ये है दिल्ली मेरी जान

0
165

लिमटी खरे

जनता के बजाए बसों की चिंता में घुल रही हैं शीला

दिल्ली के बारे में कहा जाता है कि जो भी कंकड़ पत्थर पचाने का हाजमा रखता हो, वह भी अगर छः महीने तक दिल्ली का बिना फिल्टर का पानी पी ले तो उसे पीलिया या पेट की बीमारियां होना निश्चित है। दिल्ली के दो तिहाई इलाकों में साफ पानी भी मयस्सर नहीं है। एसे हालातों में दिल्ली की कुर्सी पर तीसरी बार बैठने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सरकार ने लाखों रूपयों की लागत वाली लकझक लो फ्लोर बसों की चमक बनाए रखने के लिए रिवर्स आस्मोसिस प्यूरीफायर प्लांट (आरओ वाटर प्लांट) से इन बसों को धोने की सोची है। दिल्ली के डीटीसी के बेड़े मंे वर्तमान में 3200 बस हैं। इनकी चमक दमक बनाए रखने के लिए वर्तमान में 27 डिपो में से 13 में आरओ तो 14 में सॉफ्टनिंग प्लांट लगाने की तैयारियां युद्ध स्तर पर जारी हैं। अभी हसनपुर डिपो में आरओ प्लांट लगा दिया गया है। अब शीला जी को कौन समझाए कि बस खराब होती है तो होती रहे पर दिल्ली के रहवासियों की सेहत खराब होने से बचाया जाए तो बेहतर होगा, बसों की चमक धमक बनी रहे पर उनकी रियाया के चेहरे की चमक चली जाए इससे उनकी सेहत पर कोई अंतर पड़ता नहीं दिखता।

इसे विकास की संज्ञा न दी जाए जयराम जी

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश पर्यावरण के प्रति काफी जागरूक नजर आ रहे हैं। वनों की कटाई और पर्यावरण के नुकसान को वे विनाश के कारण हुआ मानते हैं। रमेश ने पर्यावरण के नाम पर अनेक परियोजनाओं को ग्रीन सिग्नल के बजाए रेड सिग्नल दिखाते हुए अपने कदम मजबूती के साथ जमाए। हाल ही में उनके अधीन आने वाला पर्यावरण मंत्रालय जिस जगह पर बनाया जा रहा है, उसके लिए तीन दर्जन से अधिक पेड़ों की बली चढ़ाई जाने वाली है। अब सवाल यह उठता है कि राजग सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना और उसके उत्तर दक्षिण गलियारे में वनों की कटाई के चलते अडंगा लगाने वाले वन एवं पर्यावरण मंत्री अपने ही मंत्रालय के भवन के लिए लगभग छः दर्जन पुराने झाड़ों में से तीन दर्जन झाड़ हटाने कैसे राजी हो गए। अब यक्ष प्रश्न यह है कि जयराम रमेश इसे विकास की संज्ञा देंगे या विनाश की।

बिग बी उलझे वन्य जीव नियमों के उल्लंघन में

बीते साल के अंतिम पखवाड़े में एक निजी समाचार चेनल को बाघ बचाने की सूझी और उसने आनन फानन मध्य प्रदेश के पेंच नेशनल पार्क में एक कार्यक्रम का आयोजन कर डाला। इस कार्यक्रम में जान डालने के लिए उसने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को भी आमंत्रित कर लिया। बिग बी आए और कार्यक्रम में हिस्सा लिया। मध्य प्रदेश के बालाघाट संसदीय क्षेत्र के सिवनी जिले और छिंदवाडा संसदीय क्षेत्र में आने वाले इस नेशनल पार्क में वन्य जीवों से संबंधित नियमों का जमकर उल्लंघन किया अमिताभ बच्चन ने। फिर क्या था सिवनी के उत्साही युवा संजय तिवारी ने मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में उच्च न्यायालय में दायर कर दी याचिका। यद्यपि इसमें सीधे सीधे अमिताभ बच्चन को पार्टी नहीं बनाया गया है, फिर भी याचिका में उल्लेखित तथ्यों पर अगर उच्च न्यायालय ने संज्ञान ले लिया तो आने वाले दिनों में अमिताभ बच्चन को जबलपुर आकर सफाई पेश करनी पड़ सकती है।

