वीरेन्द्र सिंह राठौर
कैबिनेट से सरकारी ड्राफ्ट को मंजूरी मिलते ही अन्ना हजारे ने इसे देश के साथ धोखा बताते हुए….. 16 अगस्त से फिर से आमरण अनशन की घोषणा कर दी और इसके बाद एक बार फिर सरकार हरकत में आ गई ,….और उसने वो ही किया जो एक डरी हुई ढीठ सरकार कर सकती थी….सरकार ने धारा 144 लगा दी…सरकार के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने भी अन्ना को जंतर- मंतर पर अनशन करने की परमिशन नहीं दी ….ये कैसा लोकतंत्र है जहां कोई आदमी अपनी बात नहीं रख सकता….ये तो अन्ना जिन्हें आज देश का जागरूक हिस्सा जानता है वरना सोच लीजिए हमारे और आपके जैसे लोगों की क्या हालत हो……अगर देश का कोई नागरिक सरकार की किसी बात से सहमत नहीं है तो उसे शांति के साथ विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार देश का संविधान भी देता है…तो फिर सरकार संविधान का विरोध क्यों कर रही है…सरकार का डर केवल इस बात से है कि अन्ना हजारे के साथ हर वो आदमी है जो इस पूरे सिस्टम से परेशान हो चुका है….पहली बार किसी मुद्दे पर पुरा देश एक साथ दिख रहा है….ना उम्र की कोई सीमा है, ना भाषा, ना प्रांत का कोई भेद है….कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, असम से लेकर गुजरात तक का हर आदमी चाहता है कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त कानून आए……अन्ना के साथ वो आदमी भी जो कभी एसी के बाहर नहीं निकला….लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना के समर्थन में तपती धूप में जंतर मंतर पहुंच गया….अन्ना के साथ वो आदमी भी जो रोज कुंआ खोदता है और रोज पानी पीता है…..ये वो आम आदमी है जो रोज दिहाड़ी कमाता है, फिर घर का चुल्हा जलता है…अन्ना के साथ वो आदमी भी है जो कहीं ना कहीं इस पूरी व्यवस्था से त्रस्त हो चुका है…और उसके पास अन्ना का साथ देने का अलावा कोई चारा नहीं है….अन्ना कईं बार कह चुके है कि उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी के खिलाफ ना होकर इस सिस्टम के खिलाफ है जो देश और इस देश के नागरिकों को लीलता जा रहा है….अभी सत्ता में कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार है…कोई बड़ी बात नहीं कि जनता अपना फैसला बदल दे …सत्ता कांग्रेस के हाथ से छीनकर कमल थामे बीजेपी के हाथ में दे दे ….लेकिन फिर भी बड़ा सवाल यही है कि क्या सत्ता परिवर्तन के बाद भी आज जो अव्यवस्था और भ्रष्टाचार देश में फैला हुआ है क्या वो सत्ता परिवर्तन मात्र से ठीक हो जाएगा…..शायद नहीं…..कानून बनाने से बड़ी चीज इच्छाशक्ति की होती है…जब किसी की इच्छा ही नहीं होगी तो कितने भी सख्त कानून बना दिए जाए….उसका कोई फायदा नहीं होगा….भ्रष्टाचार को लेकर खुद भारतीय जनता पार्टी कितनी संवेदनशील है…इसी बात से पता चलता है कि कर्नाटक में खनन मामले में चल रहे नाटक का अंत अब जाकर हुआ …..तो क्यों इतने वक्त तक येदियुरप्पा को टाला जा रहा था….बात बात पर नैतिकता के आधार पर सरकार के मंत्रियों से इस्तीफा मांगने वाली बीजेपी घोटाले में सीएम का नाम सामने आते ही येदियुरप्पा से इस्तीफा क्यों नहीं लिया…हो सकता है कि येदियुरप्पा बेकसुर हो लेकिन पूर मामले की जांच के बाद फिर से पद पर आ जाते …इससे बीजेपी की छवि को भी मजबूती मिलती..ये तो बात हो गई देश की दो बड़ी पार्टियां है….मुद्दे पर लौटते हैं….लोकपाल बिल जो सरकार ने पेश किया है वो पहली नजर में तो सरकार का शुभचिंतक लग रहा है …चाहे किसी कि भी सरकार हो….संसद के भीतर सांसदों के कामों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है…मतलब वोट फोर नोट जैसे कांड और किए जा सकते है….वो लोकपाल के दायरे में नहीं आएगें….मनरेगा जैसी योजनाएं भी लोकपाल के दायरे से बाहर रखी गई है…मतलब यहां भी घोटाले किए जाने की संभावना है…..दूसरी ओर बात करे सरकार की नैतिकता की तो वह समय समय पर बदलती दिख रही हैं….सरकार आखिर क्या चाहती है….वो एक ही विषय को लेकर दोहरे मापदंड क्यों अपना रही है….मायावती सरकार राहुल गांधी को भट्टा परसौल में प्रदर्शन की अनुमति नहीं देती है,गिरफ्तार कर लेती है तो वो लोकतंत्र की हत्या हो जाती है…लेकिन जब आधी रात को सोए हुए लोगों पर लाठियां बरसाई जाती है..तो वो लोकतंत्र के लिए जरूरी होता है….मतलब यह कि समय समय पर सरकार के लिए लोकतंत्र की परिभाषा बदलती रहती है…..अगर ये सरकारी लोकपाल बिल संसद में पास हो भी गया तो क्या होगा..वैसे भी केवल ये है खानापूर्ति ही…..