ये है दिल्ली मेरी जान

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लिमटी खरे

इस तरह बह रहा है गरीब गुरबों के पसीने से संचित धन

भारत गणराज्य में बुंदेल खण्ड की कहावत ‘‘अंधा पीसे कुत्ता खाए‘‘ अर्थात अंधा गेंहू पीसता जाए और उसी के सामने कुत्ता उस गेंहू के आटे को चट करता जाए, को भारत गणराज्य की सभी सरकारों द्वारा चरितार्थ किया जा रहा है। गरीब गुरबों से करों के माध्यम से एकत्र की गई राशि को जब उन्हीं के हितों में बनी योजनाओं के लिए व्यय किया जाता है तब उसमें राजनेताओं और नौकरशाहों की जुगलबंदी के चलते भ्रष्टाचार का खेल आरंभ होता है। भारत के महालेखापरीक्षक द्वारा हाल ही में जारी बीसवें प्रतिवेदन में साफ तौर पर इस बात को रेखांकित किया गया है। इसके प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि फरवरी 2007 में आरआरडब्लूएच के तहत बासठ लाख का एक प्रोजेक्ट महाराष्ट्र प्रदेश के सुवेद फाउंडेशन नामक एनजीओ को प्रदाय किया गया था। इस एनजीओ को एक ही परिवार मिलकर संचालित कर रहा था। इसके सात एक्जीक्यूटिव सदस्यों में से पांच एक ही परिवार के हैं, और तो और पति और पत्नि इसके अध्यक्ष और सदस्य का महत्वपूर्ण दायित्व निभा रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि इस एनजीओ के मेन्डेट का ग्रामीण विकास से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था।

नए क्लेवर में आ रहा है सिमी

हिन्दुस्तान में आतंक और अनैतिक गतिविधियों का पर्याय बन चुका प्रतिबंधित इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) अब नए स्वरूप को तलाश रहा है। चारों ओर प्रतिबंध की आवाज के बाद अब सिमी का काडर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के बेनर तले एकत्र करने की खबरें आ रही हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो पीएफआई ने दक्षिण भारत में भर्ती के उपरांत अब उत्तर भारत में पैर पसार रहा है। सूत्रांे ने यह बताया कि फरवरी 2006 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद सिमी के काडर को एकजुट रखने के लिए यह किया जा रहा है। गौरतलब होगा कि सरकार द्वारा सिमी पर तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है, और प्रतिबंध हटाने का वाद सिमी ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर किया था जो वह हार चुका है। सिमी के काडर के पीएफआई में समाहित होने पर सबसे अधिक चिंताजनक पहलू यह माना जा रहा है कि यह संगठन अब नक्सलियों को लुभाकर उनसे गठजोड़ की फिराक मंे है। अगर पीएफआई को इसमें कामयाबी मिली तो भारत गणराज्य की आने वाले कल की तस्वीर बहुत ही ज्यादा भयावह हो सकती है।

लाली का शगल रहा है नियम कायदों को ताक पर रखना

प्रसार भारती में सबसे ताकतवर माने जाने वाले दूरदर्शन के मुख्य कार्यकारी आधिकारी लाली का प्रमुख शगल नियम कायदों को तोड़ना रहा है। जब मामला महामहिम राष्ट्रपति के दरबार में पहुंचा तब उन्होंने भी मामले की नजाकत को देखकर लाली के खिलाफ जांच की अनुमति दे डाली। हाल ही का एक घटनाक्रम लाली के व्यवहार को दर्शाता है। दरअसल हुआ यूं कि लाली ने संसद भवन में उस प्रवेश द्वार को अंदर जाने के लिए चुना जिस प्रवेश द्वार का उपयोग माननीय सांसदों द्वारा किया जाता है। द्वारपालों को चकमा देकर उन्होने अंदर प्रवेश पा लिया। अंदर के द्वार पर तैनात संतरी ने उन्हें आगे न जाने की हिदायत देकर बेरंग वापस लौटा दिया। खुद को बहुत बड़ा ब्यूरोक्रेट समझने वाले लाली को आखिर वहां से वापस लौटकर उस द्वार से ही प्रवेश करने पर विवश होना पड़ा जिस द्वार से आम जनता प्रवेश करती है।

न्यायालय से बड़े हैं माननीय!