घोषणामंत्री बनीं ममता बनर्जी

संप्रग के पहले कार्यकाल में स्वयंभू प्रबंधन गुरू बनकर उभरे तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव का अब नाम लेवा भी नहीं बचा है। उनके बाद रेल महकमा संभालने वाली ममता बनर्जी ने आते ही अनेक चमत्कार कर दिए। सबसे पहले तो उन्होंने लीक से हटकर अपना कार्यकाल ही पश्चिम बंगाल में जाकर संभाला। इसके बाद उन्होंने त्रणमूल कांग्रेस के मंत्रियों को फरमान जारी कर दिया कि मंत्री वेस्ट बंगाल में ज्यादा समय दें। दरअसल ममता की चाहत बंगाल का मुख्यमंत्री बनने की है। रेल मंत्री रहते हुए ममता ने जितनी भी घोषणाएं की वे महज घोषणा ही रहीं, उन्हें अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। अब लोग ममता को भारत गणराज्य की रेल मंत्री के बजाए घोषणा मंत्री के तौर पर अधिक पहचानने लगे हैं। पिछले बजट में ममता ने एक हजार किलोमीटर लंबी रेल लाईन बिछाने की घोषणा की थी, अफसोस नवंबर के अंत तक महज 123 किलोमीटर ही रेल की पांते बिछ पाईं दिसंबर समाप्त होते होते यह आंकड़ा 200 तक बमुकिल पहुंच सका। यद्यपि अधिकारियों का दावा है कि मार्च तक आठ सौ किलोमीटर की पांतें बिछा दी जाएंगी। भगवान ही जानता होगा कि घोषणावीर रेल मंत्री ममता बनर्जी की घोषणाओं को अधिकारी यात्रियों की जान के एवज में आठ सौ किलोमीटर पांते बिछाकर कैसे पूरा करेंगे?

अफसरों से हलाकान लवली

अमूमन देखा गया है कि फोन की घंटी बजती रहे और मंत्री फोन न उठाए, पर दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री अरविंदर सिंह लवली की परेशानी इससे उलट ही है। वे फोन लगाते हैं, और उनके मातहत अफसरान उनका फोन ही उठाने से गुरेज करते हैं। परिवहन मंत्री के सचिव एच.पी.एस.सरीन ने अपने आला मंत्री की नाराजगी का इजहार करते हुए अपने विभाग के अफसरों को पत्र लिखा है। इस पत्र की इबारत में साफ किया गया है कि परिवहन मंत्री के आवासीय या मंत्रालय के कार्यालय से जब भी अफसरों को फोन किया जाता है तो उनके फोन या तो स्विच ऑफ मिलते हैं या फिर घन्टी घनघनाती रहती है। पत्र में यह भी कहा गया है कि अगर कोई अफसर न्यायालय या जरूरी बैठक मंे व्यस्त है तो उससे कम से कम यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वह मिस्ड काल देखकर कर काल बैक करे, जो अमूमन नहीं होता है। परिवहन उपायुक्त प्रशासन ने मंत्री की नाराजगी से अफसरों को आवगत कराते हुए साफ किया है अवकाश के दिनों में भी अफसर अपना फोन बंद न रखें।

