51 शक्तिपीठों मे से एक माता ज्वाला मंदिर जहां प्रजवल्लित रहती है बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं

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चमत्कार कभी तर्कों और तथ्यों के मोहताज नहीं होते। जिनकी आस्था धर्म में होती है वो इसे स्वीकार कर लेते हैं और जिन्हें विज्ञान में भरोसा है वो कोई न कोई कारण ढूँढ ही लेते हैं, चमत्कारों को परिभाषित करने का। हालाँकि भारत के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनके चमत्कार आज भी रहस्य ही बने हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्थित है, जहाँ अनंत काल से अग्नि की ज्वालाएँ प्रज्वलित हैं लेकिन इसके पीछे का कोई पुख्ता कारण किसी को ज्ञात नहीं है। 
मां ज्वाला देवी मंदिर,हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है।माना जाता है कि इस जगह पर ही मां सती की जीभ गिरी थी।इस मंदिर में मां की पांच बार आरती होती है।यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं।इस मदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है। आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई भू-वैज्ञानिक ने कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है। साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है।
बिना तेल और बाती के प्रजवल्लित है नौ ज्वालाएं
ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं, जो माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं। मंदिर एक सबसे बड़ी ज्वाला जो जल रही है, वह ज्वाला माता हैं और अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं।
ज्वाला जी की अलौकिक ज्योतियां मिल कर करती है संसार का निर्माण
ज्वाला जी की अलौकिक ज्योतियां कभी कम या ज्यादा भी रहती हैं जो अधिक से अधिक 14 तथा कम से कम 3 होती हैं जिनका तात्पर्य यह माना जाता है कि यह चतुर्दश दुर्गा चौदह भुवनों की रचना करने वाली हैं जिसमें सत्व, रज व तम तीनों गुण पाए जाते हैं अर्थात ये ज्योतियां मिल कर ही इस संसार का निर्माण करती हैं।
अलग-अलग सुख प्रदान करने वाली है माता की नव ज्योतियां
नव ज्योतियां अलग-अलग सुख प्रदान करने वाली हैं जैसे कि चांदी के जाले में सुशोभित पहली मुख्य ज्योति का पावन नाम महाकाली है जो मुक्ति-भक्ति देने वाली हैं। इसके नीचे दूसरी ज्योति भंडार भरने वाली महामाया अन्नपूर्णा की हैं। दूसरी ओर शत्रुओं का दमन करने वाली चंडी माता की ज्योति हैैं। चौथी ज्योति हिंगलाज भवानी की है जो समस्त व्याधियों का नाश करने वाली हैं।
पांचवीं ज्योति शोक से छुटकारा देने वाली विंध्यवासिनी की हैं, छठी ज्योति धन-धान्य देने वाली महालक्ष्मी की और सातवीं ज्योति भी कुंड में ही विराजमान विद्या दात्री सरस्वती की हैं जबकि आठवीं ज्योति संतान सुख देने वाली अंबिका तथा आयु व सुख प्रदान करने वाली परम-पावन नवम अंजना ज्योति भी यहीं विराजमान हैं।
सर्वप्रथम राजा भूमिचंद ने करवाया मां ज्वाला मंदिर का निर्माण
माँ ज्वाला देवी के इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण राजा भूमिचंद के द्वारा कराया गया। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने इस मंदिर का निर्माण कराया। माँ ज्वाला देवी लखनपाल, ठाकुर, गुजराल और भाटिया समुदाय की कुलदेवी मानी जाती हैं, ऐसे में इन सभी के द्वारा भी मंदिर में लगातार निर्माण कार्य कराए जाते रहे हैं।
ज्वाला देवी की ज्वाला से संबंधित एक पौराणिक कथा
ज्वाला देवी की ज्वाला से संबंधित एक पौराणिक कथा भी है। कथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। एकबार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया। मान्यता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती प्रतित होती है। इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी।
मुगल शासक अकबर ने की थी ज्वाला को बुझााने की नाकाम कोशिश
मुगल शासक अकबर ने इस मंदिर के बारे में सुना तो वह हैरान हो गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा।मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देखकर उसके मन में शंका हुई। उसने ज्वालाओं को बुझाने के बाद नहर का निर्माण करवाया।उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए।लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाई।देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया।
वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बनी मंदिर से निकलने वाली ज्वाला
ज्वाला मंदिर से निकलने वाली ज्वाला का रहस्य विज्ञान और वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है।आजादी के बाद से ही कई भूगर्भ वैज्ञानिक ज्वाला का रहस्य जानने के लिए तंबू गाड़कर बैठ गए। लेकिन उनको भी कोई जानकारी नहीं मिली।वैज्ञानिक कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है।साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है। यह बातें सिद्ध करती हैं कि यह चमत्कारिक ज्वाला है। मंदिर से निकलती ज्वाला का रहस्य आज भी बना हुआ है।

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