‘संसार में वेदों की प्रतिष्ठा ऋषि दयानन्द के अतिरिक्त अन्य कोई विद्वान कर नहीं पायाः आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय’

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मनमोहन कुमार आर्य

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के परिसर में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय गुरुकुल महासम्मेलन के समापन दिवस पर वेद एवं संस्कृति सम्मेलन का आयोजन 10.30 बजे पूर्वान्ह आयोजित किया गया। इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए आर्यसमाज के विद्वान डा. वेदप्रकाश श्रोत्रिय ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी के दिमाग में यह बात नहीं थी की संस्कृत से देश की उन्नति हो जायेगी। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा से वेद प्रतिष्ठित नहीं है अपितु वेद से संस्कृत भाषा की प्रतिष्ठा है। विद्वान वक्ता ने कहा कि परमात्मा के ज्ञान में सभी शब्द, अर्थ और सम्बन्ध हर समय विद्यमान रहते हैं। उन्होंने कहा कि वेद उत्पन्न नहीं होते। वेदों का ज्ञान तो परमात्मा में हर काल में रहता है। विद्वान आचार्य ने कहा कि कोई यह सिद्ध नहीं कर सकता कि वेद या ज्ञान मनुष्य व मनुष्यों के द्वारा उत्पन्न होता है। डा. श्रोत्रिय ने कहा कि महाभारत काल के बाद संसार में वेदों की प्रतिष्ठा ऋषि दयानन्द के अतिरिक्त अन्य कोई विद्वान कर नहीं पाया। उन्होंने कहा कि बीज में अंकुर रहता है। किसान बीज से अंकुर पैदा नहीं करता अपितु यह तो उसमें पहले से ही विद्यमान रहता है। जब बीज भूमि में पड़ता है और उसे उपजाऊ भूमि, सूर्य का प्रकाश व जल आदि मिलते हैं तो बीज से अंकुर प्रकट होता है। इसी प्रकार से सृष्टि के आरम्भ में ऋषियों के हृदय में वेद ज्ञान उत्पन्न होता है। आचार्य जी ने कहा कि पृथिवी हमें आंखों से दीखती है परन्तु यह अत्यन्त सूक्ष्म परमाणुओं से मिलकर बनी है। यह परमाणु आंखों से दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि परमाणुओं के गुण ही पृथिवी में हैं। आचार्य जी ने कहा कि वेद में भी परमात्मा के वही गुण वर्णित हैं जो कि वस्तुतः परमात्मा में हैं। डा. वेदप्रकाश श्रोत्रिय ने अक्षर, वर्ण और वाक्य की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि अक्षर परमाणु की तरह अन्तिम इकाई है जो कि अविभाज्य है।

 

आचार्य वेद प्रकाश श्रोत्रिय ने आर्यभाषा की चर्चा भी की। उन्होंने अंग्रेजी व संस्कृत भाषा के कुछ उदाहरण दिए। इन उदाहरणों को प्रस्तुत कर श्रोत्रिय जी ने संस्कृत भाषा की विशेषता बताई। आचार्य श्रोत्रिय जी ने धोती की विशेषता भी बताई। उन्होंने पैण्ट का उदाहरण दिया और कहा कि यह समय के साथ बदलती रही है। इसमें अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। कभी पैण्ट किसी प्रकार की बनती है और कभी अन्य प्रकार की। उन्होंने कहा कि धोती सृष्टि की आदि में जैसी थी आज भी वैसी है। इसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ। धोती सृष्टि की आदि से आज तक वैसी की वैसी है।

 

डा. वेदप्रकाश श्रोत्रिय ने कहा वह ईश्वर, वेद, ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के लिए समर्पित रहे हैं और हमेशा रहेंगे। उन्होंने कहा कि किसी विद्वान ने अपने आप को बदला होगा परन्तु मैं अपने आप को कभी नहीं बदलूंगा। मैं जीवन भर ईश्वर, वेद, ऋषि और आर्यसमाज के लिए समर्पित रहूंगा। उन्होंने ओजस्वी स्वरों में कहा कि वेद के लिए मरना व जीना ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिये। उन्होंने अपने विचारों की समीक्षा करते हुए कहा कि ऋषियों के आश्रय से पृथिवी पर वेद ज्ञान प्रकट होता है। उन्होंने कहा कि ऋषि आप्त होता है। उसकी बात व्याप्त होती है। जो व्याप्त होती है वह पर्याप्त होती है। इसी के साथ आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी ने अपने व्याख्यान को विराम दिया।

 

आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान डा. रूप किशोर शास्त्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि देश में वेदों के अनेक विद्वान हुए हैं। देश को वेदों के सबसे अधिक भाष्यकार गुरुकुल कांगड़ी ने दिये हैं। उन्होंने कहा कि वेदों का सबसे अधिक कार्य गुरुकुल में हो रहा है। डा. रूप किशोर शास्त्री जी ने विज्ञान भवन, दिल्ली में सन् 2001 में आयोजित विश्व संस्कृत सम्मेलन का उल्लेख कर कहा कि इस सम्मेलन में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि संस्कृत अमृत भाषा है। इसके दस साल बाद जब दिल्ली में विश्व संस्कृत सम्मेलन हुआ तो उसमें प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा है। शास्त्री जी ने कहा कि संस्कृत का महत्व पूर्व दो प्रधानमंत्रियों ने यथावत् वर्णन किया है।

 

आर्यसमाज की विदुषी आचार्या डा. प्रियंवदा वेदभारती ने कहा कि जल से कमल की शोभा होती है। कमल की शोभा जल से होती है, इन दोनों से सरोवर की शोभा होती है और इन सबसे उद्यान शोभा को प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणियों, आचार्य, आचार्याओं और आर्यसमाज के सदस्यों, इन सबसे आर्यसमाज की शोभा है। आचार्या जी ने बताया कि उनके आर्ष गुरुकुल, नजीबाबाद की पांच छात्रायें सम्पूर्ण अथर्ववेद का सस्वर पाठ याद कर चुकी हैं। सामवेद के सस्वर पाठ भी उनके गुरुकुल की ब्रह्मचारिणियों को स्मरण हैं। आचार्या जी ने मंच पर उपस्थित आचार्य रूप किशोर शास्त्री जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने कन्याओं को वेदाध्ययन में प्रेरित व प्रोत्साहित करने के साथ उनके लिए इस कार्य को सम्पादित करने में अनेक प्रकार की आर्थिक व अन्य सुविधायें प्रदान कराई हैं। उन्होंने कहा कि वेद की सम्पूर्णता इस अर्थ में है कि मानव के लिए जो जो हितकर बातें व ज्ञान है, वह सब वेदों में विद्यमान है। आचार्या जी ने कहा कि वेदों को धारण करने से मनुष्य के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

 

वैदिक विद्वान डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी ने भी सम्मेलन में अपने विचार रखे। उन्होंने आर्यसमाज के तीसरे नियम की चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस नियम में वेदों को सब सत्य विद्याओं की पुस्तक कहा गया है। इसे समझने में लोगों को भ्रान्ति होती है। लोग पूछते हैं कि इस मान्यता की प्रामाणिकता क्या है? विद्वान वक्ता ने कहा कि आयुर्वेद का ज्ञान वेदों में है तथा पदार्थ विज्ञान का ज्ञान भी वेदों में है। उन्होंने कहा कि हमें गुरुकुल में सम्पन्न हुए पी.एच-डी. के काम को आम जनता तक पहुंचाना चाहिये। गुरुकुल में शिल्प विज्ञान पर पी.एच-डी. किया गया है। यह शोध बहुत उच्च कोटि का है। इसे भी जनता तक पहुंचाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि पुस्तकों के द्वारा वेदों के मन्त्रों का सरल भाषा में प्रचार किया जाना चाहिये। विद्वान वक्ता ने कहा कि वेदों पर ठोस कार्य इस प्रकार के गुरुकुल सम्मेलनों से नहीं होना है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि वेदों में निहित विद्याओं को आम जनता तक पहुंचाया जाना चाहिये।

 

सार्वदेशिक सभा में न्याय सभा के अध्यक्ष श्री आर. एस. तोमर ने अपने सम्बोधन में शिक्षण संस्थाओं में नशे की प्रवृत्ति की ओर संकेत किया। उन्होंने कहा कि गुरुकुलीय पद्धति से इन व्यस्नों का निराकरण किया जा सकता है। चरित्र निर्माण, व्यायाम, योग आदि की शिक्षा गुरुकुलों में भली प्रकार से दी जाती है। वेद एवं संस्कृति सम्मेलन में मंगलाचरण के अन्तर्गत पाणिनी कन्या गुरुकुल, वाराणसी की छात्राओं ने वेदों के विकृति पाठ प्रस्तुत किये। अन्त में डा. महावीर अग्रवाल जी का अध्यक्षीय भाषण हुआ जिन्होंने वेदों के महत्व एवं गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता व महत्व पर प्रकाश डाला। इसके बाद विद्वानों व कार्यकर्त्ताओं का सम्मान समारोह सम्पन्न किया गया।

 

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