सब छोड़कर एकजुट होने का है समय

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लिमटी खरे

जनता कर्फ्यू के बाद टोटल लॉक डाऊन सहित अनेक ऐसे फैसले हैं जो केंद्र सरकार के द्वारा देश की जनता के हित तो देखते हुए लिए गए हैं। कमोबेश सभी सियासी दलों के द्वारा इस संकट की घड़ी में प्रधानमंत्री के द्वारा लिए गए फैसलों का न केवल स्वागत किया है वरन विरोधी दल भी प्रधानमंत्री के साथ ही खड़े दिख रहे हैं।

यह सच है कि आजाद भारत में संभवतः यह पहली बहुत बड़ी विपदा होगी, जिसका सामना देश कर रहा है। भारत में आजादी के बाद आने वाली बड़ी आपदाओं में यह विभीषिका ही सबसे बड़ी मानी जा सकती है। आजादी के पहले भी भारत में अनेक आपदाएं आई हैं।

देखा जाए तो आजादी के उपरांत राज्य या केंद्र के संविधान के विषयों में आपदा प्रबंधन का उल्लेख कहीं नहीं मिलता था, किन्तु 2001 में गुजरात के भुज में आए भीषण भूकंप ने देश को हिलाकर रख दिया था। इसके बाद 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया था।

कोरोना वायरस का प्रकोप एक प्रकार की जैविक आपदा माना जा सकता है। यह केमिकल बायोलॉजिकल रेडियोलॉजी एंड न्यूक्लियर (सीबीआरएन) डिफेंस का हिस्सा होगा। अतिरिक्त सहायता के लिए राज्य या स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एनडीएमए, राष्ट्रीय आपदा (एनडीआरएफ) और यहां तक की सैन्य बलों को आग्रह किया जा सकता है।

भारत में आपदाओं की अगर बात की जाए तो 1993 में लातूर में आया भूकंप ही आजादी के बाद की सबसे बड़ी आपदा मानी जा सकती है। इसका प्रभाव लातूर और उस्मानाबाद के जिले में सबसे ज्यादा देखने को मिला था। इसमें लगभग बीस हजार लोग काल कलवित हुए थे और तीस हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस भूकंप से आधा सैकड़ा से ज्यादा गांव लगभग नष्ट हो गए थे।

इसके बाद 1999 में उड़ीसा में आया महाचक्रवात पारादीप या सुपर चक्रवात ने तबाही मचाई थी। इसका प्रभावित क्षेत्र उड़ीसा के तटीय जिले, केंद्रपारा, बालासौर, जगतसिंहपुर, जगन्नाथ पुरी, गंजम आदि जगहों पर ज्यादा देखने को मिला था। इसमें दस हजार से ज्यादा लोग कालकवित हो गए थे।

26 जनवरी 2001 में गुजरात के भुज सहित आसपास के क्षेत्रों में आए भूकंप ने जमकर तांडव मचाया था। इसमें लगभग बीस हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी। एक अनुमान के अनुसार इस भूकंप से लगभग डेढ़ लाख से ज्यादा लोग घायल हुए थे और चार लाख से ज्यादा लोग बेघर भी हो गए थे।

वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी को लोग शायद ही भूल पाएं। इसका असर भारत सहित श्रीलंका और इंडोनेशिया पर भी पड़ा था। इस सुनामी का प्रकोप इतना जबर्दस्त था कि इसकी विनाशाकारी क्षमता हिरोशिमा पर फेंके गए बम के आकार के लगभग 23 हजार परमाणु बमों के बराबर थी।

कुछ सालों तक देश में शांति छाई रही, उसके बाद 2013 में उत्तराखण्ड में बाढ़ की विभीषिका देश ने झेली। इस समय इसका असर गोविंदघाट, केदारधाम, रूद्र प्रयाग, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल पर जमकर पड़ा था। इस दौरान लगभग छः हजार लोगों के कालकलवित होने का अनुमान लगाया गया था। इसके कारण लगभग एक लाख तीर्थयात्री केदारनाथ की वादियों में फंस गए थे।

2014 में काश्मीर को बाढ़ के हालातों का सामना करना पड़ा था। इसका प्रभाव श्रीनगर, राजौरी, बांदीपुर जैसे क्षेत्रों पर ज्यादा पड़ा था। इसमें पांच सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात सामने आई थी। इस बाढ़ में काश्मीर के 390 से ज्यादा गांव जलमग्न हो गए थे। इस बाढ़ से काश्मीर में लगभग छः हजार करोड़ से ज्यादा के नुकसान की बात सामने आई थी।

वर्तमान समय में कोरोना कोविड 19 के संक्रमण से देश जूझ रहा है। आज समय इस मामले में सियासत करने का नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार के फैसलों पर एकजुटता दिखाई जाए। हिसाब किताब बाद में भी हो जाएगा। आरोप प्रत्यारोप के लिए लोकसभा, राज्य सभा या विधानसभाएं माकूल मंच है। वहां हिसाब ले लिया जाए, आरोप लगा लिए जाएं। अभी माकूल वक्त नहीं है आरोप प्रत्यारोपों का। कांग्रेस सहित अन्य दलों के प्रमुखों को चाहिए कि इस विपदा की घड़ी में केंद्र सरकार के साथ खड़े रहने और अनर्गल बयानबाजी करने से नेताओं को रोका जाए, अन्यथा सरकारों का ध्यान और उर्जा इस दिशा में चली गई तो मुश्किलें बढ़ना आरंभ हो सकती हैं।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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