नये निजी बैंकों की प्रासंगिकता

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private banksभारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआर्इ) के द्वारा नये निजी बैंक खोलने से संबंधित अंतिम दिशा-निर्देश जारी करने के साथ ही नये निजी बैंकों को खोलने का रास्ता साफ हो गया है। अब कारपोरेटस, सरकारी क्षेत्र की इकाइयां और इकाइओं के समूह एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) पूर्ण स्वामित्व वाली गैर-परिचालित वित्तीय होलिडंग कंपनियों (एनओएफएचसी) के माध्यम से बैंक खोलने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर सकेंगे। नये बैंकों के प्रर्वतकों को एनओएफएचसी के पास 40 प्रतिशत इकिवटी पूँजी रखनी होगी, जिसे 10 साल के अंदर 20 प्रतिशत और 20 साल के अंदर घटाकर 15 प्रतिशत करना होगा। साथ ही, इस मामले में एनओएफएचसी को भारतीय रिजर्व बैंक के पास पंजीकृत भी करवाना होगा। इसके संचालन के लिए अलग से निदेशकों को नियुक्त करने का प्रावधान रखा गया है। बैंकों के निदेशक मंडल में बहुलता में स्वतंत्र निदेशक होंगे, जिनका जोर व्यावहारिक बैंकिंग योजनाओं एवं वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने की तरफ होगा। इन्हें न्यूनतम पूँजी प्रर्याप्तता 13 प्रतिशत रखना होगा। पूर्व में इसे 12 प्रतिशत रखने का प्रस्ताव था। नये बैंक को शुरु करने के लिए 500 करोड़ की न्यूनतम चुकता पूँजी होनी चाहिए। इस मामले में पहले पाँच साल में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी। अगस्त, 2011 में पेश किये गये मसौदे में भी नये बैंक शुरु करने के लिए 500 करोड़ की न्यूनतम चुकता पूँजी रखने का प्रावधान था। उक्त मसौदे में यह भी कहा गया था कि इच्छुक उम्मीदवार का कारोबार कम से कम 10 साल से चल रहा हो। साथ ही साथ उसका बेदाग होना भी आवश्यक था। अंतिम दिशा-निर्देश में भी इस शर्त को बरकरार रखा गया है। साफ-सुथरा रिकार्ड है या नहीं इसका पता लगाने के लिए केंद्रीय बैंक बैंकिंग नियामक, अन्य नियामक, प्रवर्तन एवं जाँच एजेंसियों की मदद ले सकता है। रिजर्व बैंक के द्वारा जारी दिशा-निर्देश में सबसे महत्वपूर्ण निर्देश 25 प्रतिशत शाखाओं का ग्रामीण क्षेत्रों में खोलना है। इसे इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि अभी भी शहरी आबादी वाले क्षेत्रों में बैंकों की पहुँच महज 32 प्रतिशत है और गाँवों में 18 प्रतिशत।

सूत्रों के मुताबिक नये बैंक का लाइसेंस हासिल करने की दौड़ में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कर्इ कंपनियां शामिल हैं। इच्छुक कंपनियों में आदित्य बिड़ला समूह, टाटा कैपिटल, एलआर्इसी हाउसिंग, रेलिगेयर, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा फाइनेंशियल, रिलायंस कैपिटल, एलएंडटी फाइनेंस, बजाज फिनसर्व, पोस्ट बैंक आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ध्यान देने योग्य बात है कि रिजर्व बैंक के द्वारा जारी अधिसूचना में कितने नये बैंकों को लाइसेंस दिया जाएगा, इसका खुलासा नहीं किया गया है। ध्यातव्य है कि वर्ष, 1980 से लेकर वर्ष, 2000 के बीच 10 नये निजी बैंकों को केंद्रीय बैंक ने लाइसेंस दिया था। उसके बाद पुन: वर्ष, 2001 में यस बैंक और कोटक महिन्द्रा को लाइसेंस दिया गया।

