राष्ट्रवाद की जीत

गुजरात व हिमाचल के चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि अभी भी राष्ट्रवादियों को मोदी जी और भाजपा से बहुत आशा हैं । हिमाचल प्रदेश के संभावित मुख्यमंत्री श्रीमान धूमल की हार के उपरांत भी वहां के चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत ने राष्ट्रवादियों को उत्साहित किया हैं। इस बार गुजरात के चुनावों में बड़े उतार-चढ़ाव के बाद अन्तोगत्वा बीजेपी विजयी हुई हैं। परंतु इस विजय को केवल विकास का श्रेय देना कुछ अनुचित लगता है। मोदी जी का नारा “सबका साथ सबका विकास” से अधिक उनकी चिरपरिचित आक्रामक राष्ट्रवादी शैली व विचारधारा की सकारात्मकता अभी भी देशवासियों को आकर्षित करती हैं। वर्तमान राजनीति में यह विचार भी बल पकड़ रहा है कि बहुमत से बनने वाली सरकारें कब तक अल्पमत वालों को ही लाभान्वित करती रहेंगी ? आज चाहें मोदी जी परिस्थितिवश शुद्ध राष्ट्रवादी मानसिकता से कुछ बचने को विवश हो रहें हो फिर भी उनको जब भी अवसर मिलता है वे अपने विरोधियों पर पाकिस्तान परस्त होने की सच्चाई को उजागर करने से नही चूकते । उनका यहीं उत्साह राष्ट्रवादियों को बार-बार मोह लेता हैं। हमको यहां यह भी नही भूलना चाहिये कि  “प्रखर राष्ट्रवाद” को प्रदर्शित करने के लिए उत्तर प्रदेश के नवीनतम मुख्यमंत्री भाजपा के योगी आदित्यनाथ का हिमाचल व गुजरात चुनाव अभियानों में सकारात्मक सहयोग भी लिया गया। जबकि अन्य प्रदेशों के कुछ 10-15 वर्षों से भी अधिक कार्यकाल वाले बीजेपी के अन्य वरिष्ठ व अनुभवी मुख्यमंत्रियों को यह सुअवसर नही मिला। इस बार गुजरात चुनाव में बहुसंख्यकों को लुभाने के लिए एक बडा भ्रामक प्रचार यह हुआ कि वर्णशंकर राहुल गांधी को जनेऊधारी हिन्दू व पंडित राहुल गांधी कहा गया। उन्होंने गुजरात की रामभक्त जनता को भ्रमित करने के लिए विभिन्न हिन्दू मंदिरों का भी यथासंभव भ्रमण किया।भारतीय लोकतंत्र में यह  परिवर्तन राष्ट्रवाद की विजय का एक साथ कई संकेत देकर भविष्य में राष्ट्रनीति को ठोस आधार दे सकता हैं।

विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति के एक प्रमुख भाग “योग” को स्थापित करके मोदी जी में भारत को पुनः विश्व गुरु के स्थान पर सुशोभित करने की सम्भावनाओं के साथ साथ सभी राष्ट्रवादियों के सपने को साकार करने में इच्छा शक्ति की दृढ़ता झलकती है। राष्ट्रवादी मोदी जी ने ही विभिन्न अवसरों पर विश्व मंच में सर्वप्रथम “आतंकवाद” को परिभाषित करने की आवश्यकता पर अपने संबोधनों में चिंता जतायी थी। परिणाम स्वरुप अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने “इस्लामिक आतंकवाद” का प्रयोग करके संम्भवतः मोदी जी के मन की बात को उनके ही साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता में पूरा किया था।
भारतीय लोकतंत्र में नोटबंदी , सर्जिकल स्ट्राइक और जी.एस.टी. जैसे निर्णय लेने अपने आप में मोदी जी की कठोर निर्णायक क्षमता का परिचय कराती है। इसी कड़ी में मोदी सरकार का एक अत्यंत उल्लेखनीय निर्णय रहा जिसके कारण अभी तक लगभग बीस हज़ार गैर सरकारी समाज सेवी संगठनों के पंजीकरण निरस्त कर दिए गये हैं। ऐसे संगठन दशकों से विदेशी धन की सहायता से भारत की एकता व अखंडता के मूलतत्वों को अपने-अपने ढंग से नष्ट करने में सक्रिय थे। इनमें से अधिकांश संगठन निर्धन व आदिवासी हिंदुओं की सहायता करके उनके धर्म परिवर्तन करने के षड्यंत्र रचते आ रहें थे। इसी प्रकार मुस्लिम महिलाओं को उत्पीडन से बचाने के लिए तीन तलाक़ सम्बंधित मुस्लिम सम्प्रदाय की रुढ़ीवादी प्रथा को समाप्त करवाने के लिए संविधानिक प्रक्रिया द्वारा आवश्यक कानून बनवाने के लिए भी मोदी जी प्रयासरत है। मोदी सरकार की आक्रामकता का ही परिणाम है कि कश्मीर में इस वर्ष दो सौ से अधिक आतंकवादियों को जन्नत या जहन्नुम पहुचानें में सुरक्षाबलों को सफलता मिली हैं। कश्मीर के अतिरिक्त शेष भारत में आतंकवादियों की निरंतर धरपकड़ होने से जिहादियों के भी हौसलें पस्त हुए हैं। जिससे देश में आतंकवादी गतिविधियों पर भी कुछ सीमा तक अंकुश लगा हैं।

