आने वाले कल का स्वागत, बीते कल से सीख लिया
नहीं किसी से कोई अदावत, बीते कल से सीख लिया
भेद यहाँ पर ऊँच नीच का, हैं आपस में झगड़े भी
ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत, बीते कल से सीख लिया
हंगामे होते, होने दो, इन्सां तो सच बोलेंगे
सच कहना है नहीं इनायत, बीते कल से सीख लिया
यह कोशिश प्रायः सबकी है, हों मेरे घर सुख सारे
क्या सबको मिल सकती जन्नत, बीते कल से सीख लिया
गर्माहट टूटे रिश्तों में, कोशिश हो, फिर से आए
क्या मुमकिन है सदा बगावत, बीते कल से सीख लिया
खोज रहा मुस्कान हमेशा, गम से पार उतरने को
इस दुनिया से नहीं शिकायत, बीते कल से सीख लिया
भागमभाग मची न जाने, किसको क्या क्या पाना है
सुमन सुधारो खुद की आदत, बीते कल से सीख लिया
नये साल का शोर क्यों?
कुछ भी नया नहीं दिखता पर नये साल का शोर क्यों?
बहुत दूर सत – संकल्पों से है मदिरा पर जोर क्यों?
हरएक साल सब करे कामना हो समाज मानव जैसा
दीप जलाते ही रहते पर तिमिर यहाँ घनघोर क्यों?
अच्छाई है लोकतंत्र में सुना है जितने तंत्र हुए
जो चुनते हैं सरकारों को आज वही कमजोर क्यों?
सारे जग से हम बेहतर हैं धरम न्याय उपदेश में
लेकिन मौलिक प्रश्न सामने घर घर रिश्वतखोर क्यों?
जब से होश सम्भाला देखा सब कुछ उल्टा पुल्टा है
अँधियारे में चकाचौंध और थकी थकी सी भोर क्यों?
धूप चाँदनी उसके वश में जो कुबेर बन बैठे हैं
जेल संत को भेज दिया पर मंदिर में है चोर क्यों
है जीवन की यही हकीकत नये साल के सामने
भाव सृजन का नूतन लेकर सुमन आँख में नोर क्यों?
कामना
नव किरणें मुस्काकर लायीं नये वर्ष का नव पैगाम
कोयल कूक रही है जग में गूँजेगा भारत का नाम
वही आसमां वही फ़िज़ा है वही दिशाएँ अभी तलक
नयी चेतना नये जोश से नया सृजन होगा अविराम
बहुत रो लिये वर्तमान पर परिवर्तन की हो कोशिश
सार्थक होगा तब विचार जब हालातों पर लगे लगाम
पिंजड़े के तोते भी रट के बातें अच्छी कर लेते
बस बातों से बात न बनती करना होगा मिलकर काम
नित नूतन संकल्पों से नव सोच की धारा फूटेगी
पत्थर पे भी सुमन खिलेंगे और होगा उपवन अभिराम