और बड़ी बात यह है कि कानून और कानून को देखने वाली संस्था कितनी ईमानदार है…… सरकारी तंत्र की ईमानदारी का पता तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वामी रामदेव के चेले बालकृष्ण के मुद्दे पर जितनी फुर्ति सीबीआई ने इस बार दिखाई है वैसी चपलता अभी तक कभी दिखाई नहीं दी…..फर्जी डिग्री मामले में लुक आउट नोटिस जारी कर चुकी बालकृष्ण को सीबीआई तलाश कर रही थी, बाद में बालकृष्ण सामने भी आ गए….उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया….लेकिन इससे भी ज्यादा संगीन असम के कांग्रेस सांसद एम के. सुब्बा पर है…..उनकी तो नागरिकता पर ही सवाल है…हांलाकि सवाल तो बालकृष्ण की नागरिकता पर भी उठे है लेकिन इसका अभी तक कोई पूख्ता सबूत नहीं मिला है…जबकि सुब्बा के उपर तो सीबीआई चार्जशीट भी दाखिल कर चुकी है फिर भी सुब्बा के उपर अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की…..देश किसी की गिरफ्तारी पर सवाल पर नहीं उठा रहा है….अगर बालकृष्ण दोषी हैं तो उन्हें कानून संमत सज़ा मिलनी चाहिए….लेकिन कानून सब के लिए एक जैसा होना चाहिए….क्योंकि बालकृष्ण के स्वामी रामदेव है…वे रामदेव है जो सरकार के खिलाफ ताल ठोंक चुके है….तो क्या सरकार बदले की भावना से काम कर रही हैं…….क्या सरकारी एंजेसियां सरकार की चमची बन कर रह गई हैं…..कानून बन भी गया तो इसका दुरूपयोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है…सरकार फिर अपनी मंशा अनुसार बदले की भावना के साथ कार्रवाई करेगी…..जो भी हो अभी तो यही कहा जा सकता है कि सच मैं देश के साथ धोखा हुआ है…..5 अप्रैल को अन्ना के आंदोलन के बाद जिस तरह से सरकार ने लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी बनाने का ढोंग किया….वो सबके सामने है…9 बैठकें हुई लेकिन सभी का नतीजा सिफर ही रहा…..संसद में जब बिल पेश किया जाएगा…तो तमाम राजनेताओं और राजनैतिक पार्टिंयों से यही उम्मीद की जाएगी कि वे इसे एक सुर में नकार दे….वरना इस सरकारी लोकपाल बिल से केवल सरकार के अलावा किसी का भी फायदा नहीं होने वाला…..
वीरेन्द्र सिंह राठौर
राठौर जी जब आप यह कहते हैं की
“संसद में जब बिल पेश किया जाएगा…तो तमाम राजनेताओं और राजनैतिक पार्टिंयों से यही उम्मीद की जाएगी कि वे इसे एक सुर में नकार दे….वरना इस सरकारी लोकपाल बिल से केवल सरकार के अलावा किसी का भी फायदा नहीं होने वाला”…..तो आप यह मान कर चलते हैं की वर्तमान सत्ताधारियों के अलावा अन्य सभी जन लोकपाल बिल के समर्थक है.अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलतफहमी के शिकार हैं.कोई भी व्यक्ति या संस्था जो भ्रष्टा चार से ]लाभान्वित हो रहा है,वह कभी नहीं चाहेगा की जन लोक पाल बिल जैसा कोई बिल आये या उसके समर्थन में कोई आन्दोलन सफल हो.ऐसे वर्तमान कांग्रेस सरकार का रवैया तो ऐसा लगता है की वे लोग यह सोचते हैं की अब तो हम लोगों को ही हमेशा शासन करना है,अतः जन लोक पाल बिल से केवल हमें हानि होगी.पर दूसरी पार्टियाँ भी अपने ढंग से जन लोकपाल बिल से होने वाली हानियों का आकलन कर रही है.अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस को छोड़ कर अन्य सभी जन लोकपाल बिल के समर्थन में खड़े हो जाते.तब कांग्रेस सरकार को भी झुकने पर मजबूर होना पड़ता.जन लोक पाल बिल पूरे सिस्टम को झकझोर देना चाहता है.यह बिल आम जनता की भलाई के लिए भले हो,पर जो लोग अपने पद का दुरूपयोग कर रहेहैं उन सबके लिए तो काल के समान है.ऐसे लोगों की एक तो संख्या कम नहीं है,दूसरे वे लोग इस स्थिति में हैं की मनमानी कर सकतेहैं.सच पूछिए तो आवश्यकता है उस तरह के आन्दोलन की जो जेपी के सम्पूर्ण क्रांति के समय दिखा था.अगर जनता सचमुच जन लोकपाल बिल के समर्थन में एकजूट होकर खड़ी हो जाए तो सरकार को झुकना ही पडेगा,पर यह आसान नहीं है,क्योंकि सम्पूर्ण क्रान्ति वाले आन्दोलन के समय बहुतों को अपना उज्ज्वल भविष्य दिख रहा था और उनको पता था की सत्ता में आने के बाद वे एक का तीन करने में समर्थ हो जायेंगे, बहुतों ने ऐसा किया भी पर यहाँ तो हाल यह है की “जो घर जारे आपना चले हमारे साथ”,क्योंकि एक तो जन लोक पाल बिल सत्ता परिवर्तन नहीं चाहता ,अतः पहले वाले की जगह दूसरे को स्थान मिलने की सम्भावना नहीं के बराबर है,दूसरे अगर आ भी गए तो कमाने खाने का जरिया बंद मिलेगा.फिर भी जो आशा बंधती है ,वह आम जनता ख़ास कर नव युवकों के कारण बंधती है,पर देखे भविष्य में क्या होता है?.