भगवा आतंक शब्द की अंत्येष्टि का समय

भोपाल देश के ह्रदय स्थल में स्थित है और प्रकृति ने आज भोपाल को समूचे देश के ह्रदय की आवाज बनने का अवसर प्रदान किया है. विचार करें तो लगता है कि – आज दिग्विजय सिंह हिंदूत्व परिवार के मतदाता रुपी वधु से वैसी ही भेष बदलकर भिक्षा मांग रहे हैं जैसी भिक्षा कभी श्रीराम और लक्ष्मण को मारीच के पीछे भेजकर रावण ने माँ सीता से मांगी थी. भेष ब्राह्मण का है अर्थात हिंदूत्व का और विचार व कर्म निस्संदेह “भगवा आतंकवाद” के हैं. वैचारिक धुंध या संक्रमण उत्पन्न करने के दिग्गी राजा के इस धुंध फैलाने के अभियान में निराकरण हेतु, मुझे स्वामी विवेकानंद का एक उद्धरण स्मरण आता है –

“ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं. वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!” हिंदूत्व के संदर्भ में विवेकानंद जी ने जब ये कहा होगा तब उन्हें यह कल्पना नहीं रही होगी इतने व्यापक अर्थों वाली सूक्ति को हम भोपाल लोकसभा चुनाव जैसे छोटे व लघु संदर्भ में उपयोग करेंगे, किंतु आज यह करना पड़ रहा है क्योंकि भोपाल लोकसभा चुनाव हिंदूत्व केन्द्रित चुनाव हो गया है. “भगवा आतंकवाद” जैसे घृणित व कुत्सित शब्द को जन्म देने वालो के विरुद्ध यह चुनाव, इतिहास में  एक प्रतिनिधि घटना बनने जा रही है. आज स्वामी विवेकानंद का आव्हान हमें स्मरण करना चाहिए कि “ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां हमारे पास ही है” और  समय आ गया है कि इन शक्तियों का उपयोग भी कर लें. आज हिंदूत्व के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती हिंदू व छदम हिंदू को पहचानने की हो गई है.

          जब भगवा आतंकवाद जैसा शब्द जबरन गढ़ दिया गया था तब मैंने मेरी “कांग्रेस मुक्त भारत की अवधारणा” पुस्तक में लिखा था कि “भगवा आतंकवाद” जैसा कोई शब्द या टर्म हो ही नहीं सकता, यह एक “अशब्द” है जिसे हमें बोलचाल, लेखन व विमर्श से निकला फेंकना होगा. इस शब्द को दिग्विजय या कांग्रेस ने केवल मोहरा बनकर गढ़ा था, इस शब्द के पीछे वस्तुतः तो वामपंथी छुपे हुए हैं जो प्रेत बनकर वेताल यानि कांग्रेस या यूं कहिये अभी दिग्विजय सिंह की पीठ पर सवार है. भोपाल चुनाव इस समूचे “भगवा आतंकवाद” के वितंडे व दुष्प्रचार के अंतिम संस्कार का अवसर है.

          प्रतीक केवल “भगवा आतंकवाद” नहीं है, प्रतीक देश भर में हिंदू विरोध व हिंदूत्व के मजाक उड़ाने वाले बड़े चेहरों के इस चुनावी रण में उतर जाने का भी है. यह भी क्या विकट चुनौती प्रस्तुत की दिग्गी राजा ने, कि, हिंदूत्व की माला जपते जपते समूचे देश के हिंदू विरोधी चेहरों को भोपाल में इकट्ठा कर लिया!! भोपाल नगर में हिंदू विरोध व हिंदू उपहास के प्रतीक रहे आरिफ अकील व आरिफ मसूद की कुटिलता की पोटली भी निर्लज्जता से अपने सिर पर रखकर भोपाल की गली गली घूम रहें हैं दिग्विजय सिंह. कोई कसर बाकी न बच जाए अतः दिग्विजय सिंह ने यहां हिंदूत्व विरोधी लामबंदी के चेहरा बने येचुरी को भी भोपाल की सड़कों पर उतार दिया जो यह नया जहर उगल गए कि “हिंदू तो सदा से हिंसक रहा है”.  अरे येचुरी जी, हिंदू सदा से सहिष्णु रहा है, इतना सहिष्णु कि कई अवसरों पर इसका भूगोल और इतिहास ही बदल गया और कई अवसरों पर इस “हिंदू सहिष्णुता” ने हिंदूत्व के कुछ अध्यायों का समापन ही करवा दिया. येचुरी जी सहित सभी तथाकथित हिंदू विरोधी वामपंथी व कांग्रेसी ध्यान दे कि यदि हिंदू हिंसक होता तो बाबर हजार मील दूर से भारत में आकर हमारे देश के आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि पर बने मंदिर को नेस्तनाबूद कर बाबरी मस्जिद का निर्माण नहीं कर पाता, न ही दुर्दांत मुस्लिम शासक तैमुरलंग दिल्ली से हरिद्वार के समूचे मार्ग में हिंदू नरमुंड बिछा पाता, हिंदू हिंसक होता तो बख्तियार खिलजी भारतीय ज्ञान के प्रतीक, नालंदा को यूं आग के हवाले न कर पाता, न ही औरंगजेब काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़ पाता और न ही लाखों भारतीय मातृशक्ति को जौहर करने को मजबूर होना पड़ता. यदि हिंदू हिंसक होता तो गुरु गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों को जीवित दीवार में चुनकर मार डालने जैसी दुर्दांत घटना न हुई होती और न ही, मोहम्मद गजनवी श्रीकृष्ण जन्म स्थान को मथुरा में ध्वस्त कर कब्जा पाता. येचुरी को यदि हिंदू सहिष्णुता और उस पर हुए अत्याचारों का इतिहास और पढ़ना हो तो वे संत मतिदास को पढ़ लें, गुरु तेगबहादुर को पढ़ लें, जलियांवाला बाग़ पढ़ लें, भगतसिंह के बम फेंकने की मानवीय शैली पढ़ लें, भारत का धर्म आधारित विभाजन और उसके बाद यहां की भूमि पर मुस्लिमों की बसाहट व पाकिस्तान से हिन्दूओं का मारकाट भरा निर्वासन पढ़ लें, वे सोहरावरदी पढ़ लें, मोपला काण्ड पढ़ लें. और यदि पुराना इतिहास न पढ़ना हो तो येचुरी, वामपंथ और इनके कुलगुरु दिग्विजय सिंह को हाल ही का “रामसेतु विध्वंस” “भगवान राम को काल्पनिक कहने का शपथपत्र” और “ऐन दीवाली की रात्रि पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी का तालिबानी आदेश” पढ़ लेना चाहिए. इन घटनाओं सहित लाखों अन्य इतिहास सिद्ध घटनाओं ने यह ब्रह्मसत्य स्थापित किया है कि हिंदू हिंसक नहीं सहिष्णु रहा है, क्षमाशील रहा है, सभी को अपने में समा लेने को आतुर व उत्सुक समाज रहा है! जिस  रामायण महाभारत के माध्यम से राहुल गुरु, दिग्विजय सिंह के गुरु, येचुरी ने हिन्दूओं को हिंसक बताने का एतिहासिक जहर उगला है उन ग्रंथों के मर्म, महातम्य व मानस को यदि अंश भर भी समझा होता तो आप आज यह कहने के बाद लज्जा से डूबकर मर गए होते.