केंद्रीय राजनीति के सिरमोर सुषमा स्वराज, शत्रुध्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा अरूण जेटली, शाहनवाज हुसैन, सुमित्रा महाजन, अरूण जेतली, राम जेठमलानी, संजय निरूपम, अमर सिंह, केप्टन सतीश शर्मा, दीपेंद्र हुड्डा, राज बब्बर, योगी आदित्यनाथ, महाबल मिश्र, नवीन जिंदल, हरेन पाठक, संदीप बंदोपाध्याय,करिया मुण्डा आदि जैसी हस्तियां देश के न्यायालयों के उपर हैं! जी हां, दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इन माननीयों पर कार्यवाही करने में केंद्र सरकार अपने आप को बौना ही पा रही है। शहरी विकास मंत्रालय में चल रही बयार के अनुसार लगभग दो वर्ष पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन माननीयों सहित नौकरशाहों के लुटियन जोन स्थित सरकारी बंग्लों पर हुए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। कहा जा रहा है कि लुटियन जोन में 71 अवैध निर्माण में से महज 16 निर्माणों पर ही केंद्र सरकार द्वारा कार्यवाही की गई है। गौरतलब होगा कि दिल्ली में प्रसिद्ध वास्तुकार लुटियन द्वारा बनाई गई कालोनी को लुटियन जोन कहा जाता है, जो संरक्षित क्षेत्र में आता है, यहां अवैध निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित ही है।

खेल खतम पैसा हजम

भारत की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में हाल ही में संपन्न हुए कामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार की अनुगूंज लंबे समय तक सुनाई दी गई। भ्रष्टाचार की अविरल गंगा खेल के इस महाकुंभ में बही और देश में जनादेश प्राप्त नुमाईंदों ने अपने अपने मुंह सिलकर रखे। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने भरोसा दिलाया था कि गेम्स के बाद आरोपों की जांच की जाएगी। सरकार टू जी के चक्कर में अपनी बात भूल गई। गेम्स के दौरान दिल्ली के हर वार्ड में कम से कम दो वॉटरलेस यूरिनल ब्लाक बनाने की योजना बनाई गई थी, जो अब ठंडे बस्ते के हवाले हो चुकी है। आज आलम यह है कि कंपनियों ने महज तीन सौ यूरिनल बनाकर काम बंद कर दिया है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि कंपनियों को इन यूरिनल्स से पर्याप्त आमदानी नहीं हो पा रही है। एमसीडी ने यूरिनल्स पर विज्ञापन लगाने का अधिकार कंपनियों को दिया था, किन्तु बने यूरिनल्स पर विज्ञापनों की तादाद बेहद ही कम है, जिससे इसे बनाने वाली कंपनियों ने इससे हाथ खींच लिए हैं।

बिहार की 15वीं विधानसभा में हैं अनेक रंग

बिहार में पंद्रहवीं विधानसभा में अनेक चमत्कार दिखाई पड़ रहे हैं। 243 सीटों वाली विधानसभा में युवाओं की भागीदारी बढ़ना एक अच्छा संकेत माना जा रहा है। इस बार अस्सी के पेटे वाले विधायकों की संख्या महज तीन ही है। सदन में इस बार प्रदेश की जनता के भाग्य का फैसला 141 दागदार विधायक करेंगे। 96 सदस्य स्नातक से कम शैक्षणिक योग्यता वाले हैं तो दस तो बिल्कुल ही निरक्षर हैं। इस बार 47 विधायक करोड़पति हैं। पांचवीं पास विधायकों की संख्या चार, आठवीं पास की सात, दसवीं की 28, बारहवीं की 47 तादाद है। प्रोफेशनल ग्रेजुएट की संख्या 19, एमए पास की तादाद 42, पीएचडी पास की संख्या 21 है। महिला विधायकों की तादाद पिछली बार 26 से बढकर 34 पहुंच गई है, जो सुखद संकेत माने जा सकते हैं। अति पिछडों की तादाद सात से बढ़कर 17 यादव विधायक जो पहले 54 थे अब घटकर 39, कुर्मी 22 से घटकर 19 तो सवर्ण की संख्या 59 से बढ़कर 76 हो गई है। इस बार बिहार के नतीजों ने काफी कुछ उलट पलट कर रख दिया है।

कैदियों को मयस्सर नहीं है तीमारदारी!