महामहिम को भी नाप दिया कलमाड़ी ने

कामन वेल्थ गेम्स में आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे सुरेश कलमाड़ी की हिमाकत तो देखिए उन्होंने भारत गणराज्य के पहले नागरिक अर्थात महामहिम राष्ट्रपति को भी नहीं बख्शा है। कलमाड़ी की मण्डली ने महामहिम के नाम का सहारा लेकर क्वींस बेटन का बजट आनन फानन छः गुना बढ़ा दिया। मई 2009 में इसका बजट दो करोड़ 20 लाख रूपए था, जो बढ़ाकर 12 करोड़ 77 लाख रूपए कर दिया गया। इसके लिए इवेंट मेनेजमेंट कंपनी मेसर्स जैक मॉर्टन वर्ल्ड वाईड एवं ए.एम.कार एण्ड वैन हायर्स को अक्टूबर 2009 में अतिरिक्त भुगतान भी कर दिया गया। उधर महामहिम के करीबी सूत्रों का कहना है कि महामहिम की लंदन यात्रा का प्रोग्राम महीनों पहले ही बन गया था, जिसका क्वींस बेटन से कोई सरोकार ही नहीं था। घाघ और शातिर राजनेता सुरेश कलमाड़ी ने महामहिम राष्ट्रपति की उपस्थिति को जिस तरह भुनाया है, उसकी जितनी निंदा की जाए कम ही होगा।

बाबा रामदेव को बाजपेयी की चुनौती

इक्कसवीं सदी में अमीरों और पहुंच सम्पन्न लोगों के योग गुरू बनकर उभरे बाबा रामदेव के मन में भले ही राजनीति करने की बलवती इच्छाएं कुलाचें मार रहीं हों पर देश के अनेक योगियों और अन्य लोगों से उन्हें निरंतर चुनौतियां मिल रही हैं। यह अलहदा बात है कि रामकिशन उर्फ बाबा रामदेव इन चुनौतियों पर कान न दे रहे हों। हाल ही में बाराबंकी जिले के शरीफाबाद निवासी भारतीय पर्वतारोही फाउंडेशन के लाईजनिंग अफसर अजय कुमार बाजपेयी ने बाबा रामदेव को नए तरीके की चुनौति दे दी है। यूपी के एक योग प्रशिक्षक और पर्वतारोही बाजपेयी का कहना है कि बाबा रामदेव भी बाजपेयी की तरह ही बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच शून्य से कम तापमान पर खुले बदन योग कर दिखाएं तब दुनिया उनका लोहा मानेगी। गौरतलब है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी जेब में रखते हुए चुनिंदा आध्यामिक चेनल्स के माध्यम से बाबा रामदेव ने अपने आप को स्थापित कर लिया है, किन्तु आज भी बाबा की कीर्ति उन्हीं के बीच है जिनकी जेबें गर्म हैं।

चोर के हाथ खजाने की चाबी!

पुरानी कहावत है कि चोर के हाथ खजाने की चाबी देने से क्या खजाना सुरक्षित रह सकता है? जवाब नकारात्मक ही आएगा। महाराष्ट्र प्रदेश के नए निजाम पृथ्वीराज चव्हाण ने एक दागी नौकरशाह को ही सूबे का मुख्य सचिव बना दिया है। आदर्श घोटाले में महती भूमिका निभाने वाले नौकरशाह रत्नाकर गायकवाड़ जो मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण (एमआरआरडीए) के आयुक्त थे ने सूबे के नए चीफ सेकेरेटरी की भूमिका संभाल ली है। आदर्श हाउसिंग सोसायटी को मंजिल दर मंजिल निर्माण की अनुमति देने में एमआरआरडीए की भूमिका सबसे अहम रही है। एमआरआरडीए ने आठ करोड़ 11 लाख 80 हजारख् 436 रूपए लेकर 27 मंजिला इमारत की अनुमति प्रदान कर दी थी। इस अनुमति पत्र पर गायकवाड़ की सही है। इसके बाद इसमें 31 मंजिल हो गईं और एमआरआरडीए ने 39 लाख 74 हजार 235 रूपए प्रति मंजिल के हिसाब से जुर्माना वसूला था। माना जा रहा है कि आदर्श हाउसिंग घोटाले के मामले को डाल्यूट करने के लिए गायकवाड़ की तैनाती की गई है ताकि अन्य महकमों के अफसरान को हड़का कर फाईलों को दुरूस्त किया जा सके।

