देश बदलना है तो देना होगा युवओ को सम्मान

डॉ नीलम महेंद्र
भारत एक युवा देश है। इतना ही नहीं , बल्कि युवाओं के मामले में हम विश्व में सबसे समृद्ध देश हैं। यानि दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा युवा हमारे देश में हैं। भारत सरकार की यूथ इन इंडिया,2017 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 1971 से 2011 के बीच युवाओं की आबादी में 34.8% की वृद्धि हुई है। बता दिया जाए कि इस रिपोर्ट में 15 से 33 वर्ष तक के लोगों को युवा माना गया है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन में युवाओं की संख्या जहां कुल आबादी की 22.31% होगी, और जापान में यह 20.10% होगी, भारत में यह आंकड़ा सबसे अधिक 32.26% होगा। यानी भारत अपने भविष्य के उस सुनहरे दौर के करीब है जहाँ उसकी अर्थव्यवस्था नई ऊँचाईयों को छू सकती है।
लेकिन जब हम युवाओं के सहारे देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने की बात करते  हैं तो इस बात को समझना आवश्यक है कि, युवा होना केवल जिंदगी में जवानी का एक दौर नहीं होता जिसे आंकड़ों में शामिल करके गर्व किया जाए। यह महज उम्र की बात नहीं होती। यह विषय उस से कहीं अधिक होता है।
यह विषय होता है असीमित सम्भावनाओं का।
यह विषय होता है सृजनात्मकता का।
यह विषय होता है  कल्पनाओं की उड़ान का।
यह विषय होता है  उत्सुकता का।
यह विषय होता है  उतावलेपन के दौर का।
यह समय होता है ऊर्जा से भरपूर होने का।
यह समय  होता है सपनों को देखने और उन्हें पूरा करने का।
यह दौर होता है हिम्मत।
कहा जा सकता है कि युवा या यूथ चिड़िया के उस नन्हे से बच्चे के समान है जो अभी अभी अपने अण्डे को तोड़कर बाहर निकला है और अपने छोटे छोटे पंखों को फैलाकर उम्मीद और आजादी के खुले आकाश में उड़ने को बेकरार है।
यह बात सही है कि किसी भी देश के युवाओं की तरह हमारे देश के युवाओं में भी वो शक्ति है कि वो भारत को एक विकासशील देश से बदलकर एक विकसित देश की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दें।
इस देश से आतंकवाद और दहेज जैसी  समस्याओं को जड़ से मिटा दे।
लेकिन जब हम बात करते हैं कि हमारे युवा देश को बदल सकते हैं तो क्या हम यह भी सोचते हैं कि वो कौन सा युवा है जो देश बदलेगा?
वो युवा जो रोजगार के लिए दर दर भटक रहा है?
वो युवा जिसकी प्रतिभा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है?
वो युवा जो वंशवाद का मुखौटा ओढ़कर स्वयं को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है?
वो युवा जो देश में अपनी प्रतिभा को उचित सम्मान न मिलने पर विदेशी कंपनियों में नौकरी कर देश छोड़कर चले जाने के लिए विवश हैं?
वो युवा जिसके हाथों में डि्ग्रियाँ तो हैं लेकिन विषय से संबंधित व्यवहारिक ज्ञान का सर्वथा अभाव है?
वे साक्षर तो हैं शिक्षित नहीं?
शिक्षित तो छोड़िए संस्कारित भी नहीं?
या वो युवा जो कभी तीन माह की तो कभी तीन साल की बच्ची तो कभी निर्भया के बलात्कार में लिप्त है?
वो युवा जो आज इंटरनेट और सोशल मीडिया साइट्स की गिरफ्त में है?
या फिर वो युवा जो कालेज कैम्पस में किसी राजनैतिक दल के हाथों का मोहरा भर है?
तो फिर कौन सा युवा देश बदलेगा?
इसका जवाब यह है कि परिस्थितियां बदलने का इंतजार करने के बजाए हम स्वयं पहल करें।
अगर हम चाहते हैं कि युवा इस देश को बदले तो पहले हमें खुद को बदलना होगा।
हम  युवाओं का भविष्य तो नहीं बना सकते लेकिन भविष्य के लिए युवाओं को तैयार तो कर ही सकते हैं।
हमें उन्हें सही मायनों में शिक्षित करना होगा।
उनका ज्ञान जो किताबों के अक्षरों तक सीमित है उसे व्यवहारिक ज्ञान की सीमाओं तक लाना होगा।
उसे वो शिक्षित युवा बनाना होगा जो नौकरी देने वाला उद्यमी बने, एक एन्टरप्रेन्योर बने न कि नौकरी ढूंढने वाला एक बेरोजगार।
उन्हें शिक्षित ही नहीं संस्कारित भी करना होगा।
उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ना होगा।
पैसों से ज्यादा उन पर समय खर्च करना होगा।
उन्हें प्रेम तो हम देते हैं सम्मान भी देना होगा।
हमें उन युवाओं का निर्माण करना होगा जो देश के सहारे खुद आगे जाने के बजाय अपने सहारे देश को आगे ले जाने में यकीन करते हों।
हमें सम्मान करना होगा उस युवा का जो सड़क किनारे किसी बहते हुए नल को देखकर चुपचाप निकल जाने के बजाय उसे बन्द करने की पहल करता है।
हमें आदर करना होगा उस युवा का जो कचरा फेंकने के लिए कूड़ादान ढूँढता है लेकिन सड़क पर कहीं पर भी नहीं फेंक देता।
हमें अभिवादन करना होगा उस युवा का जो भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेकने के बजाय लड़ना पसंद करता है।
हमें समादर करना होगा उस  युवा का जो दहेज लेने से इंकार कर देता है।
हमें इज्ज़त देनी होगी उस युवा को जो महिलाओं का सम्मान करना जानता हो उनका बलात्कार नहीं।
हमें सत्कार करना होगा उस युवा का जो फूलों का बगीचा लगाने में विश्वास करता है फूल तोड़ने में नहीं।
और यह हर्ष का विषय है कि ऐसे युवा हमारे देश में, हमारे समाज में,हमारे आसपास हमारे बीच आज भी हैं, बहुत हैं। आज जब हमारा सामना ऐसे किसी युवा से होता है तो हम मन ही मन में उसकी प्रशंसा करते हैं और निकल जाते हैं। अब जरूरत है उन्हें ढूंढने की और सम्मानित करने की। आवश्यकता है ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करने की।एक समाज के रूप में, एक संस्था के रूप में
ऐसे युवाओं को जब देश में सम्मान मिलेगा, पहचान मिलेगी, इन्हें शेष युवाओं के सामने यूथ आइकान और रोल मोडल बनाकर प्रस्तुत किया जाएगा, तो न सिर्फ यह इसी राह पर डटे रहने के लिए उत्साहित होंगे बल्कि देश के शेष युवाओं को उन की सोच को एक लक्षय मिलेगा एक दिशा मिलेगी।  जब हमारे देश के युवा सही दिशा सही और लक्षय पर चल निकलेंगे तो सही मायनों में यह कहा जा सकता है कि आने वाला कल भारत का ही होगा।

