तीन साल के जश्न का यह सिला दिया सरकार ने जनता को

सिद्धार्थ शंकर गौतम

जैसा अंदेशा था आखिरकार वही हुआ| डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये की वजह से पेट्रोलियम कंपनियों ने आम आदमी की जेब को हलाकान करते हुए पेट्रोल में ६.२८ (वैट एवं कर सहित ७.५४) रुपये की एकमुश्त वृद्धि कर दी| यह देश के इतिहास का पहला मौका है जब पेट्रोल पर एकमुश्त इतनी वृद्धि की गई है| शायद पेट्रोलियम कंपनियों को यह अंदेशा पहले से था कि बार-बार बढ़ते पेट्रोल के दामों से आजिज हो सरकार उनपर बढ़ी कीमतें वापस लेने का दबाव ड़ाल सकती हैं| यही वजह थी कि इस बार पेट्रोलियम कंपनियों ने एकमुश्त दाम बढ़ाए ताकि विरोध होने पर या सरकारी दबाव की वजह से यदि बढ़ी कीमतें कम करने की नौबत आती है तो दो-तीन रुपये कम करने की गुंजाइश हो| इससे पेट्रोलियम कंपनियों का घाटा भी काफी हद पूरा होगा और सरकार की साख भी बची रहेगी| जून २०१० में पेट्रोल को सरकारी मूल्य नियंत्रण से मुक्त करने के बाद इसके दामों में १० बार बढोत्तरी हुई और बीते एक वर्ष में १९ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई है| एक तो रुपये की गिरती साख और उसपर पेट्रोल के दामों में एकमुश्त वृद्धि से यह तो साबित हो गया है कि केंद्रीय सत्ता लगातार बिगड़ते आर्थिक हालातों से निपटने में नाकामयाब रही है| वहीं एक जून से डीजल से दामों में भी वृद्धि संभावित है|

जहां तक बात डॉलर के मुकाबले लगातार टूटते रुपये की है तो सरकार को इसका जवाब देना चाहिए कि अन्य एशियाई देशों की अपेक्षा रुपये के मूल्य में ही क्यूँ गिरावट आ रही है? फिर सरकार ने इस आश्चर्यजनक रूप से टूटती मुद्रा को रोकने के लिए क्या अवश्यंभावी कदम उठाये हैं? क्या भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं कर रहा और यदि कर रहा है तो उसका सकारात्मक प्रभाव क्यूँ नहीं दिख रहा? रुपये के टूटने को अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ना सच्चाई से मुंह मोड़ना है| कमजोर रूपया आयातित वस्तुओं को तो महंगा करेगा ही भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इसके गिरते स्तर से नकारात्मक प्रभाव पड़ना तय है| यदि पेट्रोल के दामों में एकमुश्त मूल्यवृद्धि रुपये के टूटने का असर है तो आगे-आगे देखिये होता है क्या? सरकार की नीतिगत और आर्थिक मोर्चों पर विफलता को देखते हुए रुपये की गिरावट में सुधार आना दूर की कौड़ी लगता है|

 

जहां तक बात पेट्रोल के दामों में एकमुश्त बढोत्तरी की है तो इससे विकराल रूप धारण कर चुकी महंगाई में आग लगना तय है| सरकार का कहना है कि सरकारी तेल कंपनियों को मार्च में समाप्त वित्त वर्ष २०११-१२ में पेट्रोल की बिक्री पर ४८६० करोड़ का नुकसान हुआ है और वर्तमान में उन्हें एक लीटर पेट्रोल पर ६.२८ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है| अतः पेट्रोलियम कंपनियों ने सरकार के मार्फ़त पेट्रोल पर जो एकमुश्त (६.२८ रुपये) दाम वृद्धि की है उससे उन्हें अपना घाटा कम करने में मदद मिलेगी| यह कितना हास्यास्पद है कि एक ओर सरकार को सरकारी एवं निजी उपक्रम की कंपनियों के घाटे की तो फ़िक्र है किन्तु आम आदमी से जुड़े हितों की उसे कोई परवाह नहीं| हालांकि पेट्रोल में मूल्यवृद्धि की आशंका देश को थी किन्तु जिस तरह से एकमुश्त वृद्धि हुई है उससे आम जनता का गुस्सा फूटना तय है| फिर इस मामले में राजनीति न हो ऐसा कैसे हो सकता है? यानी कुल मिलाकर जनता के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने की तैयारियां हो चुकी हैं और सभी इस मौके का फायदा उठाने की फिराक में हैं|

