मौसम है मेढकों के उछलने कूदने का

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राकेश कुमार आर्या
2019 के आम चुनाव ज्यों – ज्यों निकट आते जा रहे हैं त्यों – त्यों राजनीति के तालाब में मौसम वैज्ञानिक बने राजनीतिज्ञ उछलने – कूदने लगे हैं । इस समय मुख्य रूप से राजनीति के बाजार में एनडीए और यूपीए नाम की दो तराजू टंगी दिखाई पड़ रही है । इनमें से कई मेंढक इधर-उधर कूद रहे हैं । ‘आया राम – गया राम ‘ – की राजनीति गरमा गई है । सचमुच समय बड़ा कीमती है और अवसरवादी राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों के लिए तो ‘कत्ल की रातों ‘ का मौसम आ गया है । वास्तव में भारत की राजनीति में यूं तो प्रारंभ से ही अस्थिर मानसिकता के अवसरवादी राजनीतिज्ञों की भरमार रही है पर समकालीन राजनीति में चौधरी अजीत सिंह और रामविलास पासवान ऐसे दो चेहरे हैं जो हवा का रुख देखकर और मौसम का मिजाज देख कर ही अपने खेत की राजनीतिक बुवाई करते हैं। पिछले कुछ समय से चौधरी अजीत सिंह भी रामविलास पासवान से पीछे रह गए हैं । अब तो राजनीति के मौसम वैज्ञानिक होने की पदवी से रामविलास पासवान ही जाने जाते हैं।
केंद्र की मोदी सरकार पर रामविलास पासवान ने दबाव बनाया और बिहार के लिए अपनी 6 सीटें सुरक्षित करा लीं। इससे पता चलता है कि उनकी ओर से जितनी भर भी बेचैनी पिछले दिनों व्यक्त की गई थी वह केवल 543 के संसद के निचले सदन अर्थात लोकसभा में अपने लिए 6 सीट सुरक्षित करा लेने के लिए ही व्यक्त की गई थी । वास्तव में रामविलास पासवान की यह सोच उनके राजनीतिक निकम्मेपन को दर्शाती है ,और इससे पता चलता है कि वह सुविधाभोगी राजनीति के अभ्यस्त बन चुके हैं । ऐसी सोच के चलते वह कभी भी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे , क्योंकि इससे उनकी संघर्षशीलता प्रभावित होती है ।अब वह बिना सत्ता के नहीं रह सकते हैं ।
अभी बिहार में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई है। जिसमें मोदी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देने और एनडीए से नाता तोड़ने के बाद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा यूपीए का हिस्सा बन गए हैं। दिल्ली में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय पहुंचकर उन्होंने यूपीए का दामन थामा । वहां जाकर उन्होंने कहा है कि एनडीए में उनका अपमान हो रहा था । कुशवाहा के यूपीए में शामिल होने की घोषणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने बिहार में महागठबंधन के नेताओं की उपस्थिति में की ।
वास्तव में अभी हाल ही में संपन्न हुए 5 राज्यों के चुनावों में भाजपा को राजस्थान , मध्य प्रदेश और झारखंड में सत्ता गंवाने के पश्चात ऐसा संभव हुआ है जब कुछ राजनीतिक मेंढकों को यह चिंता होने लगी है कि एनडीए का जहाज लोकसभा चुनाव 2019 में डूब सकता है । इसलिए सत्ता भोगी राजनीति करने वाले छोटे-छोटे मेंढक टर्राते नजर आ रहे हैं और अपनी कीमत मांग रहे हैं । उन्हें भय सता रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि एनडीए के जहाज में बैठे बैठे वह भी डूब जाएं।
