कश्मीर समस्या के कुछ मूल तत्व

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-फखरे आलम-

kashmir
कश्मीर में समस्याएं और ज्वलन्त विषयों ने एक दिन में अपना विकराल रूप नहीं दिखाया है। बल्कि समय के साथ लावा ने अपना विस्फोटक रंग दिखाया है। ऐतिहासिक घटनाओं और साक्ष्य को न तो छुपाया जा सकता ओर न ही झूठलाया जा सकता, सत्य तो सात वह जीमन से चीख पुकार करती है। इतिहास का इतिहास सभ्याता के प्रारम्भ से अपने अनेको चरण देखे हैं।
किस्से कहानियों से प्रारम्भ होकर इतिहास आज अपना स्थान बना चुकी है। जिसे सभी संस्कृति और सभ्यताओं के आत्मा के रूप में जाना जाता है। समाज में घटित होने वाली घटनाओं का सम्बंध् बीते समय से सम्बन्ध किसी न किसी रूप में रखता हे। वाल्टेयर ने इतिहास को शासक वर्ग का जीवनी कहा है। थामथ कारलाइल ने विश्व के बड़े व्यक्तियों के जीवन ओर उनकी उपलब्धियों को इतिहास लिखा है। फ्रांसिस ने घटनाओं और अनहोनियों को इतिहास बताया है। इ एच कॉर ने शोध पर आधरित घटनाओं को इतिहास बताया है। मगर आज इतिहास कुंठा और प्रतिशोध का नाम है।

कश्मीर की समस्याओं का बीजारोपन जुलाई 1931 को हो गया था जब कशमीर डोगरा शासक के अधीन था। 13 जुलाई 1931 को 21 कश्मीरियों को श्रीनगर जेल के बाहर महराजा के सैनिकों ने गोलियों से भून डाला था। यह घटना उस समय की है जब कश्मीरियों का एक बड़ा वर्ग अब्दुल कदीर के मुकदमे को सुनने के लिए जमा हुआ था। इस घटना से पूर्व डोगरा सरकार के अधीन कार्यरत पुलिस डी.आई.जी चौधरी रामचन्द्र ने जम्मू के म्यूनिस्पल पार्क में जुमे की नमाज और इमाम मुंशी इस्हाक के द्वारा नमाज पढ़ाए जाने पर रोक लगा रखी थी। सर्वप्रथम जम्मू और कश्मीर की जनता के द्वारा विरोध प्रदर्शन और सड़क पर उतरने की बुनियादी कारण थी।

डोगरा प्रशासन ने न केवल साप्ताहिक जुमे की नमाज पर प्रतिबन्ध् लगा रखी थी। बल्कि पवित्र धर्मिक ग्रन्थ का बार-बार अपमान किया जो जम्मू और कश्मीर की बहुसंख्यक जनता के लिए असहनीय था और सरकार विरोधी स्थिति सम्पूर्ण कश्मीर में फैलता चला गया। अतः श्रीनगर के जामा मस्जिद में मुसलमान इकट्ठा होने लगे ओर दोषियों को दण्ड देने की मांग करने लगे। श्रीनगर की जामा मस्जिद से राजमहल को चुनौती देने और राजमहल की इंट से इंट बजाने की बात अब्दुल कदीर ने की थी और सरकार ने इन्हें गद्दारी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। 12 जुलाई 1931 को बड़े स्तर पर अशांतिपूर्वक आन्दोलन आरम्भ हुए और अब्दुल कदीर को सरकार ने सेंट्रल जेल भेज दिया और सरकार ने जेल में ही उनके खिलाफ गद्दारी का मुकदमा चलाने का फैसला कर लिया था। कश्मीरी सेन्ट्रल जेल के बाहर मुकदमा का फैसला सुनने के लिए इकट्ठा हुए थे।

डोगरा प्रशासन की एक और गलती के उन्होंने जमा लोगों को अजान देने और नमाज पढ़ने से रोकने लगे। एक के बाद एक अजान देने वालों को गोली मारते गऐ इस प्रकार 21 लोगों को डोगरा पुलिस ने मार डाला। इस जघन अपराध और घटनाओं के पश्चात लोग शहरों और गलियों में फैल गए, हड़तालों के कारण कामकाज बन्द हो गए जम्मू से लेकर श्रीनगर की सड़कें सुनसान और वीरान पड़ गई। इस घटना के कारण प्रदेश की जनता ने एक सप्ताह का शोक मनाया था। उस समय भारत में अंग्रेजी सरकार थी और जलियावाला बाग भी इसी प्रकार की तानाशाही में घटित हुई घटना की कड़ी रही होगी।

19 जुलाई 1947 को मुस्लिम कान्फ्रेंस ने अध्यादेश पास करके कश्मीर को पाकिस्तान में विलय होने का काम किया। वर्तमान समय में कश्मीर के अन्दर भारत की 7 लाख से अध्कि सेना तैनात है। बार-बार लगातार पॉलिसी बदलने और गलती करते रहने से इतिहास बदल नहीं जाता, अथवा तानाशाही से कुछ समय के लिए विषयों को बदला जा सकता है, मगर स्थाई समस्याओं का निदान और लम्बे समय तक बने रहने वाले शान्ति के लिए प्रयास होने चाहिए।

1 COMMENT

  1. हो सकता है डोगरा शासक ने गलतियाँ की हों पर उसके भुक्तभोगी निर्दोष कश्मीरी पंडित बनें ये उचित नहीं है ! सबसे बड़ी गलती तो मुस्लिम कांफ्रेंस ने की थी – कश्मीर को पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव लाने का उन्हें क्या हक था ? ? ( जो आम चुनाव भी नहीं जीत पाए थे ? जो सरहदी गाँधी अर्थात खान अब्दुल गफ्फार खान को भी अच्छी नजर से नहीं देखते थे, कई बार उन्हें नजरबंद भी किया गया था, ! )

    जैसे भी हों पर महाराजा हरिसिंह कश्मीर के सम्प्रभुता सम्पन्न राजा थे और जब उन्होंने बिना शर्त भारत में समर्पण का प्रस्ताव भेज दिया तो भारत में कश्मीर के विलय पर कोई प्रश्नचिन्ह बचता ही नहीं है !! वर्तमान में जो लोग कश्मीर से धारा – 370 हटाने का विरोध कर रहे हैं – वो कश्मीर को अपनी व्यक्तिगत जागीर समझ रहे हैं – वास्तव में इस धारा के हटने से सबसे अधिक फायदा कश्मीरी अवाम का ही होगा – कश्मीरी जनता के विकास के लिए और निर्वासित लोगों की सकुशल वापसी के लिए धारा- 370 को अविलम्ब हटाना चाहिए !! जय हिंद !!!

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