खोया है गाँव मेरा !

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डॉ. मधुसूदन

(१)
सीढीपर बैठा बालवृन्द,
मस्ती से,आवाजाही निरखता हो.
बरखा की शीतल खुशी,
हथेली पर झेलता हो.
—मिल जाएँ ऐसा गाँव,
तो लौटाना ना भूलना,
मेरा गाँव कहीं खोया है.
(२)
जहाँ घडी नहीं, पर पेडों की,
छाया से,समय नापा जाता हो.
और छाया न हो तो,समय भी
ठिठक कर रुक जाता हो.
—जी हाँ, ऐसा ही है गाँव मेरा,
लौटाना,ना भूलना,
मेरा गाँव कहीं…….
(३)
जहाँ बैलगाडी  भी भाग,
लडाती हो, रेलगाडी से.
और पीपल का सर छूकर,
चाँद निकला करता हो.
—जी हाँ, सही है, यही
है गाँव मेरा खोया है,
कृपया लौटाना…ना भूलना,
मेरा गाँव कहीं……..
(४)
शहरी मिथ्याचारों ने जिस,
गाँव को जकडा न हो.
और डामर के पट्टों से,
जो गाँव अभी अकडा न हो.
—वही है गाँव मेरा, खोया है.
–लौटाना, ना भूलना..
मेरा गाँव कहीं……
(५)
लिपे पोते होंगे आँगन.
आँगन में रंगावलियाँ  होंगी,
तुलसी क्यारियाँ सजी होंगी,
गोरीयाँ कजरियाँ गाती होंगी,
—ऐसा होगा गाँव मेरा;
मिल जाए तो ज़रुर लौटाना,
मेरा गाँव कहीं खोया है.
(६)
पीपल तले नचते होंगे लट्‍टू ,
अलसाता पेंगता कबरा होगा,
रुककर बेगी दौडती बछिया होगी,
और द्वार द्वार रंभाती गैया होगी.
–बिलकुल यही है मेरा गाँव.
कृपया लौटाना ना भूलना,
मेरा गाँव कहीं खोया है.
(७)
नीम भी वहाँ झरता होगा ,
नन्हें नन्हें आम,
चुन चुन उन्हें, एक बालक,
बेचता होगा ,
निमोलियों के आम,
मन की कोयल कूक रही,
आज उसी गाँव को पाने
—-जी यही है मेरा गाँव
आज कहीं खोया है.
(८)
मन खोया है; गाँव भी खोया है.
खुशी की गठरिया भूल आया है.
आज मन-कोयल, मँडरा रही है,
बचपन वहीं खोकर आया है?
जिस महादेव की मूर्ति पीछे
छिप जाते लुकाछिपी खेलते,
मन्दिर जहाँ  पर मिल जाए ऐसा.
जी हाँ, लौटाना ना भूलना.
मेरा गाँव वहीं पर खोया है.

18 COMMENTS

  1. Pravakta se is kavita ka pahala swaroop bhul gaya tha.
    Pravakta par bhi mila nahin paya. kamputar Kucch bigada hua hai.is lie uasapar Ab likhana bhi ….nahin hota.
    210 tak kul alekh Dal chuka hun.

  2. मैंने यह कविता दो बार पढ़ीं और भावनात्मक रूप से खो गई इस कविता के संसार में। पहले भी यह कविता पढ़ी है।

    अपनी रथ सुदर्शन कविता भी बहुत अच्छी है। मैं अपने विचार प्रवक्ता परलिखूँगी ।

  3. (१)*Hauntingly Beautiful Poetry*
    यही कविता शनिवार दिनांक २८ अप्रैल को प्रॉविडन्स र्‍होड आयलण्ड सम्मेलन में प्रस्तुत हुयी और ज्येष्ठ श्रोताओं द्वारा भी सराही गई. लगता है, ऐसा अनुभव अनेकों को अपने गाँव के विषय में हुआ होगा….तभी तो इतनी सारी प्रतिक्रियाएँ आ ही रही हैं—*Hauntingly Beautiful Poetry* कहा गया.)
    (२) इ मैल से आयी टिप्पणियाँ ही काट कर नीचे चिपकाई हैं. इनके अतिरिक्त भी दूरभाष से आयी टिप्पणियाँ मौखिक थी, जिनकी कोई गिनती ही नहीं. —मधुसूदन* गुजराती और मराठी में भी, मेरे द्वारा ही, अनुवाद किया जाएगा.
    (३) Your poetry is very very good.
    Only town like that I know is Bahadarpur. (MP)
    I do not know what it looks like now.
    Dr. Hema Parekh (छोटी बहन)
    (४) Extremely Beautiful
    Sooder99 (United Hindu Front)
    (५) Dear Madhubhai:
    Enjoyed your poem
    डॉ. Mahesh Mehta
    *(अमरिका के अनेक हिन्दू हितैषी संगठनों के जनक-प्रोत्साहक-कारक-और अविरल -कर्मठ- नेतृत्व के धनी*) लेखक के -शब्द)*
    (६) Loveeeeeeeeeeeeeeeeeed it.
    Great !
    —*संवाददाता – Prakash,* & Neela Waghmare

