असंगठित विकास से श्रीनगर की स्थिरता को खतरा

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अफ़साना रशीद

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर धीरे-धीरे अपनी खूबसूरती खोता जा रहा है। सालों भर पर्यटकों से गुलज़ार रहने वाले इस शहर की चमक फीकी होती जा रही है। इसके पीछे प्रकृति का कोई बदलाव नहीं बल्कि विकास के नाम पर समाज की बढ़ती महत्वाकांक्षा है। श्रीनगर को दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता है। लेकिन तेज़ी से बढ़ती आबादी और असंगठित रूप से विकास ने समग्र पर्यावरण मानकों को बर्बाद कर दिया है। इसलिए शहर के सतत विकास के लिए आवश्यक है कि पर्यावरण के साथ-साथ भूमि उपयोग की योजना पर भी एकीकृत रूप से काम किया जाए। इसी के मद्देनज़र शहरी योजना संगठन, कश्मीर की ओर से श्रीनगर मेट्रोपोलिटन रीजन 2035 (सतत विकास और परिवर्तन की योजना) के मास्टर प्लान का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। जिसमे बताया गया है कि 1947 के बाद के वर्षों से श्रीनगर में असंगठित और असामान्य तरीके से आवासीय कॉलोनियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। 1971-91 के मास्टर प्लान के अनुसार यह वृद्धि निचले और तराई क्षेत्रों के पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशा में उन क्षेत्रों में अधिक है जहाँ बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।

पर्यावरणविद गुरचरण सिंह के अनुसार ‘समूचे श्रीनगर पर बाढ़ का खतरा है सिवाए पुराने शहर (जैन कदल आदि को छोड़कर)। बाकि शहर झेलम नदी के लिए बाढ़ का मैदान है। उनके अनुसार ‘जवाहर नगर, राज बाग़, गोजी बाग़, वज़ीर बाग़ और हमामह जैसे शहर के विकसित क्षेत्र आज से लगभग 40 या 60 वर्ष पूर्व झेलम नदी के बाढ़ क्षेत्र हुआ करते थे।‘ गुरचरण सिंह के अनुसार श्रीनगर एक ऐतिहासिक शहर है जो समय-समय पर बाढ़ के खतरों से प्रभावित होता रहा है। दरअसल जम्मू कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र है जो भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन जैसी कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता रहता है। इससे सामजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय क्षति के अतिरिक्त बड़ी संख्या में इंसानी जानों का भी नुकसान उठाना पड़ता है। श्री सिंह के अनुसार शहर की क्षैतिज विकास विशेष रूप से हैदरपुरा, उद्योग नगर, बैमिना, नर्बाल, ज़कुरा समेत कई पॉश इलाक़े इसकी स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती है। उनके अनुसार क्षैतिज विकास के संबंध में लोगों के बीच कुछ गलत धारणाएं हैं जिन्हें प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से इसकी संभावनाओं और विचारों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि शहर के लोग खुद से आगे बढ़कर सड़क और परिवहन समेत सभी मूलभूत आवश्यकताओं की देखभाल खुद से कर सकें। सामाजिक गतिविधियों जैसे स्कूल, घर और अस्पताल की योजनाबद्ध तरीके से भूकंपरोधी निर्माण के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी नागरिकों को वैज्ञानिक विचारधारा से सोंचने की ज़रूरत है।

श्री सिंह के अनुसार एक सदी पहले श्रीनगर लगभग 50 से 60 वर्ग किलोमीटर में बसा था जो अब बढ़कर 1000 वर्ग किलोमीटर से अधिक तक फ़ैल चुका है। कश्मीर घाटी करीब 16 हज़ार वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है, जिसमें लगभग 8000 वर्ग किलोमीटर वन और लगभग 8000 वर्ग किलोमीटर भूमि का कृषि तथा अन्य गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि श्रीनगर शहर का अधिकांश क्षेत्र दलदली भूमि (आद्र भूमि) पर स्थित है, जिनमें से अधिकतर पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया है। लगभग एक सदी पूर्व बादशाह चौक की बाईं ओर से डल झील तक का क्षेत्र दलदली भूमि का हिस्सा हुआ करता था। ठीक इसी प्रकार बटमालू से नरबल तक का क्षेत्र भी आद्र भूमि का एक बड़ा हिस्सा था जो अब आवासीय कॉलोनी में बदल चुका है।

इसके अतिरिक्त केवल कुछ वर्षों पहले तक शहर जंगलों से घिरा हुआ था, जो शहर के लिए फेफड़े के रूप में काम करता था और शहर के निवासियों के लिए शुद्ध हवा की आवश्यकताओं को पूरा किया करता था। इसलिए इसके संरक्षण को सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक जामा मस्जिद देवदार के जंगलों (स्थानीय भाषा में ताश्वान कहा जाता है) से घिरा हुआ था, लेकिन वर्तमान समय में घाटी के दूरदराज़ के इलाकों में ही अब इसका दीदार मुमकिन हो सकता है। जैसे दक्षिण कश्मीर में त्राल क्षेत्र जो श्रीनगर शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और लोलाब घाटी जो उत्तरी कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्र कुपवाड़ा में स्थित है। उन्होंने बताया कि दक्षिण कश्मीर के पंपोर और मध्य कश्मीर के बडगाम ने नागरिकों के बेहतर जीवन के लिए नींव डाली है, जिससे शहर को बाढ़ और भूकंप के खतरों  बचाया जा सकता है।

विशेषकर रूप से दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में आद्र भूमि बाढ़ में स्पंज का काम कर रही है। जो बाढ़ के समय शहर की सुरक्षा का काम करती है। मास्टर प्लान 1971-91 शहर में नागरिकों के लिए प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में अधिक खतरनाक साबित हो रहा है। ऐतिहासिक रूप से, दलदलीय भूमि और झीलें न केवल एक स्वस्थ जल स्रोत हैं बल्कि बाढ़ के दौरान स्पंज का भी काम करती हैं। इसलिए विकास ज़रूर होनी चाहिए लेकिन एक बेहतर रणनीति के साथ शहर के व्यवस्थित विकास न केवल समृद्धि का रास्ता खोलेगी बल्कि सतत विकास की प्रक्रिया को भी पूरा करेगी। संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास के लक्ष्यों में भी शहरों को सुरक्षित और समावेशी बनाने पर ज़ोर दिया गया है ताकि सतत विकास की प्रक्रिया में सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

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