे में बंद रही थी। इसे थोड़ा थोड़ा सीख पायी थी।
10. तेंदुवा द्वारा पले बच्चेः-असम में 3 साल गायब रहकर तेंदुये द्वारा पलने वाला यह बालक बड़ा खूखार हो गया था। इसे जेल में डालना पड़ा था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव के प्रारम्भिक गुणों के कारण विशिष्ट परिस्थितियों में पशु ,पक्षी तथा अन्य जीव-जन्तु मानव के सहायक एवं पूरक पाये गये है। यद्यपि इनके द्वारा अपनाये गये बच्चे जीवन जीने के लायक तो बन जाते रहे है। परन्तु मानव विकास के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन के हजारों वर्षों गवाये हैं उनका मूल्य व समय का हिसाब हम जुटा सकने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं।