राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है राम मंदिर निर्माण

-डा. मुरली मनोहर जोशी

आज भारत के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं। उन चुनौतियों की पृष्ठभूमि में हमें राम मंदिर के मुद्दे को देखना चाहिए। क्या राम मंदिर भारत की अन्य प्रमुख समस्याओं का समाधान कर सकता है। क्या अयोध्या विवाद के समाधान द्वारा देश की अन्य समस्याओं के समाधान का कुछ मार्ग निकल सकता है। ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो हमारे सभी के मन में आते हैं। कुछ लोगों का सोचना है कि राम मंदिर के मुद्दे पर बात करना वक्त बेकार करना है। इससे देश की तरक्की का कौन मार्ग मिलने वाला है। इससे भला आम आदमी, देश के विकास के संदर्भ में आखिर क्या भला होने वाला है।

लेकिन वास्तव में सभी समस्याएं कहीं ना कहीं एक साथ जुड़ी हैं। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण और देश की अन्य समस्याओं का समाधान कोई अलग-अलग विषय नहीं है। जो लोग आजकल खंडित दृष्टि से सोचते हैं, वह हर समस्या का निदान अलग-अलग तरीके से करते हैं। लेकिन समस्याएं और उसका समाधान अलग-अलग नहीं वरन् समग्र दृष्टि से होता है। समाधान समग्र दृष्टि से होगा तभी सदा के लिए समस्या से मुक्ति मिलती है, नहीं तो एक समस्या को निपटाओ, उससे भी ज्यादा बड़ी और विकट दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है।

कोई देश अपनी घरेलू नीति या विदेशी नीति का निर्माण कैसे कर सकता है जब तक कि वह अपने को न जाने कि मैं कौन हूं और जिस देश के संबंध में नीति बन रही है, वह देश कौन है। बिना एक-दूसरे को जाने, एक-दूसरे के अतीत और इतिहास को समझें हम-आप क्या करेंगे। नीति निर्माण के बारें में विचार करते समय इस बात को समझना आवश्यक है। यह समस्या सिर्फ हमारे सामने नहीं है। जो बड़े प्रभावशाली देश माने जाते हैं उनके सामने भी यह संकट है। यह संकट पहचान से जुड़ता है। कुछ समय पहले दुनिया के एक प्रमुख विचारक द्वारा यह कहा गया था कि दुनिया में सभ्यता मूलक संघर्ष है। अगर ऐसा है तो हमें समझना होगा कि हमारी कौन सी सभ्यता है और क्या उसका किसी से संघर्ष है।

जो राष्ट्र दुनिया के अंदर अपने आपको महाशक्ति के रूप में देखते हैं, उनमें सर्वत्र तीन विशेष गुण देखने को मिलते हैं- पहला कि वे सामरिक रूप से कितने मजबूत हैं, दूसरा आर्थिक रूप से और तीसरा उस देश की अस्मिता कितनी प्रवल और प्रभावशाली है। केवल राष्ट्रीय चेतना लाने से बात नहीं बनेगी। राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ आर्थिक और सामरिक शक्ति का निर्माण चाहिए, तभी राष्ट्र महान बन सकता है।

इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि हमारी राष्ट्रीय चेतना को कौन सी चीजें इस देश में प्रकट करती हैं और उन तत्वों को हम अपने जीवन में, समाज व्यवहार में कितना समाहित करते हैं। हमारे आचरण में वह चीजें कहां तक परिलक्षित होती हैं। अगर हमारे आचरण में राष्ट्रीय चेतना को प्रकट करने वाली बातें हैं तब तो हम देश की सनातन धारा के अंग बनते हैं। अन्यथा हम उस धारा के अंग नही हैं। हमने केवल उसे किताबों में ही रख रखा है। हमने अपने जीवन के अंदर यदि उसका समावेश नहीं किया, समाज के व्यवहार में यदि राष्ट्रीयता को परिभाषित करने वाले गुण नहीं आये तो फिर कौन बताएगा कि भारत तत्व भला क्या बला है।

अगर हमने राष्ट्रीयता को परिभाषित करने वाली बात को व्यवहार में नहीं उतारा तो फिर देशभक्ति, राष्ट्रीयता का कोई मतलब नहीं है। हमारे देश में विदेशी आक्रमणों का प्रतिकार किया गया तो किस लिए किया गया। सिख गुरूओं ने अगर बलिदान दिए तो क्यों दिए। तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखी तो क्यों। भूषण कवि ने कविता की तो किसलिए की, किस प्रवृत्ति से यह सब हमारे महापुरुषों ने किया। इसलिये कि जो भारतीय अस्मिता और संस्कृति को नष्ट कर रहा है चाहे अंदर से हो या बाहर से, उससे हमें मिलकर लड़ना है। जो भारत और भारतीयता के शत्रु हैं, उन्हें हर हालत में परास्त करना है।

आज जो आतंकवाद का बीभत्स रूप दिख रहा है, वह भारत के विचार, दर्शन आदि को नष्ट करने का लक्ष्य सामने रखकर हमसे लड़ रहा है। ‘हू इज द पीपल ऑफ इंडिया’? यह एक बुनियादी बात है। हम अपनी पहचान को भारत के विचार के रूप में लेकर चलते हैं। हम भारतीय ही भारत के विचार का प्रतिविंब हैं। लेकिन हमें भारत के बारे में पता ही नहीं है, अपने इतिहास के बारे में कुछ पता नहीं है। हमें अपने गौरव के बारे में पता नहीं है। यह हमारा दुर्भाग्य़ है कि हमें तो वहीं पता है जिसे अंग्रेजों ने हमें पढ़ाया है। भारत का सारा गौरव और उसकी प्रतिस्थापना करने वाला इतिहास हमें वास्तव में मालूम ही नहीं है।

जो अंग्रेजो ने हमें पढ़ाया और बताया उसे हमने मान लिया। आर्य बाहर से आये थे हमने मान लिया। इसी प्रकार यह देश कोई प्राचीन राष्ट्र नहीं है, यह तो अभी निर्माणाधीन है, हमने मान लिया। यह देश कभी विकसित नहीं रहा, इसका आधुनिकीकरण तो अभी हो रहा है। यह बातें हमें बतायी गयीं और हमने मान लिया। लेकिन यह सच नहीं है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमें देश को आगे ले जाना है तो सबसे पहले यह समझने और सभी को समझाने की जरूरत है कि भारत देश के असल मायने क्या हैं ? आइडिया ऑफ इंडिया यानी क्या? इसका जवाब एक ही है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम। आप उन्हें भगवान मानें या ना मानें। लेकिन श्रीराम भारत के राष्ट्रीय महापुरुष तो थे ही, इसमें किसी को क्या संदेह है। सदियों से इस देश के लोकमानस में यह विचार चलता आया है। जिस दिन श्रीराम के विचारों को समझ जाएगें उस दिन एक मंदिर नहीं हजार मंदिर बनेंगे इस देश में। देश की सारी समस्याओं का अंत हो जायेगा। भारत के वास्तविक पुनर्निर्माण से तब हमें कोई नहीं रोक पायेगा। लेकिन अगर जिस दिन राम का नाम, राम का विचार देश से समाप्त हो गया, तो समझ लिजिएगा, उस दिन हम वास्तव में समाप्त हो जायेंगे। तब भारत भारत नहीं रहेगा। या तो वह आतंकवादियों के सपनों का कोई जन्नत होगा या फिर मैकाले पुत्रों का कोई नवउपनिवेश, लेकिन राम के बिना कोई भारत हो सकता है, इसकी परिकल्पना समझ से परे है। इसलिए एक मुद्दे की बात राम से जुड़ती है कि राम भारत की पहचान हैं।

