असली चेहरा तो नक़ाब में ही रह गया, सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी

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प्रियंका सौरभ   
अंततः विकास दुबे कानपुर वाला कानपुर में पुलिस के हाथों मारा गया। वैसे भी हर अपराधी को उसके अपराध का उचित दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। लेकिन ये दंड देश में संविधान द्वारा स्थापित कानून व्यवस्था के तहत ही मिलना चाहिए। यदि वर्तमान कानून व्यवस्था में कोई त्रुटियां हैं तो उनमें सुधार करना चाहिए, कानून को हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है।

आज विकास दुबे के विवादास्पद एनकाउंटर पर ये हज़ारों प्रश्न उठ खड़े हुए है, किसकी नाकामी है ये? अगर ऐसा ही चलता रहा और ऐसे एनकाउंटर्स को ठीक समझा जाने लगा तो, कहीं ऐसा ना हो कि लोग अपना-अपना न्याय अपने ही हाथों से सड़कों पर ना करनें लग जाएं।

गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी और उसके कुछ साथियों के एनकाउंटर पुलिस की कामयाबी नहीं है। बल्कि पुलिस और राजनीति का बहुत बड़ा गठजोड़ है, जिसको समझने लायक छोड़ा नहीं गया मगर ये पब्लिक है जनाब सब समझ लेती है। अपराधी पकड़े जाते हैं और छूट भी जाते हैं।

मगर ये घटनाक्रम  बताता है कि राजनीति में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो अपराधियों की मदद कर उनसे अपने आर्थिक और सियासी हित साधते हैं। और ये अपवित्र आपराधिक गंठजोड़  सामने आने से फिर बच गया।  दुबे के इस अंत से सबसे ज्यादा ख़ुश हैं सत्ताधारी और  विपक्षी दलों के असंख्य छोटे-बड़े नेता और जयचंद किस्म के पुलिसकर्मी जिन्हें दुबे के जीवित रहते उसके साथ अपने नापाक रिश्तों के किसी भी वक़्त बेनक़ाब होने की चिंता सता रही थी।

मगर क्या हम सब ये समझ नहीं पाए?  इस मुठभेड़ से दुबे के हाथों मारे गए सभी आठ पुलिसकर्मियों के स्वजनों-परिजनों को थोड़ी-बहुत शांति मिली होगी। मगर आम लोग बहुत दिनों तक समझ ही नहीं पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में जो हो हुआ उससे उन्हें खुश होना चाहिए या चिंतित। बहुत से सवाल हर किसी के जहन में कुलबुला रहे है। जिस व्यक्ति ने स्वयं सरेंडर किया हो क्या वो पुलिसवालो के हथियार छीन कर भागेगा?

और दूसरी बात इतने अच्छे रास्ते पर स्कार्पियो जैसी गाड़ी कैसे पलटी? बाकी किसी का पता नहीं लेकिन उस ड्राइवर के टैलेंट को सलाम करना होगा जिसने अपराधी को मारने के लिए अपनी गाड़ी पलटा दी।  तीसरी बात मीडिया को क्यों रोका गया?  ऐसा भी तो हो सकता है कि वो मुजरिम को उतारकर पहले इनकाउंटर कर बाक़ी चार -पांच आदमी मिलकर गाड़ी को पलट दिये होंगे ताकी मीडिया और पब्लिक को दिखया जा सके।

जहां तक मैं सोचती  हूँ सच तो यह है विकास दुबे अगर बच जाता तो कई मंत्री, विधायक,सांसद व अधिकारी नपते !! वो खादी और वो ख़ाकी जो विकास दूबे के कुकर्मों में संलिप्त थे उन्हें इससे राहत मिली हैं। बाक़ी ये तो पब्लिक है सब जानती है और वक़्त आने पर अपना फैसला भी सुना देती है।