बिहार में अभी पिछले दिनों कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं का जमावड़ा हुआ है । जिसे कुछ लोगों ने इस प्रकार परिभाषित करने का प्रयास किया है कि राजनीतिक दलों के नेताओं का इस प्रकार बैठना भारतीय राजनीति की विचारधारात्मक लड़ाई को इंगित करता है । अब स्थिति यह हो गई है कि राजनीतिक विचारधारा का ध्रुवीकरण तेजी से हो रहा है । एक राजनीतिक विचारधारा के लिए समर्पित राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञ यथाशीघ्र एक तरफ आते जा रहे हैं । वास्तव में जो लोग बिहार में बैठे राजनीतिज्ञों के इस जमावड़े को इस प्रकार देखते हैं , वह भूल करते हैं । भारतीय राजनीति में इस समय विचारधारात्मक संघर्ष की कोई प्रक्रिया नहीं चल रही है । वास्तव में भारतीय राजनीति इस समय मेंढकों की टर्राहट से गर्म दिखाई दे रही है । यह सारे के सारे लोग इस बात से चिंतित हैं कि यदि नरेंद्र मोदी फिर से केंद्र की सत्ता में आ गए तो इस बार इनमें से बहुत सारे नाप दिए जाएंगे । सत्ता के लिए बेचैन ये लोग सत्ता का आवरण ओढ़ कर अपनी चमड़ी बचा सकते हैं और 5 वर्ष के वनवास में जो सत्ता की छटपटाहट इनके मानस में चलती रही – वह भी शांत हो सकती है। अतः राजनीतिक दलों का ध्रुवीकरण या महागठबंधन जैसी घोषणाएं यह सब सुविधाभोगी , सत्ताभोगी अर्थात सत्ता में भागीदारी की उसी घिसी – पिटी मानसिकता को दर्शाती है – जिसमें यह सत्ता का बंटवारा करेंगे और फिर 5 वर्ष देश को लूटेंगे।
इस समय राजनीतिक दलों के लिए आवश्यक और उचित यह है कि वे यदि यूपीए का अंग बनना चाहते हैं तो अपनी उन नीतियों के बारे में जनता को बताएं समझाएं कि हम सत्ता में आने पर अमुक – अमुक नीतियों के माध्यम से देश का कल्याण करेंगे , और साथ ही यह भी बताएं कि पिछले 5 वर्ष में केंद्र की मोदी सरकार की कौन सी ऐसी नीतियां रही हैं, जिनसे जनता का अकल्याण हुआ हो ? -उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि भारत के संविधान में स्थापित समान नागरिक संहिता की अवधारणा को वह स्वीकार करते हैं या नहीं करते हैं । राम मंदिर निर्माण के बारे में उनके विचार क्या है और धारा 370 को वह राष्ट्रहित में कितना उचित या अनुचित मानते हैं ? उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि धर्मांतरण की प्रक्रिया को वह देश में जारी रखेंगे या समाप्त करेंगे । इसके अतिरिक्त देश के मौलिक स्वरूप को बिगाड़ने वाली शक्तियों के साथ वह कैसे निपटेंगे जो धर्मांतरण के माध्यम से यहां के बहुसंख्यक समाज को धीरे – धीरे निगलते जा रहे हैं । उन्हें पाकिस्तान के साथ अपनी नीति का भी खुलासा करना चाहिए कि पाक प्रायोजित आतंकवाद के प्रति वे कैसी नीति अपनाएंगे ? – दुख के साथ कहना पड़ता है कि कोई भी राजनीतिक दल यह स्पष्ट नहीं कर रहा है कि यदि वह सत्ता में आया तो उपरोक्त बिंदुओं पर या मुद्दों पर उसकी सोच या उसकी संभावित सरकार की सोच व नीतियां क्या होगी?
हमारे देश में जिस लोकतंत्र की नींव रखी गई है वह बहुत ही लचीला है और कभी-कभी तो इसे देखकर ऐसा लगता है कि यह लोकतंत्र है ही नहीं, अपितु लोकतंत्र के नाम पर देश विरोधी लोगों और शक्तियों को लाभ पहुंचाने वाला एक ऐसा तंत्र है जो कायरता का प्रतीक बन चुका है। इसे जो भी देश विरोधी शक्ति धमकाती या घुड़की देती है – यह उसी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है और थरथर कांपने लगता है । लोकतंत्र की ऐसी शर्मनाक स्थिति इन्हीं नेताओं ने बनाई है जो आज समय देखकर इधर उधर उछल कूद करते हुए अपने – अपने लिए सुरक्षित ठौर – ठिकाना ढूंढ रहे हैं । हमारे देश की जनता को मूर्ख बनाकर अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने में लगे यह राजनीतिक दल क्या इस समय कोई ऐसा शपथ पत्र दे सकते हैं कि देश हित में यदि उन्हें देश विरोधी शक्तियों से लड़ना पड़ा या उन्हें समाप्त करने की स्थिति आई तो वह वोटों का कोई स्वार्थ नहीं देखेंगे और अपने किसी वोट बैंक की चिंता किए बिना शत्रुदमन को ही प्राथमिकता देंगे ?