देश के आदर्श जेल समझे जाने वाले केंद्रीय कारागार की श्रेणी वाले तिहाड़ जेल में कैदियों या विचाराधीन कैदियों को इलाज और तीमारदारी न मिल पाने से एक के बाद एक वे दम तोड़ते जा रहे हैं। पिछले दो माह में तिहाड़ जेल में चार कैदी इलाज के अभाव में दम तोड़ चुके हैं। जेल प्रशासन सदा की ही तरह न्यायिक जांच की बात कहकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार तिहाड़ की जेल संख्या आठ में बंद हत्या के एक आरोपी कैदी देवीराम पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहा था। जेल के ही चिकित्सालय में उसका इलाज चल रहा था। पिछले शनिवार को उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई। जेल के चिकित्सकों ने उसे दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल रिफर कर दिया। जेल प्रशासन की लालफीताशाही के चलते उस कैदी को समय पर चिकित्सालय नहीं पहुंचाया जा सका। आरोपित है कि इलाज के अभाव में देवीराम ने दम तोड़ दिया। मानवाधिकार के नाम पर दुकानदारी करने वाले संगठन इस मामले में पूरी तरह ही मौन साधे बैठे हैं।

शैंपू उत्पादक और स्किन स्पेशलिस्ट आमने सामने

तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद कैसे? की तर्ज पर अब बालों में रूसी अर्था डेंड्रफ के मसले पर त्वचा रोग विशेषज्ञ और शैंपू निर्माता कंपनियां आमने सामने ही दिखाई पड़ रही हैं। अमूमन सौ में से अस्सी लोग डेंड्रफ की चपेट में होते हैं। शैंपू निर्माता कंपनियों ने इस बात का पूरा पूरा फायदा उठाते हुए लोगों की भावनाओं को जमकर उकेरा, और नतीजा आज बाजार में एंटीडेंड्रफ शैंपू की भरमार है। दृश्य और श्रवण, वेव और प्रिंट मीडिया इसके विज्ञापनों से पटे पड़े हैं। शेंपू निर्माता कंपनियों की पौ बारह देखकर स्किन स्पेशलिस्ट्स का आंग भर आया और उतर गए अखाड़े में। उनका कहना है कि एंटीडेंड्रफ शेंपू के दावे सरासर झूठ है। इनकी निर्माता कंपनियों ने लोगों की भावनाओं को भड़काकर तबियत से मलाई काटी है। एक्सपर्टस का कहना है कि डेंड्रफ से बाल गिरने की बात बेमानी है, इस तरह के मिथक को तोड़ना आवश्यक है कि डेंड्रफ गंजेपन का एक कारक है। अब देखना यह है कि लोग एंटीडेंड्रफ शेंपू को अपनाते हैं या फिर स्किन स्पेशलिस्ट की शरण में जाते हैं।

सुषमा भी ट्विटर पर!

पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर के बड़बोलेपन के कारण चर्चित हुई सोशल नेटवर्किंग वेब साईट ट्विटर के मीडिया के सुर्खियों में आते ही जनसेवकों ने इसके माध्यम से अपना प्रचार प्रसार आरंभ कर दिया है। वालीवुड की मशहूर हस्तियों के एक ट्विट पर मीडिया की सुर्खियां बनने उपरांत जनसेवकों और राजनेताओं ने भी ट्विटर को अपनाना आरंभ कर दिया है। राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी आदि के चर्चित होने के बाद भाजपा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के चाहने वालों ने भी उन्हें ट्विटर पर जाने का मशविरा दे डाला है। अब सुषमा स्वराज भी ट्विट ट्विट करने लगी हैं। मीडिया से रोज रोज रूबरू होने के झंझट से बचने के लिए सुषमा स्वराज का यह प्रयास कितना सफल होता है, यह तो समय ही बताएगा किन्तु बीजेपी सुषमा स्वराज डॉट काम के नाम से ट्विट करने वाली सुषमा को फालो करने वाले मीडिया पर्सन की तादाद अभी बेहद ही कम है। जाहिर है सुषमा स्वराज को उम्मीद होगी कि जल्द ही उनके प्रशंसकों की तादाद में इजाफा हो जाएगा।

लोगों को रास नहीं आ रहा बाबा का राजनीति प्रोग्राम

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में स्वयंभू योग गुरू बनकर उभरे बाबा रामदेव के अनुयाईयों की खासी तादाद है। संभवतः अपने लाखों करोड़ों प्रशंसकों को देखकर बाबा रामदेव के मानस पटल पर भी राजनैतिक उमंगे कुलाछें भरने लगी होंगी। यही कारण है कि योग सिखाने के मूल काम के बजाए बाबा ने राजनीति की पगडंडी पर कदम बढ़ाने आरंभ कर दिए। बाबा रामदेव ने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के नाम से एक संस्था गठित कर दी और फिर लगे केंद्र सरकारों को गरियाने। कभी विदेशों में जमा काले धन को भारत लाने का संकल्प लेते हैं तो कभी राजनीति को भ्रष्टाचार के दलदल से मुक्त कराने का कौल लेते हैं बाबा रामदेव। बाबा रामदेव के इन कस्मे वादों पर जनता को ज्यादा एतबार नहीं दिखता। इसका कारण यह है कि कुछ सालों पूर्व बाबा रामदेव ने साफ तौर पर घोषणा की थी कि जब तक वे भारत गणराज्य के आखिरी आदमी को निरोग नहीं कर देंगे तब तक वे भारत के बाहर कदम नहीं रखेंगे, फिर दनादन विदेशी धरती पर जाकर धूम मचा आए बाबा रामदेव। लोगों को लगने लगा है कि कहीं इसी तरह बाबा का यह कौल भी न हो कि बाबा में राजनीति में आएं और राजनति की दिशा और दशा दोनों ही बदल जाए।