नये बैंक के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आवेदन भरने की अंतिम तिथि 1 जुलार्इ, 2013 रखी गर्इ है। उम्मीद है कि 25 फरवरी, 2013 से इच्छुक उम्मीदवारों का आवेदन रिजर्व बैंक को प्राप्त होने लगेगा। आवेदन की जाँच एक उच्च स्तरीय समिति के द्वारा की जायेगी। इस समिति में बाहर के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे, लेकिन अंतिम निर्णय लेने का अधिकार रिजर्व बैंक ने अपने पास सुरक्षित रखा है। इसके बरक्स उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री डी सुब्बाराव ने पूर्व में भी संभावित उम्मीदवारों के आवेदनों की जाँच करने के लिए एक समिति गठित करने की बात भी कही थी। लाइसेंस मिलने के एक साल के अंदर संबंधित कंपनी को अपना बैंकिंग कारोबार शुरु करना होगा। इस शर्त का अनुपालन नहीं करने की स्थिति में लाइसेंस को रद्द कर दिया जायेगा। बैंक का कारोबार आरंभ करने के तीन साल के अंदर बैंक के प्रर्वतकों को बैंक के शेयर को सूचीबद्ध करवाना होगा। इसके पहले ड्राफ्ट मसौदे में इसके लिए दो साल का समय मुर्करर किया गया था।

अंतिम नियमावली में रिजर्व बैंक ने किसी भी क्षेत्र में कार्यरत कंपनी को बैंकिंग क्षेत्र में उतरने से मना नहीं किया है। इसके पहले अगस्त, 2011 के मसौदे में रिजर्व बैंक ने रियल एस्टेट और ब्रोकिंग के कारोबार से जुड़ी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस नहीं देने का प्रावधान रखा था। इस दफा रिजर्व बैंक ने इस दिशा में चतुरार्इ से काम लिया है।

उक्त क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को सीधे तौर पर मना करने के बजाए इस संबंध में ऐसे नियम-कानून बनाये हैं, जिससे उनके लिए लाइसेंस लेना आसान नहीं होगा। गौरतलब है कि अंतिम मसौदे में यह प्रावधान रखा गया है कि प्रर्वतक समूह का कारोबार माडल बैंकिंग माडल से मिलता-जुलता होना चाहिए। साथ ही, उक्त कंपनी के कारोबार से बैंकिंग प्रणाली का जोखिम भी नहीं बढ़ना चाहिए। जानकारों का मानना है कि रिजर्व बैंक के इस नियम से रियल एस्टेट और ब्रोकरेज कंपनियों के लिए बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेष करना आसान नहीं होगा। रिजर्व बैंक के इस चालाकी को भांप कर ही देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ ने बैंकिंग क्षेत्र में उतरने से साफ तौर पर मना कर दिया है। इन दो क्षेत्रों के अतिरिक्त रिजर्व बैंक ने बड़ी समझदारी से एनबीएफसी को भी बैंकिंग क्षेत्र में उतरने से अप्रत्यक्ष रुप से मना कर दिया है। आरोपित प्रावधानों के अनुसार इस मामले में एनबीएफसी को बैंक खोलने के लिए लाइसेंस लेना मुश्किल का सबब होगा, क्योंकि रिजर्व बैंक उन्हें वैसा कारोबार करने के लिए अनुमति नहीं देगा, जो बैंकों के जरिये किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा नये निजी बैंक खोलने के लिए सर्वप्रथम फरवरी, 2010 में घोषणा की गर्इ थी। इस दिशा में अग्रतर कार्रवार्इ करते हुए अगस्त, 2010 में भारतीय रिजर्व बैंक ने परामर्श पत्र जारी किया। तदुपरांत ठीक एक साल के बाद अगस्त, 2011 में रिजर्व बैंक के द्वारा मसौदा नियमावली को प्रस्तुत किया गया। पुनष्च: बैंकिंग नियमन कानून (बीआरए) में संशोधन के मुद्दे पर वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के बीच मतैक्य के अभाव में मामला अधर में लटका रहा। भारतीय रिजर्व बैंक बैंकिंग नियमन कानून में ऐसे प्रावधानों को शामिल करना चाहता है, जिसके माध्यम से प्रस्तावित नये निजी बैंकों पर नियंत्रण रखा जा सके। निजी बैंकों को काबू में रखने के लिए जरुरी है कि उक्त बैंक के बोर्ड पर नियंत्रण रखा जाए। इस काम को बखूबी अंजाम देने के लिए चेयरमैन, प्रबंध निदेशक और दूसरे निदेशकों को उनके पद से हटाने का अधिकार रिजर्व बैंक अपने पास रखना चाहता था। ज्ञातव्य है कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम को रिजर्व बैंक का यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था। वे चाहते थे कि इन पचड़ों में पड़ने की बजाए यथाशीघ्र नये निजी बैंक खोलने के लिए रिजर्व बैंक अंतिम नियमावली पेश करे।