आप पाकिस्तान के आंतकवाद को देखे तो स्पष्ट हो जायेगा कि वे क्या चाहते है। ‘ही वान्ट टू फिनिस्ड द आईडिया आफ हिन्दू एण्ड हिन्दुस्तान’। वे हिंदू और हिंदुस्तान के विचार को समाप्त करना चाहते हैं। उनका यही मानना है कि भारत से उसकी संस्कृति, सभ्यता और उसके विचारों को नष्ट करो, भारत अपने-आप ही नष्ट हो जायेगा। ये मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का ही चरित्र ही है जो हमारे अंदर विद्यमान है, राम का चरित्र ही भारत के विचार की मूल अभिव्यक्ति है, राम का विचार भारत के जन-जन में समाया हुआ है और उसी को समाप्त करने की कोशिश चल रही है।

राम के विचार से ही हम इन सारी समस्याओं को समाप्त कर सकते हैं। राम ने रावण का वध कर आंतकवाद का अंत किया था। ‘राम इज द आन्सर आफ टेररिज्म’। रावण हमारे नैतिक मूल्यों को नष्ट कर रहा था इसलिये वह आंतकवादी था। दुनियां में जितनी भी अर्थ-पैशाचिक शक्तियां है जो ये आर्थिक विषमतायें फैलाने वाले लोग हैं, उन सबको परास्त करने के लिए राम का अवतरण हुआ। और सामान्य जन के समर्थन द्वारा, साधारण जनता की शक्ति से ही अन्याय को, आतंक को परास्त करना भारत की परम्परा रही है। अन्याय, अनीति और आतंक का अंत करने वाले जीवंत, प्रेरक व्यक्तित्व हैं श्रीराम।

उन्होंने रावण से युद्ध करने के लिये न राजा जनक से सहायता मांगी और न ही तत्कालीन अयोध्या नरेश भरत से। देश के किसी भी राजे-रजवाड़े से सहायता मांगने राम नहीं गए, किसी से भी सैनिक सहायता की मांग नहीं की। उन्होंने भारत की लोक-शक्ति का संगठन किया। जिन्हें हम भालु, वानर आदि के रुप में देखते और पढ़ते हैं, भारत की तमाम जातियों, उपजातियों, जनजातियों और आदिवासियों आदि का संगठनकर श्रीराम रावण के विरुद्ध युद्ध के मैदान में उतरे और उस अत्याचारी को परास्त किया।

राम के जीवन का संदेश अमिट है। सामान्य जन की भागीदारी, उनके उद्यम से, पराक्रम से बड़े-बड़े अर्थ पिशाचों को हम नष्ट कर सकते हैं। यानी कि भारत में अगर आज चतुर्दिक फैली आर्थिक विषमता को समाप्त करना है तो यह कार्य धन्ना सेठों की सहायता से नहीं होगा, ये काम रान्ग माडल आफ डेवलेपमेंटल पॉलिसी यानी गलत आर्थिक नीतियों, विकास की गलत दिशा से नहीं होगा, ये काम साधारण व्यक्ति केंद्रित नीतियों से होगा, कामन मैन ओरियेन्टेड नीतियों का हमें क्रियान्वयन करना होगा।

पहली जरूरत यह है कि हमें राम के विचारों को समझना चाहिए। श्रीराम के विचारों को अगर गहराई से अध्ययन करें तो हम पायेंगे कि राम ने आतंकवाद, आर्थिक विषमता से लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में विजय प्राप्त कर उन्होंने देश के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने निषादराज को गले लगाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया। जटायु का दाह संस्कार किया, शबरी के जूठे बेर खाये, वन-प्रांतर में जन सामान्य को संगठित किया। लोक के साथ लोक की भांति रहे राम। लोकजीवन से पूरा तादात्म्य स्थापित किया उन्होंने। वैसा जीवन भारत के संपूर्ण राजनीतिक इतिहास में फिर इतने समग्र और व्यापक रूप में देखने में नहीं आया। इसलिए तो वे राजा राम से प्रभु राम, भगवान राम बन गए। आज भारत को अगर अपनी समस्याओं से पार पाना है तो श्रीराम को आदर्श बनाकर चलना होगा। श्रीराम का जीवन और श्रीराम के विचार ही सारी समस्याओं को समाप्त करने में सहायक हैं।