पोल खोलती पोशाकें

अमेरिका में अपनी नौकरी के अंतिम दिनों को काट रहीं भारतीय राजनयिक मीरा शंकर की तलाश की वजह बनी थी, भारत की पारंपरिक महिलाओं की पोषाक साड़ी। इसके बाद से भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में पोषाकों पर चर्चा चल पड़ी है। पब्लिक डिप्लोमेसी पर एक सेमीनार में विदेश विभाग के वर्तमान और पूर्व अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा किए। नौकरशाह रहे राजनयिकों की बहस पहले तो बहुत ही स्वस्थ्य माहौल में चल रही थी किन्तु बाद में वह अचानक ही व्यक्तिगत वेषभूशा पर आकर ठहर गई। विदेश विभाग में सचिव रहे अनेक राजनयिकों ने अपने अपने खट्टे मीठे अनुभवों को आपस में बांटा। अधिकारियों ने मंत्रियों के कपड़ों और सूट टाई पर भी खुलकर प्रकाश डाला। एक अधिकारी ने तो एक पूर्व चर्चित मंत्री जो वर्तमान में भी मलाईदार मंत्रालय मे हैं के बारे मंे काफी कुछ कह डाला। इतना ही नहीं विदेशमंत्री एम.एस.कृष्णा के पास हर दिन के लिए एक अलग और नया सूट होने की बात भी किसी राजनयिक के मुखारबिंद से बाहर आ ही गई।

छत्तीसगढ़ है मानव तस्करों के निशाने पर

मध्य प्रदेश से टूटकर प्रथक हुआ 34 फीसदी आदिवासी आबादी वाला आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ अब मानव तस्करी का प्रमुख गढ़ बनता जा रहा है। केंद्रीय गुप्तचर ब्यूरो और गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि छग राज्य की बालाओं को बहला फुसला कर महानगरों और अन्य राज्यों में ले जाकर बेचा जा रहा है। पिछले तीन साल के आंकड़े उठाकर अगर देखा जाए तो छत्तीगढ़ में 18 हजार 664 लोग गायब हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि महानगरों की लग्जीरियस लाईफ के बारे में स्वप्न बाग दिखाकर छत्तीसगढ़ की युवा बालाओं को अकर्षित कर उन्हें बड़े शहरों के रेड लाईट इलाकों में दलालों के हाथों बेच दिया जाता है। पिछले कुछ सालों में बड़ी तादाद में बालाओं को दिल्ली, मुंबई, पुणे, अमदाबाद, चेन्नई, कोलकता जैसे शहरों में प्लेसमेंट एजेंसियों को तक बेचा गया है। इतना सब कुछ हो रहा है और रमन सिंह के नेतृत्व वाली राज्य की भाजपा और कांग्रेसनीत केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है।

पुच्छल तारा

गुटखा पाउच के माध्यम से अरब खरबपति बनने वाले व्यवसाईयों के लिए बुरी खबर है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने अगले मार्च माह से प्लास्टिक के पाउच में गुटखा बेचने पर पाबंदी लगा दी है। न्यायालय की पाबंदी पर सरकारें पाबंद दिखाई नहीं पड़ती हैं। फिर भी इसी संदर्भ में छत्तीसगढ़ के रायुपर से माधवी श्रीवास्तव ने एक जोरदार ईमेल भेजा है। माधवी लिखती हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उपरांत जो स्थिति बनेगी वह बहुत ही मजेदार होगी। वे लिखती हैं कि राम ने श्याम से कहा कि अगर गुटखा प्लास्टिक के बजाए कागज के पाउच में बिकेगा तो रोजाना ही जेब लाल हो जाएगी। हाजिर जवाब श्याम ने जवाब दिया क्यों टेंशन लेते हो मेरे लाल कोर्ट ने प्लास्टिक के पाउच में गुटखा बेचना प्रतिबंधित किया है न, अरे कक्का, जेबई प्लास्टिक की सिलवा लो न यार, उस पर तो कोई पाबंदी नहीं है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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