ये लोकतंत्र के राजाओं के इकतरफा भव्य शो हैं इन्हें खारिज कीजिए

विवेक कुमार पाठक
आजकल भारतीय राजनीति में रोड शो चर्चा का विषय बने हुए हैं। चुनाव के एक दो साल पहले तो रोड शो और उनकी महिमा तो देखते ही बनती है। सड़कों पर गाड़ियों के लंबे काफिले और सबसे आगे हाथ हिलाते हुए राजनेता पब्लिक के सामने ऐसे अवतारी रुप में आते दिख रहे हैं जैसे वे किसी दिव्य शक्ति के रुप में प्रकट हुए हैं। जनता चाहे इस राजनैतिक चल समारोह की भव्यता देखने आए या जाम में फंसने के कारण दोनों तरफ बंधी भाव में खड़ी हो जाए मगर रोड शो का नायक राजनेता उसे अपने स्वागत में आई हुई रियाआ मानकर आत्ममुग्ध होकर हाथ हिलाता है। 

लोकतंत्र में जनता के समक्ष राजनैतिक विकल्प देना राजनीतिक दलों का काम है। इसके लिए जरुरी है कि राजनैतिक दल और तमाम निर्दलीय जनता के सामने जाएं और अपनी नीतियां बताएं। आम जनता को बताएं कि गर विधायिका में उन्हें चुन दिया जाए तो वे करोड़ों लोगों की जिंदगी को किस कदर बदलेंगे। वे नौजवानों को किस कदर रोजगार और काम देंगे। समुदाय के बच्चों को निशुल्क और आनिवार्य शिक्षा का संवैधानिक अधिकार वे किस कदर साकार करेंगे। महिलाओं को कैसे सामाजिक सुरक्षा और सम्मान दिलाएंगे। देश प्रदेश गांव और शहर के मजदूरों और श्रमिकों के लिए ऐसा क्या करेंगे जिससे संविधान का दिया वादा पूरा हो सके। हर तरह की गैर बराबरी खत्म करने में वो राजनैतिक दल और राजनेता क्या क्या काम करेगा। उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उस पर क्या कार्ययोजना है और यह कार्ययोजना पहले दल की कार्ययोजना से किस कदर बेहतर है ये भी बताएंगे।
राजनैतिक दल और राजनेताओं के इस मूल दायित्व से इतर आजकल जो देखने में आ रहा है उस पर विचार, चिंतन मनन और व्यापक बहस की जरुरत है।
आप ढोल ढमाके, बड़े बड़े साउंड सिस्टम और हाथ में माइक लिए लोगों को सैकड़ा से लेकर हजार गाड़ियों के काफिले के साथ दर्शन लेकर आते हैं।
भई ये कौनसा लोकतांत्रिक तरीका है। आप जनता से संवाद करने आए हो या दिव्य रुप के दर्शन देने आए हुए हैं महाशय।
सुना है आजादी से पहले राजे रजवाड़े हुआ करते थे। इन राजसी सल्तनत और उनके रणबांकुरों में से अपवाद स्वरुप कई भद्र राजपुरुष बिना दरबार के जनता के बीच हो आया करते थे मगर बहुमत तब भी राजसी दरबार चल समारोहों का ही था।
हाथी पर हीरे मोती और स्वर्ण जड़ित सिंहासन पर राजा और उसके आसपास घोड़ों पर सवार सेनानायक। पीछे दरबार चल समारोह की भव्यता की झांकी।
राजशाही के अनगिनत ध्वज, रियाया पर रौबीले अंदाज में राजा की सुरक्षा के लिए नजर रखते सेनानायक और हजारों सिपाहियों की लंबी कतार।
कुल मिलाकर हाथी, घोड़ों, बग्घी और रथ पर सवार राजा, महाराजा, नरेश और सुल्तान अपनी रियाया या प्रजा को दर्शन देने जब कभी निकला करते थे। ये राजशाही तरीका था। इसमें राजा सबसे अभिवादन और सम्मान पाने की चाहत में अपना सुदर्शन मुख फौज फाटे के साथ महल के बाहर शाही बारात के साथ दिखाता था।
इसमें प्रजा नीचे होती थी और राजा हाथी और रथ पर।
नीचे खड़ी प्रजा चाहे न चाहे अपने से बहुत उंचे स्थान पर दिख रहे राजा का नत मस्तक होकर अभिवादन करती और राजा भी सिर को कुछ नीचे झुकाकर अपने हाथों से नमस्कार और अभिवादन करके अपने को प्रजा हितैषी दयालु नृप का सार्वजनिक प्रमाण पा जाता।
ये राजे रजवाड़ों और रियासतों के दरबार चल समारोह और राजसी बारातें ही लोकतंत्र में रोड शो के नाम से कायम हैं। बहुत दिमाग जिस किसी ने इन्हें सार्वजनिक मान्यता देने में लगाया तो उन्होंने इसका लोकतांत्रिक नामाकरण कर दिया। असल में तो सड़क पर लोकतंत्र के तमाम राजे महाराजे रोड शो ही निकालते हैं मगर अपने इन राजसी चल समारोहों को वे जनहितैषी नाम दे रहे हैं। भारतीय राजनीति में पिछले कुछ दशक से लोकतंत्र के राजाओं के विशाल चल समारोह बहुत निरंतरता के साथ निकल रहे हैं। इन्हें लोकतंत्र का प्रतीक बताया जा रहा है मगर इनमें लोकतंत्र का आधारभूत तत्व संवाद गायब है।
किसी बड़े और विशाल रोड शो में नारे और जयकारों के बीच हाथ हिलाता और राजनेता नीचे खड़े कितने हजार लोगों के दुख दर्द को सुन पाता है। कितने बीमार पता पाते हैं कि उस पर अपने शरीर दुख का अंत करने दवा नहीं है और काम की तलाश में भटक भटकर नौजवान आज भी सड़क पर बेकार खड़ा है। बूढ़े और बच्चों का दर्द ये शोर भरे चुनावी चल समारोह कब सुन पाते हैं।
कितनी मजबूर माताओं, बहनें और बच्चियों का दुख दर्द और परेशानी राजसी चल समारोह में हाथ हिलाते राजनेता के कान तक पहुंचता है।

ये आवाजें, ये पुकार, वो मन की पीड़ा , मन की बात दिल की बात से लेकर आत्मा की बात राजनेता के रोड के शोर में खो जाती है। सब कुछ सुनाई देगा मगर ये आवाजें नारे, जयकारे, प्रचार और वादों और घोषणाओं में खो जाती हैं।
तो असल मायने में लोकतंत्र के सफर पर निकले तमाम नायक रोड शो में जनता से वही इकतरफा संवाद करते हैं जो कभी राजा महाराजा अपने दरबार चल समारोह में हाथी पर बैठकर प्रजा से किया करते थे। ये रोड शो राजतंत्र के प्रतीक हैं और राजाओं की भव्यता और उनके उंचे दर्जे के प्रतीक हैं। हर रोड शो पब्लिक का नीचा दर्जा दिखाता है। ये लोकतंत्र के राजाओं के इकतरफा भव्य शो हैं इन्हें खारिज कीजिए।

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