माननीयों के पास महंगी कार का क्या काम

हरयाणा सरकार ने कामकाज को सुगम तरीके से संचालित करने की गरज से नौ मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है। इन सीपीएस के आवागवमन को सुलभ बनाने के लिए सरकारी खजाने पर जमकर बोझ डाला गया है। सरकार ने इनके लिए नौ हॉंडा सीआरवी कार खरीदने का फरमान जारी किया है। एक कार की कीमत 21 लाख रूपए है, इस लिहाज से 1 करोड़ 89 लाख् रूपए महज खरीदी में ही खर्च हो जाएंगे। हरियाणा के एक अधिवक्ता जेएस.भट्टी को यह नागवार गुजरा और उसने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की शरण ले ली है। उधर मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि राज्य में दस मंत्री हैं, जिनके पास एक से अधिक विभाग हैं, जिससे काम सुगम तरीके से नहीं हो पा रहा है, इसीलिए सीपीएस की नियुक्ति की गई है। वकील भट्टी की दलील है कि ये नियुक्तियां राजनैतिक हित साधने और सामंजस्य बनाने के लिए की जाती हैं। गौरतलब होगा कि पूर्व में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह की नियुक्तियों को अवैध ठहराया जा चुका है।

राजनेताओं की भाषा बोलते नौकरशाह

अपने राजनैतिक नफा नुकसान के राजनेता तो चाहे जो भाषा का इस्तेमाल कर लेते हैं किन्तु अब तक नौकरशाहों द्वारा जनता के हितों को ध्यान में रखकर ही बयान जारी किए जाते रहे हैं, संभवतः यह पहला ही मौका होगा जब किसी सूबे के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी द्वारा राजनेताओं की भाषा बोली गई हो। हाल ही में देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा महाराष्ट्र के मुख्य सचिव द्वारा की गई टिप्पणी पर नाराजगी जाहिर करते हुए तीन सप्ताह में स्पष्टीकरण देने की बात कही है। महाराष्ट्र के एक एनजीओ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र के मुख्य सचिव जे.जे.डांगे का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कोई योजना आरंभ नहीं कर सकते। यह बेघर लोगों का मामला है, इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है। एसे बहुत से आदेश हैं और हम इनकी परवाह नहीं करते। बेघर लोग महाराष्ट्र से नहीं वरन बाहरी राज्यों से हैं। यद्यपि डांगे को सीएस के पद से हटाया जा चुका है, किन्तु उन्होंने जो कुछ कहा वह चीफ सेकेरेटरी की हैसियत से कहा तो राज्य सरकार को इसका भोगमान तो आखिर भोगना ही होगा।

कमजोर हो गए हैं अहमद पटेल

कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल के सितारे इन दिनों गर्दिश में ही दिख रहे हैं। कांग्रेस के एक ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की सोनिया गांधी से नजदीकी के बाद अहमद पटेल का ग्राफ नीचे की ओर आने लगा है। पटेल के दरबार में अब भीड़ भी कम दिखने लगी है। महाराष्ट्र के एक क्षत्रप कांग्रेस महासचिव और केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक जो कल तक अहमद पटेल के नौ रत्नों में से एक हुआ करते थे, ने नजाकत को भांपते हुए अपना गाड फादर ही बदल लिया है। वैसे भी मौसम और कपड़ों की तरह अपने आका बदलना वासनिक की फितरत में शामिल है। वासनिक को एनएसयूआई में रमेश चेन्नीथेला लाए फिर सीताराम केसरी और आस्कर फर्नाडिस इनके आका रहे। इसके बाद गुलाम नवी आजाद फिर अंबिका सोनी के रास्ते वासनिक पटेल के पास पहुंचे। वासनिक आजकल गुलाम नवी की देहरी चूम रहे हैं। वैसे यह बात है कि वासनिक जिसके दरबार में हाजिरी बजाते हैं वह राजनैतिक शिखर पर गुंजायमान ही रहता है।