  4. डॉ. शंकर तत्ववादी जी, डॉ. सुभाषा काक, श्रीमती रेख्रा सिंह, श्रीमती मीनल पण्ड्या, मित्र राजा बर्वे, श्री इन्सान जी, डॉ. हरि बाबु बिंदल, कवि श्री गोपाल बघेल, डॉ. भूदेव शर्मा, श्री रस्तोगी जी, बहन शकुन बहादुर एवं हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता श्री मोहन गुप्ता जी—–(कुछ दूरभाष पर भी संदेश आये थे.)
    *आप सभी की प्रोत्साहक टिप्पणियों से और दूरभाष के संदेशों से भी, अभिभूति का अनुभव कर रहा हूँ.*
    —————————————————–
    अब समझ में आता है, क्यों बडे बडे नेता भारत को ग्रामॊं में बसा देश मानते थे/हैं.
    मेरे चेतस में एक साररूप उद्धरण आकार ले रहा है. क्या?
    ****भारत को सांस्कृतिक रूप में बचाना है, तो, गाँवों की ओर ध्यान केंद्रित करना होगा.****
    ****गाँव पुष्ट होकर, बचने पर ही भारत बचेगा.***** गाँव बचाओ भारत बचेगा. भारतकी संस्कृति बचेगी. ***
    सभी प्रेरक भारत हितैषी इस विधान पर विचार करें.
    सभी का हृदयतल से आभार.
    विनम्र -मधुसूदन

    • डॉ. मधुसूदन जी आपने ठीक कहा है| कृषि-प्रधान प्राचीन भारत के आज इक्कीसवीं शताब्दी के स्वरूप में गाँव ही देश का ह्रदय बने देश को बचाए हुए हैं| संभवतः यही कारण रहा है कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भारतीय गाँवों और उनमें बसे ग्रामीण नागरिकों का ऐसा महत्त्व समझते केंद्र में राष्ट्रीय शासन की स्थापना के तुरंत उपरान्त सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की थी और उसे कार्यरत करते अक्तूबर ११, २०१४ के दिन योजना का शुभारम्भ किया है| देखने सुनने में आया है कि संयुक्त राष्ट्र अमरीका में रहते भारतीय प्रवासी सैकड़ों भारतीय गाँवों में विकास-उन्मुख कार्यों में योगदान देने को आतुर हुए हैं|

  5. आपकी कविता को पढ़कर उसका जीवंत अनुभव किया है और मै अपनी भारत यात्रा के दौरान अपने पैतृक और अपने बच्चों के पैतृक गांव जरूर जाती हूँ और अपने परिवारों में से ज्यादा लोगों को खुशी भी नहीं होती है क्योकि आप अपना हिस्सा भूल क्यों नहीं जाते , हमे क्यों नहीं दे देते लेकिन समस्त गांव तो बहुत खुश होता है की हम अपने गांव को अपने जीवन मे इतना महत्व देते है और उससे जुड़े रहना चाहते है | किसी चीज की महत्ता को समझने मे दूरी बहुत सहायक होती है | मुझे तो भारत मे जितने पीपल के वृक्ष दिखते है तो मुझे भगवान् कृष्ण की वह बात याद आ जाती है की मै वृक्षों में अस्वथ ( पीपल ) हूँ |

  6. आजकल लोग गांव छोड़कर नगर की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। डॉ मधुसूदन जी ने इस कविता द्वारा गांव के जीवन का दर्शन कराया हैं। गांव की साधारण जिंदगी को देखते हुए लोगो को प्रेरणा दी हैं कि बह लोग गांव लौट आए और ग्रामीण जीवन अपनाये। प्रकिति की ओर लौटने के लिए लोगो को प्रेरणा देने बाली अच्छी कविता हैं।