2 COMMENTS

  1. युगपुरुष मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण आज नई युवा पीढ़ी के आगमन से गहरा संबंध रखता है क्योंकि देश में इन उभरते भारतीय युवकों और युवतियों ने स्वयं अपने और देश के कल्याण के लिये कार्य करने हैं और मेरे विचार में उन्हें संविधानिक लोकतंत्र के अंतर्गत देश को भारतीय जीवन व संस्कृति की रूप रेखा में वैश्विक दृष्टिकोण अपनाते हुए सार्वजनिक विकास की ओर ले जाना होगा| आज का भारतीय युवा वैश्विक स्तर पर अपने देश और जीवन-शैली संबंधी अच्छी बुरी परिस्थितियों के प्रति जागरूक है| जो उनमें मानसिक प्रौढ़ता और स्वाभिमान आज देखने को मिलते हैं उनकी आयु की बीती युवा-पीढ़ियों में कदापि नहीं थे और इसी कारण अर्थहीन और दिशाहीन वे भारतीय सनातन सभ्यता के विरुद्ध भ्रष्टाचार और अनैतिकता में भटकते निष्ठुर और स्वार्थपरायण चरित्र धारण कर स्वयं अपने जीवन को और समाज को खोखला किये हुए थे| आज का भारतीय युवा वर्ग भ्रष्टाचार और अनैतिकता का समाज में व्यापक प्रतिकूल प्रभाव देख क्रुद्ध है और इस कारण संगठित उनका राष्ट्र पुनर्निर्माण में कार्यरत होना न केवल उनके स्वयं के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ी के कल्याण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है|