          भोपाल का लोकसभा चुनाव “भगवा आतंकवाद” की, इसकी पूर्व पीठिका की और इस पीठ पर उत्पन्न हो रहे इन नित नए “हिंदू हिंसक” जैसे वितंडों, प्रलापों व पिशाच स्वरों के बौद्धिक हिसाब किताब का एक सुअवसर बन गया है.

        दिग्विजय सिंह का हिंदू चिंतन का हिसाब किताब केवल इतना ही नहीं है. ये महाशय कभी मप्र के मुखिया रहते हुए यह भी कह गुजर गएं हैं कि

“आतंकवादी घटनाओं में मुस्लिमों से अधिक हिंदू सम्मिलित रहते हैं”. पुरे देश का हिंदू बंधू भोपाल के हिन्दूओं से यह आशा रखता है कि वह केवल यह स्मरण न रखे कि, दिग्विजय सिंह ने नामांकन के समय ही कहा था कि – “हिंदूत्व शब्द मेरी डिक्शनरी में नहीं है” बल्कि इस प्रकार का पिछ्ला व भावी प्रलापो का हिसाब किताब इस चुनाव में कर दे. दिग्गी राजा के चुनाव में शनैः शनैः हिंदू विरोधी दीपा मेहता का आना, “भारत तेरे टुकड़े होंगे – इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह” वाले कन्हैया कुमार का भोपाल आना, दिग्गी का स्वयं को “अफजल के कातिलों की जिन्दगी को अपनी शर्मिंदगी बताने वाले कन्हैया कुमार” का प्रसंशक बताना, हिंदू प्रतीकों के भंजन का चेहरा बनी स्वरा भास्कर का लोकसभा चुनाव में आना आदि आदि बहुत सी घटनाएं हैं जो एक नेशनल डिस्कोर्स का हिस्सा बनेगी यदि यहाँ से इस चुनाव में दिग्गी विजयी हुए तो. इस समूचे फेब्रिकेटेड या जबरन गढ़े जा रहे हिंदू विरोधी अभियान की टाइमिंग बड़े शैतानी दिमाग की उपज है तो भोपाल को केंद्र बनाकर विकसित की जा रही है. इस घातक जियोग्राफी को भी इस देश को समझना होगा और एकाएक इन सब हिन्दुत्व विरोधी तत्वों को एकत्रित करने के पीछे की पूर्वपीठिका में मढ़े गए नर्मदा यात्रा से लेकर हजार संतो को भोपाल में एकत्रित कर उनसे राजनैतिक तमाशा खड़ा करवाने के कालनेमि प्रयोगों को भी इस देश के  हिंदू समाज को भीतर तक समझना होगा. जिस रामायण, महाभारत व गीता को लेकर समूचे विश्व में हमें आस्था की दृष्टि से देखा जाता हो और जिन ग्रंथों पर गर्व करते हुए हमारी लाखों पीढियां गुजर गई हो उन ग्रंथों पर हो रही राष्ट्र विरोधियों के दुर्भिसंधि से भरे हुए इन दुस्साहसी व दुर्दांत हमलों का गवाह भोपाल बन गया है. अब देखना यह है कि इस लोकसभा चुनाव में भोपाल की जनता इस हिंदूत्व पर हुए इस भीषण हमले का गवाह मात्र बनकर रह जायेगी या न्यायाधीश बनकर दोषियों को सजा भी देगी !! 

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