यह चमत्कार नहीं, महा-चमत्कार है…

वीरेन्द्र सिंह परिहार

त्रिपुरा विधानसभा के वर्ष 2013 के आम चुनाव में भाजपा को मात्र 1.6 प्रतिशत वोट मिले थे। इससे भी ज्यादा उल्लेखनीय तथ्य यह है कि भाजपा के एक उम्मीदवार को छोड़कर बांकी सभी उम्मीदवारों की जमानतें जप्त हो गई थी। ऐसी स्थिति में इसे मात्र आश्चर्य नहीं, बल्कि दुनिया के महान आश्चर्यों में एक कहा जाएगा कि त्रिपुरा में 25 वर्षों से मात्र शासन ही नहीं कर रही, वरन एकाधिकार जमाए हुए सी.पी.एम. चारोखाने चित्त हो गई और भाजपा ने वहां पर दो-तिहाई बहुमत के साथ विधानसभा का चुनाव जीत कर इतिहास रच दिया। नरेन्द्र मोदी की यह बात यहां पर सच मालुम पड़ती है कि यह शून्य से शिखर की यात्रा है। यद्यपि यह एक बड़ा सच है कि भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी के उदय के बाद कई ऐसी बातें हुई हैं, जो आश्चर्यजनक कही जा सकती हैं। इनमें पहला आश्चर्य तो 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा द्वारा पूर्ण बहुमत प्राप्त करना था, क्योंकि न तो किसी राजनीतिक मनीशी को और न स्वतः भाजपा को यह भरोसा था कि उसे पूर्ण बहुमत मिल जाएगा। बहुत हद तक यही उम्मीद थी कि सहयोगियों के बल पर सरकार बन जाएगी। इसके बाद 2016 में दूसरा आश्चर्य तब देखने को मिला जब असम विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। यह इसलिए कि असम में एक तो भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी तक नहीं थी और दूसरे असम में सीधे-सीधे एक-तिहाई मुस्लिम मतदाताओं के चलते यह कल्पना के परे था कि भाजपा वहां पूर्ण बहुमत वाली सरकार बना सकती है।

भारतीय राजनीति का तीसरा आश्चर्य या यों कहिए कि चमत्कार देखने को तब मिला जब वर्ष 2017 मार्च में उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनावों में भाजपा को मात्र बहुमत ही नहीं बल्कि उसे दो-तिहाई से भी ज्यादा बहुमत मिला। असम की तरह उत्तरप्रदेश में भी भाजपा तीसरे नम्बर की पार्टी थी। इसके अलावा वहां पर बीस प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं की उपस्थिति और घोर जातिवादी राजनीति के चलते भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिलना तो चमत्कार ही कहा जा सकता है। लेकिन त्रिपुरा इन सबसे अलग मामला है, क्योंकि असम में जहां भाजपा की उपस्थिति कई वर्षों से थी और उसके विधायक और सांसद एक प्रभावी तादाद में निर्वाचित होते थे, वहीं उत्तरप्रदेश में भाजपा वर्ष 1989 से 1991 के दौरान पूर्ण बहुमत से सत्ता में रह चुकी है। इसके अलावा वहां पर भाजपा का अच्छा-खासा सांगठनिक बूझ और चाणक्य-नीति के चलते त्रिपुरा में भाजपा ने वह उपलब्धि हांसिल किया, जिसका दूसरा उदाहरण शायद ही कहीं और हो। निस्संदेह इसके पीछे सी.पी.एम. शासन के 25 वर्षों का कुशासन और आतंक भी जिम्मेदार था। भले ही वहां के मुख्यमंत्री माणिक सरकार की छवि एक ईमानदार और सादगी पसंद राजनीतिज्ञ की थी, पर निचले धरातल पर व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त था और सत्ता में बैठे लोग अथाह धन जुटाने में लगे थे।

