नये इसरो की तलाश 

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इन दिनों हर कोई ‘इसरो’ के गुण गा रहा है। सचमुच उसने काम ही ऐसा किया है। दुनिया में आज तक कोई देश एक साथ 104 उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित नहीं कर सका है। जो लोग वैज्ञानिक सफलता के नाम पर सुबह उठते ही अमरीका और रात में सोने से पहले रूस की माला जपते हैं, उनके मुखमंडल पीले पड़ गये हैं। कई ने तो डर के मारे शीशा देखना ही बंद कर दिया है।

अखबार में छपा है कि इस बार अमरीका ने भी अपने कई उपग्रह इसरो की गाड़ी से अंतरिक्ष में भेजे हैं। क्या करें, ‘नासा’ वाले जितने पैसे में एक उपग्रह भेजते हैं, हम उतने में चार भेज रहे हैं। अमरीका पिछले कई साल से अपने लाभ के लिए दुनिया को बाजार बनाने पर तुला है। अब भारत ने ‘मियां की जूती मियां जी के सिर’ पर ऐसी मारी है कि टंªप बाबू भी खोपड़ी सहला रहे हैं। सुना है इस चोट से उनके जो बाल झड़े हैं, उन्हें पुनर्स्थापित करने के लिए एक एजेंसी काम पर लगा दी गयी है। उनके सलाहकारों का कहना है हमें जल्दी ही कुछ करना होगा, वरना नासा पर ताला लग जाएगा।

खैर, ये तो हुई ज्ञान-विज्ञान की बात। अब असली मुद्दे पर आते हैं। इसरो द्वारा इतने सारे उपग्रह एक साथ भेजने पर ‘मैडम कांग्रेस’ में भी हलचल मच गयी है। मैडम बीमार हैं और दीदी कहती हैं कि उनका समय अभी नहीं आया। वैसे वे हरसंभव प्रयास कर चुके हैं; पर ऐसा कोई ‘लांचिग पैड’ अब तक तैयार नहीं हो सका, जो राहुल बाबा को देश की राजनीति में ठीक से स्थापित कर दे। अब उन्हें कौन समझाए कि ठीक लांचिंग पैड के साथ ही उपग्रह का ठीक होना भी जरूरी है। लांचिंग पैड भले ही सोने से बना हो, पर उपग्रह यदि कूड़े से भरा है, तो उसकी नियति समुद्र में गिरना ही होती है।

इन्हीं सब विषयों से चिंतित शर्मा जी परसों ‘मैडम कांग्रेस’ के कार्यालय में गये। वहां बैठे एक नेता से इस पर काफी देर चर्चा हुई। लेकिन शर्मा जी का कहना है कि इसे ‘ऑफ दि रिकार्ड’ माना जाए।

– नेता जी, 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो साल बाकी हैं। अब तो राहुल बाबा को राजनीति में ठीक से लांच हो ही जाना चाहिए।

– लांच होता नहीं शर्मा जी, किया जाता है।

– मेरा मतलब यही है; पर ये लांचिंग कैसे हो ?

– यही तो बड़ा सवाल है। यद्यपि वे कोशिश तो खूब कर रहे हैं; पर उनकी छवि गंभीर नेता जैसी नहीं बन रही है। कभी वे छुट्टी मनाने विदेश की गुप्त यात्रा पर चले जाते हैं, तो कभी अपनी फटी जेब दिखाने लगते हैं। मोदी जैसा भाषण देना तो वे इस जीवन में सीख नहीं सकते।

– जो हो, पर हमारी भी तो मजबूरी है। पार्टी में उनके अलावा कोई और है भी तो नहीं। मेरे विचार से तो उन्हें अभी से पी.के की सेवाएं ले लेनी चाहिए।

– कौन पी.के. ?

– जिसने लोकसभा चुनाव में मोदी को और बिहार में नीतीश कुमार को लांच किया था।

– लेकिन सुना है कि उसे तो नीतीश कुमार ने 2019 तक के लिए बुक कर रखा है।

– देखो भैया, वो तो कारोबारी है। जहां से अधिक पैसे मिलेंगे, वह वहां चला जाएगा। नीतीश बाबू ने उसे कैबिनेट मंत्री का दरजा दे रखा है। इसके बावजूद उसने उ.प्र., पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए काम किया है।

– तो क्या वो 2019 के लिए राहुल बाबा को लांच कर सकता है ?

– क्यों नहीं कर सकता ? जितने पैसे नीतीश जी ने दिये हैं, उससे अधिक उसके मुंह पर मारो, वो इधर आ जाएगा। पैसे की तो कांग्रेस के पास कमी नहीं है। अंदर वाले खातों में न हों, तो बाहर के खातों से आ जाएंगे।

– लेकिन पी.के. ने उ.प्र. में तो राहुल बाबा के लिए बड़ी मेहनत की। उन्हें कई जगह खाट पर उठाया-बैठाया। दिल्ली के मुरदाघर से ढूंढकर शीला दीक्षित को भी लाए; पर ऐन चुनाव से पहले बाबा ने पीठ दिखा दी।

– पीठ तो नहीं दिखायी ?

– शर्मा जी, सबके सामने तो हम भी ये नहीं कहते, पर सच तो यही है। जैसे बिहार में जिन्दा रहने के लिए उन्होंने नीतीश बाबू को हाथ पकड़ाया, वैसे ही उत्तर प्रदेश में वे अखिलेश के सहारे हैं। यहां जो 20-30 सीट उन्हें मिलेंगी, उनके बारे में यही कहा जाएगा कि वे अखिलेश के कारण मिलीं। अगर यही हाल रहा, तो हिन्दीभाषी क्षेत्र में चौथे नंबर की पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी कौन मानेगा ?

– हां ये तो है। फिर बात कैसे बने ?

– मेरे विचार से हमें इसरो की ही सेवाएं लेनी चाहिए। जब वे देश और विदेश के 104 उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित कर सकते हैं, तो क्या हमारे छोटे से राहुल बाबा को दिल्ली में प्रधानमंत्री की कुरसी पर स्थापित नहीं कर सकते।

शर्मा जी ने सिर पर हाथ दे मारा। वे समझ गये कि जब तक ‘मैडम कांग्रेस’ में ऐसे मूढ़ नेता विद्यमान हैं, तब तक कोई आशा करना बेकार है।

– विजय कुमार

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