  7. बहुत सुन्दर। जम्मू और कश्मीर में बचपन के दिनों की याद आ गयी।

  8. निम्न कुछ संदेश साहित्य का ज्ञान,रुचि और अधिकार रखनेवाले मित्रों की ओरसे है, आये हैं.
    मैं सभीका आभारी हूँ. —डॉ. मधुसूदन और

    (१)
    डॉ. शंकर तत्त्ववादी जी की ओरसे आया संदेश:
    *सुन्दर कविता मधुभाई ,*
    *बधाई *
    शंकर तत्ववादी

    ——————————————————–
    (२)
    पुराने सहाध्यायी और साथी छात्र *राजा बर्वे जी* की ओर से आया निम्न मराठी संदेश.
    *मला खूप आवडली तुझी कविता.*
    राजा बर्वे
    —————————————–
    (३)
    मीनल पंड्या (गुजराती की कवयित्री, और लेखिका) की ओरसे आया निम्न संदेश.
    *Very nice poem Madhubhai.*

    Regards,

    Meenal Pandya
    —————————————-
    (४)
    *मधुसूदन जी,
    *क्या चित्र उतारा है, ऐसा ही था मेरा गाँव, अब नही रहा । बैर भाव, नशे की लत, गंदगी, आदि ने अच्छी जगहें हडप ली है । मैं अपने गाँव में मंदिर की स्थापना करवा के आया हुँ, कोई जोश उल्लास नही । भंडारे मे सब आये, आरती में कोई नही । .पुजारी की तलाश है, बडी मुश्किल है । तोड फोड का डर है सो अलग । मेरे परिवार वालों को ही सब करना है । पता नही क्या हो गया है, इन गावों को । हम भी तो वही पले बडे हुए, सफल्ता पाई इस मुकाम पर पहुचे, वे पीछी धसक गये ।*
    Hari B. Bindal, PhD, P.E.
    Recipient, Pravasi Bharatiya Samman Award 2017, from President of India.
    Retired, Vessel Environmental Program Manager, US Cost Guard. 2012
    Founder, American Society of Engineers of Indian Origin (ASEI),1983
    Commissioner, PG County, Solid Waste Advisory Committee, 2016 –
    Member, Governing Council Vishwa Hindu Parishad, 2005 –
    Writer, Reformer, and Community Activist.
    ——————————————————————————————
    (५) प्रतिष्ठित कवि श्री गोपाल बघेल *मधु* जी की ओरसे आया संदेश.

    आ. डॉ मधुसूदन जी, नमस्कार !
    मन को छूनेवाली कविता.
    सादर सप्रेम
    With regards
    Gopal Baghel ‘Madhu’
    Toronto, On., Canada
    आ. डॉ मधुसूदन जी, नमस्कार !
    सादर सप्रेम
    With regards
    Gopal Baghel ‘Madhu’
    —————————————-
    (६) WAVES के संस्थापक डॉ. भूदेव शर्मा जी की ओरसे निम्न संदेश आया.

    Dear Madhu ji:
    Beautiful poem. It really reminded me of my early years. Please write more about yourself.
    Has any body kept issues of ‘VISHVA VIVEK’ that I edited. Sorry, I did not save/carry its issues with me here. If I can get copies, a couple of friends can publish from it sections on short stories and on other topics.
    Regards to you and Pallaviben
    Dr. Bhu Dev Sharma
    Professor Bhu Dev Sharma, Former Prof. of Math, Clark Atlanta University, Atlanta, GA, USA Former (Founder) President, World Assn. for Vedic Studies (WAVES, USA), http://www.umassd.edu/indic/waves Former President: Hindu Uni. of America, Orlando Currently in India, 6/16, Chiranjiv Vihar Ghaziabad, UP – 201001, —————————————————————————————————————-

  9. डॉ. मधुसूदन जी, आपकी ह्रदय-स्पर्शी कविता ने मुझे मेरा गाँव याद दिला दिया| चारों ओर क्षितिज तक फैले खेत-खलिहानों के बीच पेड़ों के झुरमुट में छुपे अलावलपुर की भरी दोपहर जब सारा गाँव मध्याह्न-नींद सो रहा होता था तो मैं शिखर छत पर जा पतंग उड़ाता हुआ अपने को ह्रदय-पट पर आज भी देख सकता हूँ| काश! मैं उन क्षणों को चौखटे में मढ़ लेता! धन्यवाद|