दूसरी तरफ भाजपा के कार्यकर्ताओं ने एक योजना के तहत दिन-रात परिश्रम किया, यहां तक कि बाहर से संगठन का काम देखने आए कार्यकर्ता सालों-साल यहीं के होकर रह गए। कांग्रेस पार्टी की कमजोरी और पश्चिम बंगाल में सी.पी.एम. से उसकी सांठ-गांठ के चलते भाजपा वहां की मुख्यधारा की पार्टी बन गई और उसने सी.पी.एम. का एक मजबूत किला तोड़ दिया। कुल मिलाकर अब सी.पी.एम. का एक ही किला पूरे देश में केरल ही बचा है और देर-सबेर उसे भी टूटना ही है। त्रिपुरा के अलावा नागालैण्ड का चुनाव भी भाजपा के अनुकूल रहा और सहयोगियों के साथ वह वहां भी सत्ता में पहंुच चुकी है, वहीं मेघालय में भाजपा दो सीटें पाते हुए भी कांग्रेस को 21 सीटें मिलने के बावजूद वहां भी कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने में सफल रही है। इस तरह से अब कांग्रेस के पास मात्र दो स्टेट राज्य कर्नाटक एवं पंजाब बचे हैं। जिसमें कर्नाटक में शीघ्र होने जा रहे चुनावों के चलते उम्मीद है कि वहां भी भगवाध्वज लहराएगा और कांग्रेस मात्र पंजाब में सिमटकर रह जाएगी। इस तरह से इन चुनावों को कांग्रेस-मुक्त भारत की दिशा में एक बड़ा कदम कहा जा सकता है। जनसंघ के दौर में ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कही जानेवाली और तत्पश्चात हिंदी पट्टी या काऊबेल्ट की पार्टी कही जाने वाली भाजपा क्रमषः-क्रमषः पूरे देश में इस तरह छा जाएगी, शायद ही किसी ने सोचा हो। खासतौर पर हिंदू पार्टी कही जानेवाली भाजपा पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां मुस्लिमों और ईसाइयों की बड़ी आबादी है। नागालैण्ड जैसे राज्य में जहां ईसाई आबादी 80 से 90 प्रतिशत है, वहां भाजपा की सफलता के मायने यह कि भाजपा अब ईसाइयों के लिए स्वीकार्य पार्टी बन चुकी है।

गोवा में तो पहले ही यह देखने को मिल चुका है। ऐसी स्थिति में इस बात की बड़ी संभावना है कि भविष्य में केरल का ईसाई समुदाय भाजपा के साथ खड़ा हो जाए और भाजपा के लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त कर दे। अलबत्ता देश के मुस्लिम मतदाता अब भी भाजपा के लिए दूर हैं, क्योंकि कांग्रेस और दूसरी धर्मनिरपेक्षतावादी कही जाने वाली पार्टियों ने पृथक पहचान के नाम पर उनको इतना अलग-थलक कर दिया है कि उनके लिए सुशासन और जनकल्याणकारी कार्यक्रम भी अछूते रह जाते हैं। इस तरह से राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस पार्टी और दूसरे विरोधी दल चाहे भाजपा एवं मोदी के विरोध में चाहे जितना दुश्प्रचार करें, यहां तक कि मोदी को भ्रष्टाचार का संरक्षक तक बताए। नोटबंदी और जी.एस.टी. पर हमला करें, देश में भययुक्त वातावरण का प्रलाप मचाएं। इसी के तारतम्य में राजस्थान और म.प्र. के उप चुनावों में भाजपा की पराजयों के चलते 2019 के आम चुनाव में भले भाजपा की पराजय का दिवास्वप्न देखें। लेकिन हकीकत यही है कि कमोवेश आज पूरे देश की जनता नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ी है और ऐसी स्थिति में इन तीन राज्यों के चुनाव को निश्चित रूप से 2019 का ट्रेलर कहा जा सकता है और यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि 2019 के महासंग्राम में मोदी का रास्ता निरापद है। देश की जनता को यह पूरा भरोसा हो चला है कि मोदी लूट की व्यवस्था से देश को मुक्त कर एक न्यायपूर्ण एवं समतायुक्त व्यवस्था लाने के लिए प्रतिबद्ध ही नहीं कटिबद्ध भी हैं। अलबत्ता म.प्र. एवं राजस्थान जैसे राज्यों सत्ता विरोधी तीव्र कारकों के चलते भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को यहां एक बड़ी सर्जरी अनिवार्य है। इस तरह उपरोक्त चुनाव भले महा-चमत्कार दिखे पर यह जहां एकओर ईमानदारी, शुचिता, जनकल्याण के प्रति प्रतिबद्धता का परिणाम है। वहीं इस सफलता के पीछे डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और एकात्म मानववाद के प्रणेता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय और हजारों-हजार कार्यकर्ताओं के बलिदान और तपस्या का परिणाम है।

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