चुनाव आयोग की हकलाहट

अपना चुनाव आयोग बड़ी दुविधा में फंस गया है। वह सर्वोच्च न्यायालय को यह नहीं बता पा रहा है कि जिन नेताओं को आपराधिक मामलों में दो साल से ज्यादा की सजा हो जाती है, उन्हें सिर्फ छह साल तक चुनाव नहीं लड़ने दिया जाए या पूरे जीवन भर का प्रतिबंध उन पर लगा दिया जाए। ऐसे अपराधी नेताओं को जीवन भर चुनावों से वंचित करने के लिए एक याचिका भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अदालत में लगा रखी है।

चुनाव आयोग ने अदालत के सामने लिखित कागज पेश किया है, उसमें तो आजीवन प्रतिबंध की बात से वह सहमत है लेकिन उसके वकील ने जजों से कहा कि यह तय करना तो संसद के हाथ में है। इस पर जजों ने आयोग से कहा कि आप हकला क्यों रहे हैं? आप अपनी दो-टूक राय क्यों नहीं देते ?

उपाध्याय ने अपनी याचिका में यह मांग भी की है कि ऐसे अपराधियों को न तो किसी पार्टी का पदाधिकारी बनने का अधिकार होगा और न ही वे कोई नई पार्टी बना सकेंगे। यह बिल्कुल सही मांग है, क्योंकि अपराधी नेताओं को हमने देखा है कि वे मुख्यमंत्री का पद अपनी बीवी या किसी चमचे को सौंपकर खुद पार्टी के मुखिया की गद्दी सम्हाल लेते हैं। कुछ कैदी नेता जेल में पड़े-पड़े अपनी पार्टियां चलाते रहते हैं।

इस मामले में चुनाव आयोग भी हकला रहा है क्योंकि सरकारी वकील ने साफ-साफ कह दिया है कि यह मामला संसद ही तय करेगी। संसद क्या करेगी, यह हम अपने आप समझ सकते हैं। यों भी आजीवन प्रतिबंध में ज़रा ज्यादती मालूम पड़ती है, क्योंकि अदालतें भी कभी-कभी गलत निर्णय कर देती हैं। इसके अलावा नेता भी साधारण मनुष्य ही होते हैं। कभी-कभी अनजाने ही वे भयंकर भूल भी कर सकते हैं। उन्हें सुधरने का मौका दिया जा सकता है। इसीलिए उनकी प्रवंचना की अवधि को 6 वर्ष से बढ़ा कर 10 वर्ष कर दिया जाना चाहिए और चुनाव के साथ-साथ उन्हें 10 वर्ष तक पार्टी और सरकारी पदों से भी वंचित रखने का प्रावधान होना चाहिए। यदि संसद ऐसा कानून बना दे तो हमारी राजनीति पहले से थोड़ी बेहतर हो सकेगी।

1 COMMENT

  1. लम्बी अवधि का प्रतिबंध तो जरुरी है ही , उन नेताओं पर मुकदमे तेज गति से चलाये जाएँ व उन्हें कोर्ट से जमानत नहीं मिलनी चाहिए , जैसे कि लालू जैसे लोग बाहर आ राजनीति कर रहें हैं , अन्यथा प्रतिबंध के कोई मायने नहीं रहते

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