    • प्रिय इंसान जी, नमस्कार.
      आप ने भी चार पंक्तियों की टिप्पणी में बडा संदर्भ भर दिया.
      जी, हम भी मित्रों के साथ, मध्यप्रदेश की ग्रीष्म की (हर ग्रीष्म की छुट्टियां ननिहाल में होती ) धूप में बडों की अनसुनी कर पेड तले छाँव में, लट्टू नचाते रहते. जो कविता में भी डाला है.
      और भी कुछ टिप्पणियाँ इ मैल से आयी हैं.
      बहुत बहुत धन्यवाद.
      विशेष:
      आपको भेजा हुआ इ मैल वापस लौट आता है.
      अपना एड्रेस जाँचिए.

  10. मधुसूदन जी,
    क्या चित्र उतारा है, ऐसा ही था मेरा गाँव, अब नही रहा । बैर भाव, नशे की लत, गंदगी, आदि ने अच्छी जगहें हडप ली है । मैं अपने गाँव में मंदिर की स्थापना करवा के आया हुँ, कोई जोश उल्लास नही । भंडारे मे सब आये, आरती में कोई नही । .पुजारी की तलाश है, बडी मुश्किल है । तोड फोड का डर है सो अलग । मेरे परिवार वालों को ही सब करना है । पता नही क्या हो गया है, इन गावों को । हम भी तो वही पले बडे हुए, सफल्ता पाई इस मुकाम पर पहुचे, वे पीछी धसक गये ।

    Hari B. Bindal, PhD, P.E.

    Recipient, Pravasi Bharatiya Samman Award 2017, from President of India.
    Retired, Vessel Environmental Program Manager, US Cost Guard. 2012
    Founder, American Society of Engineers of Indian Origin (ASEI),1983
    Commissioner, PG County, Solid Waste Advisory Committee, 2016 –
    Member, Governing Council Vishwa Hindu Parishad, 2005 –
    Writer, Reformer, and Community Activist.

  11. विद्वद्वर डा. मधुसूदन जी ने “मेरा गाँव” कविता में ग्राम्य-सुषमा का सुन्दर चित्र खींचा है । सीधी सरल भाषा मेंं गाँव के बाल-वृन्द के निश्छल क्रिया-कलापों और मौज मस्ती के विशद वर्णन ने बचपन की मधुर स्मृतियों को अनायास ही मन के आँगन में सजा दिया। मन आनन्दित हो गया।
    अनेकशः साधुवाद !!
    – शकुन्तला बहादुर

    • बहन शकुन्तला जी धन्यवाद.
      समय देकर पढने और टिप्पणी देने के लिए.
      यदि आप और अन्य पाठक भी इस कविता से आनन्दित अनुभव कर पाये;
      तो यह कविता की सफलता है.
      मधुसूदन

  12. डॉ. मधुसूदन जी
    नमस्कार,
    आपने इस कविता के माध्यम से मेरे गाँव की पुरानी यादे फिर से स्मरण करा दी | प्रस्तुत है मेरे गोंव का संबंद में तो पंक्तिया :-

    हिन्डन नदी के किनारे पर बस रहा मेरा गाँव सुराना
    वो मंदिर याद आता है जिसका मंदिर बहुत पुराना

    • नमस्कार रस्तोगी जी.
      वैसे यह जिस गाँव का अनुभव मुझे था, उस गाँव की यह कविता है.
      हर ग्रीष्म में मैं इसी गाँव (ननिहाल) जाता था.
      यह आपके गाँव की भी कविता आपको प्रतीत हुयी, यह हर्ष की बात है.
      मेरे गाँव में नदी नहीं थी.
      आपके कथनानुसार यह गाँव भी हिन्डन नदी के लिनारे स्थलान्तर कर पाया.
      पर आज ऐसे गोवर्धन गाँव खोये चले जा रहे हैं.
      ऐसा अनुभव कुछ मित्र भी व्यक्त कर रहे हैं.
      मुझे दूरभाष पर काफी संदेश भी आए.
      कुछ मेरे संगणक पर भी आए.
      यही कवि के लिए और कविता की सफलता है.
      *वीणा वादिनी की कृपा है.*
      धन्यवाद समय देकर पढने और टिप्पणी देने के लिए.
      मधुसूदन

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