अब जबकि जनहित और राष्ट्रहित की बातें हर राजनीतिक दल के नेता की जुबान पर हैं और वह यह कह रहे हैं कि वह गठबंधन जनहित और राष्ट्रहित के दृष्टिगत बना रहे हैं , तब इस समय तो यह और भी अधिक आवश्यक हो गया है कि वे यह स्पष्ट कर दें कि उनकी दृष्टि में जनहित और राष्ट्रहित से अलग कुछ भी नहीं होगा । देश को ‘ कायर ‘ तंत्र की नहीं ‘फायर ‘तंत्र की आवश्यकता है । ऐसा ‘फायर ‘तंत्र जो देश विरोधी तंत्र को जलाने में सक्षम हो । उस ‘फायर ‘तंत्र को यह राजनीतिज्ञ कैसे स्थापित करेंगे ? – बात मोदी या राहुल के विरोध या समर्थन की नहीं है , बात है देश को सक्षम नेतृत्व देने की । गठबंधन की मशक्कत में लगे नेता अपने – अपने वोट बैंक को साधने के लिए यदि ऐसा कर रहे हैं तो वह देश का भला नहीं कर रहे हैं । देश का भला तभी होगा जब वह देश की समस्याओं के समाधान के लिए वह कोई स्पष्ट नीति घोषित करेंगे ,जो अभी भी दिखाई नहीं दे रही है । महागठबंधन की तैयारी करने में लगे नेता केवल मोदी को हटाने की रणनीति या जुगत भिड़ाते दिखाई दे रहे हैं , वह यह नहीं बता रहे हैं कि वह देश विरोधी शक्तियों से कैसे निपटेंगे और कैसे देश में शांति व्यवस्था बनाए रख कर देश को विश्व गुरु बनाने की ओर लेकर आगे बढ़ाएंगे ? जबकि देश इन्हीं बातों पर आश्वस्त होना चाहता है। अच्छा हो कि देश के नेता देश के लोगों की इस सोच का सही उत्तर दें।

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  1. महा-गठबंधन की तैयारी करने में लगे नेता केवल मोदी को हटाने की रणनीति या जुगत भिड़ाते क्योंकर राष्ट्र का सोचेंगे? प्रत्येक भारतीय नागरिक के मन में प्रश्न तो यह होना चाहिए कि महा-गठबंधन के नेताओं ने राष्ट्र के लिए अब तक कीया क्या है? राष्ट्र व स्वयं अपने भविष्य को देखते हुए आज भारतीयों को आगामी निर्वाचनों में इस स्वार्थपरायण महा-गठबंधन जो केवल राष्ट्र-विरोधी शक्तियों को लाभान्वित कर देश को लूटने और लुटाने में लगा है को पराजित कर युगपुरुष मोदी के विकास-उन्मुख प्रयासों को निरंतर बनाए रखना होगा|

    मैंने जब से होश संभाला है भारतीय जन संघ और तत्पश्चात भारतीय जनता पार्टी को ही राष्ट्रवादी राजनैतिक दल माना है लेकिन सच मानों तो युगपुरुष मोदी के भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर आने से पहले दुनिया भर के विकारों के दलदल में धंसी भारतीय राजनीति में अधिकांश समय विपक्ष में बैठी लड़खड़ाती बीजेपी केवल एक लोकतांत्रिक भूमिका निभा पाई थी| विडंबना तो यह कि जिसे लोग लोकतंत्र कहते रहे हैं वास्तव में कांग्रेस का भीड़-तंत्र रहा है जिसमें कल की बीजेपी कोई ठोस योगदान नहीं दे पाई थी| आज युगपुरुष मोदी के नेतृत्व और दिशा-निर्देशन के अंतर्गत यदि कांग्रेस-मुक्त भारत के पुनर्निर्माण के लिए बीजेपी ने छलांग लगाई है तो उसे मत रोको अन्यथा जो मैं अंधकारमय दृश्य देखता हूँ उसमें असहाय दलित, सामान्य श्रमिक और सरलमति किसान को जिनके कंधों पर बैठी भ्रष्टाचार व अनैतिकता की जननी कांग्रेस और उसके नियंत्रण में देशद्रोही महा-गठबंधन से कुछ पा लेने की अभिलाषा लिए अन्य मूर्ख लोग अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारे हाहाकार मचाते दिखाई देते हैं| आज व्यापक संकटमय स्थिति में प्रत्येक भारतीय का उद्देश्य केवल राष्ट्र-विरोधी शक्तियों को आगामी लोकसभा निर्वाचनों में पराजित कर देश को बचाना है| देश बचेगा तो कठोर परिश्रम द्वारा स्वराज में सबका साथ, सबका विकास संभव हो पाएगा|

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