लेकिन अब 2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी यही आक्रामक छवि को बनायें रखने के लिए मोदी जी को कुछ और राष्ट्रीय महत्व के ठोस निर्णय लेने होगें। क्या उनको अपना संवैधानिक दायित्व निभाते हुए एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में “अल्पसंख्यक मंत्रालय व अल्पसंख्यक आयोग सहित सभी अल्पसंख्यक संस्थानों” को राष्ट्रहित में निरस्त करवाकर एक कुशल राष्ट्रवादी प्रशासक होने का प्रमाण नही देना चाहिये ? जब हमारा संविधान सभी को एक समान मानता है तो इन संस्थानों द्वारा भारतीय समाज में भेदभाव बढ़ा कर  वैमनस्य बढ़ाने वाली योजनाओं का क्या औचित्य हैं ? क्या ऐसी व्यवस्थाएं भारतीय समाज को बांट कर राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिये एक बड़ा संकट का कारण नही बनती जा रहीं हैं ? यहां यह विशेष ध्यान रहें कि अल्पसंख्यक मंत्रालय को कांग्रेसनीत सरकार ने सोनिया गांधी की बहुसंख्यकों के विरुद्ध षड्यंत्रकारी योजनाओं के अंतर्गत 2006 में गठन किया था।ऐसी ही नीतियों द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण हो या नई भाषा में मुस्लिम सशक्तिकरण हो हर स्थिति में राष्ट्रवादी समाज ही ठगा जाता आ रहा हैं। हमें बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठियों की विकराल समस्या का भी राष्ट्रीय समाधान चाहिये । जब दशकों से भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने के लिए अनेक छोटे-बड़े आंदोलन करती रही हैं और सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर इन घुसपैठियों के प्रति आवश्यक वैधानिक कार्यवाही करने के निर्देश दिये है फिर भी हम इनको पालते रहें तो क्या यह आत्मघाती नही होगा ? विशेषतौर पर जब यह पाया जाता है कि ये घुसपैठिये अनेक आपराधिक व आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाये जाते आ रहें हैं । भारत की अस्मिता के प्रतीक रामजन्म भूमि मंदिर की स्थापना द्वारा करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान सुरक्षित रखना भी राष्ट्रवाद को सुदृढ़ करेगा ?
उपरोक्त समस्याओं में साथ एक मुख्य समस्या विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं की भी जो हमें बार बार कटोचती हैं , साथ ही अनुच्छेद 370 के स्वरुप को निरस्त करवाने के प्रति भी हमको आंदोलित करती हैं।आज सम्पूर्ण देश में चारों ओर से राष्ट्रवादियों ने असंतुलित जनसंख्या अनुपात को समाप्त करने के लिए एक समान “जनसंख्या नियंत्रण कानून” की मांग उठायी जा रहीं हैं। क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनसंख्या बल सर्वाधिक सशक्त भूमिका निभाता हैं अतः देश के धर्मनिर्पेक्ष स्वरुप व राष्ट्रवाद की रक्षा के लिये यह आज की सर्वोच्च आवश्यकता  है।
अतः भाजपा को समझौतावादी आत्मघाती नीतियों को तिलांजलि देकर अपने राष्ट्रवादी स्वरुप को और अधिक धार देकर चमकाना होगा जिससे भविष्य में सुदृढ़ राष्ट्रीयत्व जगे और भारत पुनः विश्व गुरु के पद को सुशोभित कर सकें ।

विनोद कुमार सर्वोदय

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