अतुल गौड़
ये नीरज की प्रेमसभा है जरा संभल कर आना जी…. अब से नीरज जी की वो प्रेमसभाओं में नीरज जी की भर्राई सी गूंज नहीं होगी न अब कोई उनका गीत होगा न कोई नयी कविता होगी पर नीरज तक ही जाने वाले मुसाफिरों ये सफ़र की आखरी मंजिल भी नहीं होगी उन हजारों गीतों में या उन लाजबाब कवितायों में नीरज की छवि हमेशा हमेशा कायम होगी किसी दौर में कठिन संघर्ष करने वाले नीरज ने साहित्य को क्या कुछ दिया है ये कौन नहीं जानता पर इंसानियत का पथ दिखलाने वाला ये अध्यापक जीते जी तो पाठ पढाता ही रहा जाते वक़्त भी वह ये सन्देश दे गया की मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं दरअसल जिंदगी तो जिंदा दिल्ली का नाम है,,, देहदान का उनका फैसला ही नहीं अपितु ये गुहार थी की देखो मैं कहीं मरने ना पायुं ये वो जिन्दा दिल इंसान थे जिन्होंने संघर्षों को अपना दोस्त माना और जब दौलत शोहरत का दौर भी आया तो तब भी कभी खुद अकड़ने नहीं पाया सादगी का जीवन कलम से गहरी दोस्ती और जिंदगी की चुस्की का उन्होंने आखरी दम तक खूब लुफ्त उठाया ये वो नाम है जिसने एक दो दस बीस नहीं बल्कि जीवन के ५० साल से भी ज्यादा समय साहित्य को दिया उन्होंने संघर्ष,,बादर बरस गयो,,,नदी किनारे,, कारवां गुजर गया और तुम्हारे लिए जैसी रचनायों को हम तक पहुचाया फिल्मो के लिए भी उनका योगदान कम नहीं है उन्होंने कई फिल्मो के लिए गीत लिखे और चंदा और बिजली,,पहचान ,,मेरा नाम जोकर फिल्म के उनके गीतों को खूब सराहा गया ७० के दशक में उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयेर पुरूस्कार मिला १९९१ में पद्मश्री तो २००७ में पद्मभूषण से भारत सरकार ने उन्हें नवाज़ा था एक गीत हो तो बखान करदूं कोई एक कविता हो तो उसे बयान करदूं पर यहाँ तो हर तरफ नीरज है दोस्तों मैं कैसे अपने लफ्जों में तुम पर इजहार करदूँ ,,एक दौर था जब नीरज मुबई में रह कर फिल्मो के लिए गीत लिखा करते थे ,,पर नीरज वो इंसान नहीं थे जो रंगीन नगरी की चकाचौंध में रम जाते वो तो वो थे जो कलम के हमसफ़र थे गीतों के बागबान थे तो कविता के कवी थे वो सरल थे सज्जन थे और बस एक कवी थे काल है और एक दिन जरूर आएगा ये वो बखूबी जानते थे,, तभी तो उन्होंने कहा था की काल का पहिया घूमे रे भईया ,,और गीतों से समझाईश भी देते की ये भाई जरा देख के चलो दायें ही नहीं बाएं भी ऊपर भी नहीं नीचे भी,, पर वो एक अपराधी भी थे जो हरबार अपराध करते दिखते थे आदमी थे और आदमी से प्यार करते थे मैं भी उन खुशनसीबवालों में से एक हूँ जिसे नीरज जी को करीब से निहारने और सुनने का भरपूर मौका मिला मेरे शहर में हर साल कभी नीरज निशा हुआ करती और उसकी तारिख का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता,,नीरज आते कविता गुनगुनाते जाते वक़्त बहुत सारा आशीष दे जाते उनके हाथ का ही इस्पर्श है की थोडा बहुत लिख लेता हूँ ,नीरज वो थे जो लाखो की प्रेरणा थे नीरज कहाँ जायेंगे हम से दूर जाकर वो यहीं तो हैं कही किसी कविता किसी गीत के रूप में हम तक आकर शब्दों का समंदर था नीरज गीतों की बरसात का नाम था नीरज साहित्य का चिराग था नीरज लाखों खामोश शब्दों की जुबान था नीरज सरल हंसमुख और मिलनसार व्यक्तिव के धनि नीरज जी की वो पंक्तियाँ भी याद आती हैं जो उन्होंने शायद अपने उपर ही कही थी ,, इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में ए न पीने का सलीका न पीने का शरूर एसे भी लोग चले आये है मैखाने में एसे भी लोग चले आये हैं मैखाने में इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में,,,,,,,