धर्म और मजहब में बहुत अधिक अंतर होता

—विनय कुमार विनायक
वह भी कोई धर्म-मजहब है क्या?
जिस धर्म-मजहब में हर सत्कर्म
सिर्फगुनाह ही गुनाह लगता हो,
हर मानवता विरोधीदुष्कर्म के लिए
मजहब मेंकेवलवाह-वाह हो!

भलावोधर्म-मजहबहोता कहीं
जिसमें राखी की कीमत नहीं,
भाई मानकर बहन राखीपहनाए
या नहीं, कोई अंतर होता नहीं!

कोई विदेशीमजहबी, गैरमजहबीधर्मावलंबियोंसे
नैतिक,पवित्र, चारित्रिक रिश्ता निभाता कभी नहीं!
मजहब में पाप-पुण्य,जायज-नाजायज, नेकी-बदी
केवलजाति-बिरादरी,मजहबीकौमसापेक्षसही!

विदेशीमजहबवालेगैरमजहबी स्वदेशी भाईयोंको
छल-कपट प्रपंचतलवारसे जोर आजमाइशकरके
धर्मांतरित करस्वमजहबी बनाने में सबाब समझते!

वो भी क्याधर्म मजहब होसकता,
जिसमें गैर मजहबी सेघृणा होता,
धर्मात्मा सत्यवादी न्यायप्रियहोना,
सिर्फ हिन्दू धर्मावलंबियोंकारोना!

गैरहिन्दू विदेशीमजहबमें चरित्र नहीं,
धर्म अर्थ काम मोक्ष का कोई रीत नहीं,
मानवता के लिए कोईगीत-संगीतनहीं,
धर्म औरमजहब में कोई भी प्रीत नहीं!

मजहब मेंनारी स्वतंत्रता की बातकभी नहीं होती,
मां बहन बेटी पत्नीअपनेअलगऔकात हेतुरोती!

विदेशी मूल के मजहबहिन्दुत्व से अलग,
ना कोई पूजा, ना कोईमांगलिक उत्सव,
ना कोई रब,ना कोई सत्कर्मऔर अदब,
ना कोई भजन,स्नान, ध्यान वकीर्तन,
ना कोई अरदास,नहीं कोईमंगलाचरण!

ना कोई आत्मीयता, सिर्फदुर्भिसंधीहोती,
नाहीमानव-मानव में मानवताकी बात,
बस निरीह जन्तुओंकी क्रूरतापूर्वकहिंसा,
मानव होकरघृणितमांस खाना-खिलाना,
कुर्बानी लेना-देनाहींहैखुदा कीऔकात!

मजहब को मानने वालेयह नहीं जानते
कि कर्मों का कर्ता धर्ता शरीर नहीं होता
अपितु शरीर स्थितजीवकी आत्माहोती,
आत्मा की प्रवृत्तिहैईश्वरसे मिलने की!

मजहब की सोच शरीर तक जड़वत होती,
परसदाचारी धार्मिक मानवचेतन,मनन,
जिज्ञासा करतेसुख-दुख, सर्दी-गर्मीआदि,
अज्ञात चीजों कीज्ञान हेतुजिज्ञासु होता!

धर्म और मजहब मेंबहुत अधिकअंतर होता,
धर्म मेंजीव-जंतु, जन्म-मरण से मुक्ति चाहता,
मजहब मेंजीते जी काम वासनामें लिप्त होना,
मरकेजन्नतमें हूर-परी, सुराकी चाहत रखना!
—विनय कुमार विनायक

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