समय की मार।।

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जिस्म मेरा यूं समय से लड़ रहा है
सांसों को भी आजमाना पड़ रहा है
आजमाना चाहूं गर जीवन को मैं
स्वयं को भी भूल जाना पड़ रहा है।
जिनकी आंखों मे भरी है नफरतें
उनसे भी आँखें मिलाना पड़ रहा है
दूसरों को सौंपता हूं खुद को जब
तब स्वयं से दूर जाना पड़ रहा है।
बैठने से हो न जाऊं मैं अपाहिज
इसलिए बस काम करना पड़ रहा है
दर्द से दुनिया के बुत सा हो गया हूं
अस्रुपूरित आँख हंसना पड़ रहा है।
लुट गये बाजार की जो भीड़ में
उनसे ही दौलत कमाना पड़ रहा है
जो तमाशा जिन्दगी ने कर दिया
चंद सिक्के में दिखाना पड़ रहा है।
बोलती दीवार जिनकी दौलतों से
उनको ही दौलत चढ़ाना पड़ रहा है
वो मिलेंगे तो दबा देंगे गला
पर गलेे उनको लगाना पड़ रहा है।
कामयाबी से मेरे जलते है जो
आज उनको मुस्कुराना पड़ रहा है
देखकर नजरें चुराये कल तलक
हाथ उनसे भी मिलाना पड़ रहा है।
जायेगा लेकर यहां से कुछ नही
सब यहीं पर छोड़ जाना पड़ रहा है
याद करने का बहाना छोड़ जा
तुझको तो ये भी बताना पड़ रहा है।
हो गया ‘एहसास’ कि तू बद्दुआएं दे रहा
भीतर कुछ बाहर दिखाना पड़ रहा है
कोई भी ना साथ देगा दुनिया में
मानना तो फिर भी अपना पड़ रहा है।।

  • अजय एहसास

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