कमी है परवरिश में इसलिए मनद्वार ऐसे हैं,
नई कलियाँ मसलते हैं, कई किरदार ऐसे हैं।
नहीं जलते वहाँ चूल्हे, यहाँ पकवान हैं ताजा,
हमारी भी सियासत के नए हथियार ऐसे हैं।
हकीकत जान पाए ना, वहम से ही शिला तोड़ी,
यहाँ अच्छे भले से लोग कुछ बीमार ऐसे हैं।
सिसक होगी ज़रा सी बस नहीं होंगे कोई आँसू,
मुसलसल देखते आए, तुम्हारे वार ऐसे हैं।
सुई की नोक पर बैठी हुई हैं काँच की चूड़ी,
सभी रिश्ते हमारे और, रिश्तेदार ऐसे हैं।
पनाहों में जिन्हें हमनें कभी महफूज रक्खा था,
वही बनने लगे मालिक किराएदार ऐसे हैं।
3.गज़ल
हवस के चंद पल तेरे, यहाँ हर आँख पानी हैं,
मगर अब तक वहाँ खामोश बैठी राजधानी है।
सवा हो जाए ना हमसे कुचल डालो उसे पहले,
पुरुष कुंठा अभी की हैं नहीं सदियों पुरानी हैं।
किसी के कत्ल के किस्से, किसी दुष्कर्म की बातें,
सुबह अख़बार खोलो रोज की बस ये कहानी हैं।
उसे बस दर्द है अपनी बनी सत्ता गवाने का,
शहर में हो रहे दंगे इसी की सच बयानी हैं।
बुझे दीपक, जले घर पर मिले हर हाल में सत्ता,
सियासत दान है, आदत ये उनकी ख़ानदानी है।
कभी बाना पहन वह धर्म का आएंगे चौखट पर,
कि जो उस धर्म से हर वक्त करते बदजुबानी हैं।
चुनावी दौर है फिर से सियासत रंग बदलेगी,
इन्हें चोला चढ़ाना है, उन्हें चादर चढ़ानी हैं।
6.गज़ल
माना कि हुस्न का कोई ख़िताब नहीं है
इस शक्ल पे अभी भी पर नकाब नहीं है
होंगे जहान में वो बादशाह सिकन्दर
अपने यहाँ पे वो कोई नवाब नहीं है
जीवन बिताए बिन ही हारते है जिंदगी
जीना सिखाए ऐसी क्यों किताब नहीं है?
जाने अजाने सबके प्रश्न हो गए है हल
केवल हमारे प्रश्न का जवाब नहीं है
कल देखकर उसे जो चाँद भी ठहर गया
हमको लगा कि, ऐसा आफताब नहीं है
महफ़िल में आप आये चार चाँद लग गए
लगता है आप सा कोई गुलाब नहीं है।
कुलदीप विद्यार्थी