ये प्रणब दा नहीं, राष्ट्रपति हैं

-वीपी वैदिक-   pranab

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस बार गणतंत्र-दिवस पर राष्ट्र के नाम जो संदेश दिया है, वह अपने आप में असाधारण है। प्रायः राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल द्वारा प्रस्तावित और अफसरों द्वारा लिखा हुआ भाषण पढ़ देते हैं। न तो उसे कोई रस लेकर पढ़ता है, न सुनता है और न ही छापता है लेकिन इस बार प्रणब दा के भाषण की खूब चर्चा रही। उसमें उन्होंने कई मुद्दे उठाए और एक निर्भीक और निष्पक्ष राजनीतिक विश्लेषक की तरह दो-टूक बातें कहीं।

मैं समझता हूं कि चार मुद्दे खास ध्यान देने लायक हैं। पहला, यह कि लोकतंत्र लोकतंत्र होता है, भीड़तंत्र नहीं। भीड़ की अराजकता के आधार पर कोई शासन नहीं चलाया जा सकता। नाम लिए बिना राष्ट्रपति ने आम आदमी पार्टी को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उसे तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी फटकार लगा दी है। देश में जन्मी इस अधकचरी और कच्ची राजनीति पर राष्ट्रपति ने दूसरी टिप्पणी यह है कि चुनाव जीतने के लिए अनाप-शनाप वादे करना और सरकार को धर्मादा बांटने की दुकान बना देना गलत है। यह बात जितनी ‘आप’ पर लागू होती है, उतनी ही कांग्रेस, भाजपा और दूसरे दलों पर भी लागू होती है। गरीबों, पिछड़ों तथाकथित अल्पसंख्यकों आदि को जो रियायतें दी जाती हैं, वे सब शुद्ध राहत की राजनीति है। राहत दो और वोट लो। रिश्वत दो और राज करो। राष्ट्रपतिजी वित्तमंत्री रह चुके हैं। मैं उन्हें क्या बताऊं कि इस देश के वित्तमंत्रियों ने गरीबों को जो जरुरी राहत दी है, यदि वह आपत्तिजनक है तो जो राहत अरबपतियों और खरबपतियों को दी जाती है, क्या वह निंदनीय नहीं है?मालदार व्यक्तियों और कंपनियों को लाखों करोड़ रु. की टैक्स-छूट और दूसरी रियायतें दी जाती हैं या नहीं? लेकिन इस मौके पर राष्ट्रपति को सिर्फ ‘आप’ की राजनीति को ही निशाना बनाना अभिप्रेत है। तीसरा बात जो उन्होंने कही, वह यह है कि सरकारें वादे तो कर देती हैं लेकिन उन्हें पूरे नहीं करतीं। वे भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय संपदा की लूटपाट को रोक नहीं पातीं। यदि वे इन्हें नहीं हटाएंगी तो लोग उन्हें हटा देंगे। यह खतरनाक बात किस पार्टी और किस सरकार पर लागू होती है, यह कहने की जरूरत नहीं है। क्या आज तक किसी राष्ट्रपति ने ऐसी सख्त हिदायत उस पार्टी को दी है, जिसने उसे चुनकर राष्ट्रपति भवन भेजा है? शायद नहीं? तो प्रणब दा ने ऐसा कैसे कह दिया? इसका कारण तो यह हो सकता है कि वे मूलतः सक्रिय राजनीतिज्ञ रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने की लालसा हमेशा उनके हृदय में रही है। यदि वे प्रधानमंत्री बन जाते तो कांग्रेस उस दुर्दशा को प्राप्त नहीं होती, जिसे वह आज है। वे अब राष्ट्रपति के तौर पर खरी-खरी सुना रहे हैं। सच पूछा जाए तो उन्होंने घुमा-फिराकर कांग्रेस के उखड़ जाने की भविष्यवाणी कर दी है।

चैथी बात, उन्होंने जो कह दी है, वह कांग्रेस के लिए सबसे खतरनाक है। उन्होंने एक स्थिर और मजबूत नई सरकार का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि अल्पमत और गठबंधन की सरकार2014 के लिए विनाशकारी सिद्ध होगी। सबको पता है कि कांग्रेस की नैया डूब चुकी है। वह तो सरकार बना ही नहीं सकती। इस समय देश पर मोदी का नशा सवार है। तो प्रणब दा ने जनता को क्या संदेश दिया है? क्या यही नहीं कि मोदी को लाओ और जोरदार ढंग से लाओ। उसकी मजबूत और स्थिर सरकार बनवाओ। प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने इस भाषण से सचमुच यह सिद्ध किया है कि वे पार्टीबाजी से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचने लगे हैं। जिन प्रणब मुखर्जी को 40-45 साल से मैं जानता रहा हूं, यह वे प्रणब मुखर्जी नहीं हैं। ये भारत के राष्ट्रपति हैं।

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