दिग्गी राजा हुए बाग बाग

महाराष्ट्र एटीएस चीफ हेमंत करकरे के साथ हुई बातचीत का ब्योरा देने कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह द्वारा प्रेस कांफ्रेस का आयोजन किया गया। रफी मार्ग पर कांस्टीट्यूशन सेंटर में हाल मीडिया कर्मियों से लबालब भरा था। एक के बाद एक प्रश्नों के जवाब दिग्गी राजा दे रहे थे। इसमंे खास बात यह थी कि प्रश्न का जवाब देते समय दिग्विजय सिंह द्वारा पत्रकार को बाकायदा नाम से पुकारा जा रहा था। मीडिया पर्सन्स कायल थे, कि राजा इतने सारे लोगों को नाम से पहचानते हैं। पत्रकार वार्ता के उपरांत चाय और चिरपरिचित ‘‘दिग्गी ठहाकों‘‘ का दौर चला। चुनिंदा मीडिया पर्सन्स ने राजा दिग्विजय सिंह को घेर रखा था। कुछ राजा की तारीफों में कशेदे गढ़ रहे थे। राजा भी चश्मे के भीतर से चिरपरिचित अंदाज में झांकते हुए मंद मंद मुस्करा रहे थे। इसी बीच किसी ने कह ही दिया -‘‘प्रधानमंत्री के बाद मीडिया का हाउस फुल आपकी पीसी अर्थात प्रेस कांफ्रेंस में ही रहता है।‘‘ राजा पहले तो चौंके फिर सहज होकर मुस्कराकर बोले -‘‘नहीं एसा नहीं है, भई।‘‘ आखिर तारीफ सुनना किसे बुरा लगता है।

शीला रमेश आमने सामने

कांग्रेस के अंदरखाने में नंबर दो नेताओं के बीच जबर्दस्त जंग छिड़ी हुई है। चिदम्बरम प्रणव, अहलूवालिया कमल नाथ, श्रीप्रकाश जास्वाल, वीरप्पा माईली, एस.एम.कृष्णा, आदि की आपस में नहीं बन रही है। हाल ही में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर और खेल गांव के बारे में बयान दे डाला कि पर्यावरण अनुमति के बिना ही इन दोनों का निर्माण हो गया। दिल्ली की निजाम शीला दीक्षित को यह नागवार गुजरा। शीला ने हुंकार भरी और कह डाला कि अक्षरधाम और खेल गांव को यमुना के तट पर बनाने के लिए पर्यावरण विभाग की बाकायदा अनुमति ली गई थी। अब कौन है सच्च कौन है झूठा हर चेहरे पर नकाब है की तर्ज पर यह कहना मुश्किल है कि सच कौन कह रहा है। रमेश पर्यावरण मंत्री हैं, सो उन्हें वास्तविक स्थिति पता होना स्वाभाविक है, वहीं दूसरी ओर शीला दीक्षित तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी हैं इस लिहाज से उनकी जानकारी को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है।

पुच्छल तारा

दिल्ली में ठंड पड़ रही है, सारी दिल्ली जम चुकी है। तापमान नीचे आता जा रहा है। ठंड के कारण लोग घरों में दुबके पड़े हैं। अपने अपने कार्यालयों से झूठ बोलकर अवकाश ले रहे हैं। कोई बीमारी का तो कोई किसे के फायनल होने का बहाना बना रहा है। दिल्ली में रोहणी में रहने वाले संजय पोतदार ने ईमेल भेजा है, संजय लिखते हैं कि एक बॉस ने अपने मातहत से पूछा -‘‘क्या तुम मृत्यु के बाद जीवन पर यकीन करते हो?‘‘

कर्मचारी बोला -‘‘जी नहीं साहेब।‘‘

बॉस फिर बोला -‘‘ठीक बात है, पर अब करने लगो। जिस दादी की मौत पर तुमने परसों अवकाश लिया था, उनका फोन तुम्हारे जाने के बाद आया था, कि तुम्हें जतला दिया जाए कि बाजार से एक पाव प्याज जरूर ले आना।‘‘

Previous articleप्रवक्‍ता लेख प्रतियोगिता में उमेश चतुर्वेदी प्रथम और अनिल कुमार बैनिवाल को द्वितीय स्‍थान
Next articleक्या यह खबर नहीं है?
लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here