    संगठन से मेरा तात्पर्य ऐसे संघ से नहीं जो केवल संकीर्ण नीति-वश अपने सदस्यों के विस्तार व उनके एकाधिकारों की सुरक्षा के लिए बने हैं बल्कि उन भांति भांति के व्यवसायी व सांस्कृतिक संघों से हैं जो स्पर्धा को बढ़ावा देते हुए देश और देशवासियों की निरंतर उन्नति के लिए कार्य करते हैं| संगठन को निरोग व समर्थ शरीर मानते हुए उसकी आत्मा और उसके दूसरे अंग परिभाषित करने होंगे| संगठन का उद्देश्य उसकी पुनीत आत्मा; अच्छा अनुशासन उसका हृदय; कार्यकारी नीति उसकी बुद्धि अथवा समाज में जन समुदाय और लोकतंत्र शासन में संतुलन बनाए महत्वपूर्ण कार्यकलाप उसके अन्य आवश्यक अंग हैं| वास्तविक संगठन के अभाव का एक जीता जागता उदाहरण हमारे छोटे बड़े शहर हैं| भारत में अव्यवस्थित अथवा गैर-कानूनी भवन निर्माण सभी ओर अप्रिय दृश्य प्रस्तुत करते हैं| देश में चारों ओर घरों, बाजारों, सड़कों, चौराहों के आसपास भूदृश्य अस्तव्यस्त और कुरूप है| संगठन के अभाव के कारण ही आज आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति में विश्वास नहीं रहा| इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों में भी संगठन के अभाव अथवा अनुचित समाज-विरोधी गुटों के कारण ही सामाजिक वातावरण दूषित है| यह कैसी विडंबना है कि स्वतन्त्र भारत में प्रजातंत्र और संगठन की अनुपयुक्त परिभाषा कुल जनसंख्या की अल्प प्रतिशत लोगों को उन्नत करती शेष अधिकांश साधारण नागरिकों को व्यक्तिवादिता के उस अनन्त भंवर में धकेले रखती है जहां सदियों से मनुष्य स्वयं उसके बनाने वाले को याद कर जी रहा है|

    आज का युवा वर्ग बहुत जागरूक है और देश-प्रेम में लीन वह देश के पुनर्निर्माण में भागीदारी चाहता है| उसे कोई भेड़ बकरी की तरह न हांक उसमें स्वाभिमान जगाये तो वह कुशल नेतृत्व होगा| कुशल नेतृत्व कुशल व्यवस्था पर निर्भर है| और कुशल व्यवस्था व्यक्तिवादिता की नहीं, संगठन की देन है| इसी कारण वर्तमान युवा-पीढ़ी को अच्छे व्यक्तिगत आचरण को अपनाते सामूहिक रूप में उभरना होगा| संगठन में शक्ति है और देश में सार्वजनिक हित के लिए संगठन द्वारा राष्ट्र का पुनर्निर्माण करना होगा|

  2. डॉ. नीलम महेन्द्रा जी ने “देश बदलना है तो देना होगा युवाओं को सम्मान” कह भारत विकास के सन्दर्भ में युवाओं को अकस्मात् एक पृथक श्रेणी में रख दिया है| शीर्षक से ऐसा प्रतीत होता है कि यदि उनका सम्मान होगा तभी वे मुख्यधारा में आ देश के लिए कुछ करेंगे! वैसे तो कांग्रेस और उनके राजनैतिक समर्थक दल पिछले सात दशक सत्ता में रहते भारतीय युवाओं का आदर सम्मान करते आए हैं और देखने में आया है कि यदि पढ़ा-लिखा युवा भारत छोड़ विदेश के लिए नहीं कूच कर गया तो अब तक उसका अपने लिए भी सम्मान जाता रहा है| हम नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस की अनुपस्थिति में केंद्र में मोदी सरकार उनका वैसा ही सम्मान करे| भारत के नागरिक हैं तो देश के प्रति सच्चरित्र भारतीय युवाओं को गर्व के साथ स्वयं अपना सम्मान करना होगा; स्वयं अपने में आत्म-विश्वास पैदा करना होगा; और आत्म-सम्मान व आत्म-विश्वास से उजागर अपने आत्म-बल से और राष्ट्रीय शासन के साथ मिल विभिन्न प्रयोजनों द्वारा देश में ऐसा प्रगतिशील वातावरण बनाएं जिसमें सभी के लिए अपनी योग्यता अनुसार उपयुक्त व्यवसाय बन पाए| भारतीय युवाओं को अपने संग लिए आज भारत प्रगति पथ पर है|

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