 

वैसे देखा जाए तो पेट्रोल मूल्यवृद्धि को लेकर हंगामा मचा रहे राजनीतिक दल राज्यों में चल रही अपनी पार्टी की सरकारों पर दबाव ड़ाल कर पेट्रोल के दाम में से वैट एवं वृद्धिकर को कम करके आम जनता को थोड़ी राहत तो पहुंचा ही सकते हैं| गोवा में नवनिर्वाचित सरकार वैट में कमी करके राज्य के उपभोक्ताओं को देश में सबसे कम कीमत पर पेट्रोल उपलब्ध करवा रही है| उदाहरण के लिए पेट्रोल में ताज़ा मूल्यवृद्धि के बाद दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत ६३.६४ रुपये से बढ़कर ७३.१४ रुपये प्रति लीटर हो गई है| इसमें २.२० रुपये कस्टम ड्यूटी (५ फ़ीसदी) तथा एक्साइज ड्यूटी, ३ फ़ीसदी एजुकेशन सेस का १४.७८ रुपये और २० फ़ीसदी वैट का १२.२० रुपये होता है| यानी दिल्ली सरकार आम जनता से १ लीटर पेट्रोल पर २९.१८ रुपये राज्य कर के रूप में वसूल रही है| यदि वह इस २९.१८ रुपये में थोड़ी राहत दे तो यक़ीनन आम जनता को पेट्रोल की बढ़ी कीमतों का पता ही नहीं चलेगा| भारी-भरकम विक्रीकर एवं वैट का बोझ राज्य सरकारों ने आम जनता पर ड़ाल रखा है जिसे कम करने की ज़रूरत है| किन्तु राज्य सरकारें यदि आम जनता के हितों की खातिर इतना भी करें तो बाकी राजनीति की गुंजाइश समाप्त हो जाती है न| गोवा सरकार ने आम जनता की बढ़ती तकलीफों के मद्देनज़र पेट्रोल पर से विक्रीकर और वैट घटाया है उसकी सराहना की जानी चाहिए|

 

खैर यह तो आप-हम जानते हैं कि राजनीतिक दल राजनीति करने के मुद्दों को कैसे छोड़ सकते हैं? फिलहाल तो हमें इसी मूल्यवृद्धि के साये में रोज़मर्रा के कार्यों को अंजाम देना होगा और बढ़ती महंगाई से अधिक जूझने हेतु स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रखना होगा| मात्र सरकार को कोसने से कुछ नहीं होगा| सरकार की अकर्मण्यता तो जग-जाहिर हो चुकी है, हमें अपने स्तर पर मंहगाई और आगामी मूल्यवृद्धियों के लिए स्वयं को संतुलित करना होगा| राजनीतिक दलों की राजनीति में हो सकता है पेट्रोल मूल्यवृद्धि में आंशिक कमी हो जाए तो भी इतना तय है कि पेट्रोलियम कम्पनियां अपने घाटे को कम करने हेतु पुनः मौके की तलाश में रहेंगी और उचित अवसर आने पर जनता पर मूल्यवृद्धि के रूप में एक और मार पड़ेगी|

Previous articleकविता:अन्यथा शब्दोँ के लिए चिँता-मोतीलाल
Next articleजनसत्ता का प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम और के. विक्रम राव का सफेद झूठ / जगदीश्‍वर चतुर्वेदी
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here