किसी लीपापोती से अब कुछ नहीं होगा।  कौन क्या कह रहा है इससे तथ्य छुप नहीं सकते। वह छ: दिनों तक किनके दिशा निर्देशन में  सफ़र तय करता रहा. कोटा होता हुआ, जैसा बताया जा रहा है, कैसे यूपी से उज्जैन पहुँचा ? पुलिस में क्या दो सौ ही उसकी मिजाज़पुर्सी में लगे थे, जिन्हें सर्विलांस पर लिया गया है या और धुरंधर भी इस कृत्य में शामिल हैं।

बिना कोर्ट के आदेश के विकास दुबे का घर तोड़ डाला गया। दुबे के सभी राज़दारों का एनकाउंटर हुआ। कोई ज़िंदा नहीं पकड़ा गया, एमपी से यूपी लाने में गाड़ी भी सिर्फ वो ही पलटी जिसमें विकास दुबे था। उसे हथकड़ी भी नहीं लगाई गई थी, गाड़ी के अंदर पुलिस की पिस्तौल भी छीनी,फिर उसने भागने की कोशिश की, और उसपर जो गोली चलाई गई, वो कमर से नीचे ना लगकर ऊपर ही लगी।

ये सत्य है कि कुछ सफ़ेद लोग काले होने से बच गये। सब स्क्रिपटिड था, वरना ना जाने कितने लोगों के नाम सामने आते और उनके कपड़े उतर जाते, ना उतरते तो जनता उतार देती। वैसे यह स्थिति सुखद नहीं है। इस तरह के इनकाउंटरस ये बताते हैं कि अपराधियों को अपनी औकात समझ लेना चाहिए, उनकी गुंडागर्दी के पेशे केवल प्रशासन के अधीन ही पनप सकते है। प्रशासनिक व राजनैतिक वरद हस्त हटा तो यही हाल होना है।

खैर फिलहाल तो खुश हूं। मैं 8 पुलिसकर्मियों को आज श्रद्धांजलि दे पा रही हूँ, न मैं नेता, न माफिया, न मैं खाकी, एक आम जनता हूँ और  पता नही क्यो खुश हूँ, इसके भी कारण होंगे जरूर कुछ न कुछ। मगर अब मेरा एक सवाल मुझसे ही सवाल कर रहा है, क्या इस  हिसाब से समाज का हित और न्याय अब पुलिस और सरकार को सौंपकर न्यायापालिका पर ताला लगा देना चाहिए। इससे गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा से जूझ रहे देश मे अरबो की बचत तो होगी।

ये सच है कि विकास दुबे के इनकॉउंटर से आप ख़ुश हो सकते है,उत्तर प्रदेश पुलिस प्रसन्न होगी कि इस मुठभेड़ द्वारा उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर हासिल कर ली है। योगी जी खुश होंगे कि एक मज़बूत और दुःसाहसी शासक के तौर पर उन्होंने अपनी छवि बना ली है।  लेकिन देश मे पिछले कुछ सालों से लोकतंत्र नही रहा और आने वाले समय मे ये बहुत ख़तरनाक होगा।

मेरी विकास दुबे से कोई हमदर्दी नही है पर इस तरीके को सही नही कह सकते हम। गांधी जी के हत्यारे गोडसे को भी उस समय भीड़ मार सकती थी, या जेल में ही उसकी हत्या कराई जा सकती थी पर भारत ने दुनिया को दिखाया कि वो लोकतांत्रिक देश है।जहाँ गाँधी की हत्या करने वाले को दंड भी न्यायायिक प्रकिया के तहत दिया जाता है।

 वर्तमान दौर में न्यायपालिका ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है औऱ हमारी मीडिया उलूल-फिजूल काम कर रही है, पुलिस का हाल ये हो गया है कि वो ख़ुद अब कोर्ट बन चुकी है। सड़क पर भीड़ फैसले करती है, इनकॉउंटर का महिमांडन होता है, गाली बकने वाले प्रवक्ताओं को हम सुनते है, अपराधी को हम नेता बनाते हैं। सबको पता है कि विकास दुबे की साठगांठ नेताओं से लेकर बड़े पुलिस अधिकारियो तक थी इसलिये उसका तो मरना ही था मगर वाकईं मरकर वो बहुतों को बेदाग कर गया।


— —प्रियंका सौरभ

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