अयोध्या में राम की जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण को मैं सदा राष्ट्रीय चेतना के जागरण आंदोलन के रुप में देखता आया हूं। यह आंदोलन किसी मजहब, आस्था के खिलाफ नहीं रहा है। यह उस जन्मभूमि मंदिर के पुनरुद्धार का सात्विक प्रयास रहा है जिस जन्मभूमि की महत्ता को कभी स्वयं राम ने स्वर्ग के सुखों से भी बढ़कर माना था। राम के लिए जननी जन्मभूमि हमेशा स्वर्ग के स्थान से बढ़कर पवित्र और पूज्य रही है। राम की उसी जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की बात यहां चल रही है। यह जन्मभूमि किसी की कल्पना से धरती पर प्रकट नहीं हुयी। न तो एक रात में जन्मभूमि को जन्मभूमि की मान्यता मिली। सदियों से भारत का लोकजीवन जिस भूमि को राम की जन्मभूमि मानता आया है, उस जन्मभूमि की मुक्ति का प्रश्न हिंदू समाज के सामने भारत की आजादी के साथ ही खड़ा हो गया था। बाबर के आक्रमण के बाद से लगातार हिंदू राम जन्मस्थान पर राम की गरिमा के अनुरूप मंदिर बनाने की लड़ाई लड़ रहे थे। कभी हिंदुओं ने उस स्थान विशेष की परिक्रमा बंद नहीं की, वहीं पूजा-अर्चना सदियों से जारी रही।

होना तो यह चाहिए था कि मुस्लिम पक्ष स्वयं आगे बढ़कर राम जन्मभूमि हिंदुओं के हवाले कर देता। इससे देश में सद्भाव के महान वातावरण की नींव पड़ जाती। आखिर कभी मुस्लिम कवियों ने भी गाया था कि हैं राम के वजूद पर हिंदोस्तां को नाज। तो जिसके अस्तित्व को भारतीय मुसलमानों ने सदा सम्मान के साथ देखा, उसके मंदिर के निर्माण पर भला आपत्ति क्यों। आज समय आ गया है कि सारा समाज सभी प्रकार के जातिभेद, संप्रदायभेद, प्रांत भेद और राजनीति के भेद को त्यागकर मंदिरनिर्माण के लिए आगे बढ़े। राम मंदिर निर्माण से देश मंदिर के निर्माण का काम भी स्वतः प्रारंभ हो जाएगा।

(पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी द्वारा श्रीराम जन्मभूमि विषयक एक संगोष्ठी में व्यक्त विचारों के संपादित अंश)

1 COMMENT

  1. आदरणीय गुरुदेव .सादर चरण वंदन ,
    आपके विचार सर्व विदित हैं .देश की चिंता समाज {हिन्दू }की चिंता तथा अतीत के गौरव की चिंता में आपने जितना योगदान दिया वह भूतो न भविष्यति .
    गुरुदेव से निवेदन है की देश के तीस करोड़ -निर्धन लाचारऔर अशिक्षित हिदुओं पर कृपा दृष्टी करें .आपने जितना भी अभी तक किया उसकी फसल किसने काटी?आप स्वयम इतने विद्वान् हैं की आपको कुछ भी कहना याने सूरज को दिया दिखाना है .
    आप कहेंगे की चेला व्यक्तिगत kyon ho raha to निवेदन है की aalekh to aapka hi है न .ab aapka koi eklavy भी ho sakta है jo ab angootha nahin dega .aapse निवेदन है की देश की gaddi sambhalen .usase poorv आपको देश की koti koti janta को dharm nirpeksh sootr में bandhna hoga .आपको bhrushtachar के khilaf ,poonjiwad के khilaf और aatankwad के khilaf ladne ka netrutw karna hi hoga .yh rah आपने hi chuni है kyon की chunotiyon को samekit karne ka mantr mene aapse hi seekha है .krantikari abhiwadan .

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