 

एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार घूत ने अपने एक बयान में रिजर्व बैंक द्वारा जारी नये निजी बैंकों को खोलने के दिशा-निर्देश का स्वागत करते हुए कहा है कि नये निजी बैंकों के आने से बैंकिंग सेवाओं का विस्तार होगा और बैंकों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा को प्रोत्साहन मिलेगा। बैंकिंग क्षेत्र में उतरने के लिए इच्छुक उम्मीदवार सैम घोष, जो रिलायंस कैपिटल के सीर्इओ हैं का कहना है कि रिजर्व बैंक के द्वारा जारी दिशा-निर्देश स्वागत योग्य है। रेलिगेयर के सीएमडी सुनील गोधवानी ने भी रिजर्व बैंक द्वारा जारी अधिसूचना का स्वागत किया है।

गौरतलब है लाइसेंस प्राप्त करने की होड़ में शामिल पोस्ट बैंक को यदि लाइसेंस मिलता है तो वह जरुर ग्रामीणों एवं सरकार के लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि सरकारी योजनाओं की सफलता के लिए सुदूर ग्रामीण इलाकों में बैंक शाखा का होना जरुरी है, जबकि अभी भी ग्रामीण इलाकों में प्रर्याप्त संख्या में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। जहाँ बैंक की शाखा है, वहाँ भी सभी ग्रामीण बैंक से नहीं जुड़ पाये हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल आबादी के अनुपात में 68 प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाते नहीं हंै। बीपीएल वर्ग में सिर्फ 18 प्रतिशत के पास ही बैंक खाता है। अशिक्षा व गरीबी के कारण वे बैंकों में अपना खाता खुलवाने की स्थिति में नहीं हैं। बैंक के पास प्रर्याप्त संसाधन भी नहीं है कि वह उनका खाता खुलवा सके। भले ही वित्तीय समावेषन की संकल्पना को साकार करने के लिए बैंकों में कारोबारी प्रतिनिधियों की नियुकित की गर्इ है, लेकिन विगत वर्षों में उनकी भूमिका प्रभावशाली नहीं रही है। 2008 तक बैंकों में मात्र 1.39 करोड़ ‘नो फि्रल्स खाते खोले जा सके थे। ‘नो फि्रल्स खाता का तात्पर्य शून्य राशि से खाता खोलना है। इस तरह के खाते खोलने में केवार्इसी हेतु लिए जाने वाले दस्तावेजों में रियायत दी जाती है। ग्रामीणों को बैंक से जोड़ने के लिए इस नवोन्मेशी प्रोडक्ट को सबसे महत्वपूर्ण हथियार माना जाता है। बावजूद इसके बीते सालों में रिजर्व बैंक के द्वारा लगातार कोशिष करने के बाद भी वित्तीय संकल्पना को साकार करने के मामले में कोर्इ खास प्रगति नहीं हुर्इ है।

