नववर्ष पर तीन कविताएँ

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नववर्ष से

तुम

एक बार फिर

वैसे ही आ गए

और मैं

एक बार फिर

वैसे ही

तुम्हारे सामने हूँ

हमेशा की तरह

अपने साथ

आशाओं के दीप

ले आये हो तुम

हौले-हौले

मेरे पास

अपने भीतर की

तमाम उर्जा

इकठ्ठा कर

पुन:

चल दूँगा

मैं भी

तुम्हारे साथ

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नववर्ष में

मैं

हर नववर्ष में

बुनता हूँ सपने

किसी सुकुमार सपने की तरह

फिर भी

रह जाता है वह

सपना बनकर

हर पल

टूटता है वह

मैं

इसी उधेड़बुन में रहता हँ

शायद एक सपना

साकार हो जाए

इस नववर्ष में

पर कहाँ

कभी होता है ऐसा

मजबूरन

मैं

बार-बार

बुनता हँ

वही पुराना सपना

3

नववर्ष

इंद्रधनुष-सा

बिछ जाऊँगा

सपने

उभर आएंगे

ऑंखों में

रग-रग में

संचरेगी

कर्म की जिजीविषा

चित्र, चेहरा

और हस्ताक्षर

भूलकर

डूब जाएंगे

लोग मुझमें।

-सतीश सिंह

3 COMMENTS

  1. नव वर्ष की बेला आई

    खुशियों की सौगातें लाई

    नया कर गुजरने का मौका

    सद्‌भावों की नौका लाई

    नया वर्ष है, नया तराना

    झूमो-नाचो, गाओ गाना

    इस वर्ष संकल्‍प है अपना

    नहीं किसी को है सताना

    बदला साल, कैलेण्‍डर बदला

    बदला है इस तरह जमाना

    भेजो सबको स्‍नेह निमंत्रण

    गाओ नव वर्ष का तराना।

    हिमांशु कुमार पन्त

    Himanshu Kumar Pant

    eWebGuru.com

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