जाहिर है पोस्ट बैंक को वित्तीय समावेषन की संकल्पना को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण विकल्प के रुप में देखा जा सकता है, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में डाकघरों की उल्लेखनीय मौजूदगी है।

31 मार्च, 2009 तक भारतीय डाकघर की पूरे देश में 155015 से अधिक शाखाएँ थीं, जोकि सभी वाणिजियक बैंकों की शाखाओं से तकरीबन दोगुना थी। उल्लेखनीय है कि इनमें से 89.76 प्रतिशत यानि 139144 शाखाएँ ग्रामीण इलाकों में थीं। दिलचस्प है कि आजादी के वक्त डाकघरों की संख्या महज 23344 थी। सरकारी प्रयासों से इसके नेटवर्क में लगातार इजाफा हो रहा है। इस मामले में डाककर्मियों की लगन व मेहनत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सुदूर ग्रामीण इलाकों में डाकघरों की गहरी पैठ तो है ही, साथ में ग्रामीणों का भरोसा भी उनपर अटूट है। ग्रामीण इलाकों में डाककर्मी चौबीस घंटे सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। आमतौर पर गाँवों में डाककर्मी खेती-बाड़ी के साथ-साथ डाकघर का काम करते हंै। डाकघर उनके घर से संचालित होता है। जरुरत एवं सहूलियत के मुताबिक ग्रामीण डाकघर से जुड़े हुए अपने काम करवाते हैं। रात-बेरात कभी भी उनका काम हो जाता है। डाकघर के ऐसे व्यवहारिक स्वरुप के कारण ही 31 मार्च, 2007 तक डाकघरों में कुल 323781 करोड़ रुपये जमा किये गये थे, जिनमें से बचत खातों में 16789 करोड़ रुपये जमा थे। डाकघरों की इतनी लोकप्रियता तब है, जब ये प्रौधोगिकी के स्तर पर अधतन नहीं हैं और न ही सेंट्रल सर्वर के द्वारा तकनीकी तौर पर एक-दूसरे से जुड़े हैं।

बैंक पर हमारी निर्भरता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आज मनरेगा के तहत लाभार्थी को बैंक के माध्यम से मजदूरी देना हो या फिर दूसरी योजनाओं के लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे सबिसडी की राशि जमा करनी हो, कोर्इ कार्य बैंक की सहभागिता के बिना संभव नहीं है। दूसरी तरफ भ्रष्टाचार ने बैंकों के काम-काज को बुरी तरह से प्रभावित किया है। आम आदमी को उनका हक मुश्किल से मिल पा रहा है। सूचना का अधिकार कानून, 2005 के असितत्व में आने के बाद से हालत बदले हैं। पड़ताल से स्पष्ट है कि सरकारी बैंकों पर लगाम लगाने के लिए पचास रास्ते हैं, लेकिन निजी बैंकों का नकेल कसने के मामले में सरकार एकदम असहाय है, क्योंकि अन्यान्य उपायों के निजी बैंकों पर प्रभावशाली नहीं होने के साथ-साथ सूचना का अधिकार कानून, 2005 के दायरे में भी ये नहीं आते हैं।

यहाँ इस सवाल सवाल का उठता लाजिमी है कि क्या भारत में पोस्ट बैंक को छोड़कर और निजी बैंकों की जरुरत है, क्योंकि मौजूदा निजी बैंकों का प्रदर्षन सरकार एवं जनता की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है। दूसरा दिलचस्प तथ्य यह है कि एक तरफ सरकार बैंकों के विलय की बात कह रही है, दूसरी तरफ नये निजी बैंक खोलने के लिए रिजर्व बैंक के द्वारा दिशा-निर्देश जारी किया गया है। नये निजी बैंकों को खोलने के लिए अंतिम नियमावली प्रस्तुत करना सरकार की कथनी व करनी में व्याप्त विरोधाभास को दर्शाता है। एक और महत्वपूर्ण बात इस संबंध में यह है कि क्या बासेल के प्रावधानों को पूरा करने में प्रस्तावित नये निजी बैंक समर्थ होंगे?

मौजूदा समय में बैंकिंग क्षेत्र असंख्य चुनौतियों का सामना कर रहा है। वित्तीय समावेषन की संकल्पना को साकार करना ऐसी ही एक चुनौती है। भले ही रिजर्व बैंक ने नये बैंक खोलने के संबंध में जारी अपने अंतिम दिशा-निर्देश में 25 प्रतिशत बैंक शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्र में खोलने की बात कही है। पर क्या प्रस्तावित निजी बैंक ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सेवाओं को सफलता पूर्वक पहुँचाने का कार्य कर सकेंगे? ग्रामीण क्षेत्र में केवल बैंक शाखा खोलने से काम नहीं चलेगा। यहाँ जरुरत है कि सभी तरह की बैंकिंग सेवाओं को ग्रामीणों के बीच उपलब्ध करवाया जाए। इस मामले में निजी बैंक कितने गंभीर हैं इसका खुलासा बिहार के उप मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी के अगुआर्इ में आहुत बैंकों के प्रर्दशन पर केंद्रीत समीक्षा बैठक में हुआ है। बैंकों के द्वारा मुहैया करवाये गये आँकड़े वाकर्इ में चिंताजनक हैं। किसान क्रेडिट कार्ड और सरकार द्वारा प्रायोजित दूसरे रोजगार परक ऋण किसानों को वितरित करने में निजी बैंक बिहार में फिसड्डी रहे हैं।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पीछे सरकार की मंशा थी, आम आदमी को बैंकों से जोड़ना। उसके स्वरुप को कल्याणकारी बनाना। सरकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुँचाना तथा रोजगार सृजन के द्वारा उन्हें आत्मनिर्भर बनाना। स्वंय सहायता समूह एवं अन्यान्य सरकारी योजनाओं के माध्यम से लोगों को उनका हक दिलवाने में सरकार बहुत हद तक कामयाब भी रही है। जाहिर है सरकारी बैंकों की महत्ती भूमिका के बिना यह संभव नहीं था। ध्यातव्य है कि राष्ट्रीयकरण से पहले बैंकों की कुँजी राजाओं के हाथ में थी, जिनका उद्देष्य केवल लाभ अर्जित करना था। उस वक्त भी आज की तरह निजी बैंक महाजनी खेल में माहिर थे। आमजन के कल्याण या फायदे से उनका कोर्इ सरोकार नहीं था। इस दृष्टिकोण को मद्देनजर रखते हुए कारपोरेटस को नये बैंकों के लिए लाइसेंस देना तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि निजी बैंक कभी भी सामाजिक और कल्याणकारी बैंकिंग की संकल्पना को साकार करने की दिशा में सकि्रय नहीं होंगे।

 

2 COMMENTS

  1. desh ko or ek bade ghaplo ke liyte taiyar rehna hoga kyonki hamare yanhan hamesha aise kanun banaye jate hai jo niji vyavsay ke karnevalo ko fayda karte hai or sarkari kamkaj ko avarudh karte hai niji banko se akhir hamare desh me kya hoga ye niji vyasay vale logo ki punji ko unke dhandhe me lagayenge or aaye din duba denge ?///

    hamari sarkar masoda to achchha banati hai magar kanun kamjor banati hai jiski vajah se bhrast log iska fayda uthate hai or desh ko nukshan karte hai .

    सरकारी बैंकों पर लगाम लगाने के लिए पचास रास्ते हैं, लेकिन निजी बैंकों का नकेल कसने के मामले में सरकार एकदम असहाय है, क्योंकि अन्यान्य उपायों के निजी बैंकों पर प्रभावशाली नहीं होने के साथ-साथ सूचना का अधिकार कानून, 2005 के दायरे में भी ये नहीं आते हैं।

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