समय इतिहास के ‘ भूत ‘ से मुक्ति पाने का

राकेश कुमार आर्य

विगत 13 जून को किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से हुई भेंट में कहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद से बाज नहीं आ रहा है , इसलिए पाकिस्तान से वार्ता की कोई संभावना भारत की ओर से नहीं है । इससे पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी ने पाकिस्तान की हवाई सीमा का प्रयोग न करने का निर्णय लेकर पाकिस्तान को भी यह आभास कराया कि भारत उसकी प्रत्येक गतिविधि पर गहराई से दृष्टि रखे हुए है , और वह अब उसकी चालों में आने वाला नहीं है। इससे पाकिस्तान को निश्चित ही एक कड़ा संदेश गया है , साथ ही संसार के अन्य देशों को भी यह आभास हुआ है कि भारत अपने स्टैंड पर मजबूती के साथ खड़ा रहना जानता है।
सारे देश ने प्रधानमंत्री के निर्णय और मजबूती से अपने स्टैंड पर खड़े रहने की प्रवृत्ति को सराहा है। पाकिस्तान के प्रति यही दृष्टिकोण आवश्यक और उचित है। हमें इतिहास के परिप्रेक्ष्य में यह ध्यान रखना चाहिए कि जब हमारा साम्राज्य कभी ईरान तक हुआ करता था , तब अरब वालों ने आक्रमण करते – करते हमसे पहले ईरान छीना , फिर यूनान छीना , फिर अफगानिस्तान छीना उसके पश्चात पाकिस्तान और बांग्लादेश छीने । इस्लाम के लोगों ने पहले दिन से लुटेरे आतंकवादी के रूप में हम पर आक्रमण करना आरंभ किया और हम अपनी सीमाओं को इनका तुष्टीकरण करते हुए या कहिए कि जब हमारी नाक में दम आ गया तो दुखी हो – होकर पीछे को हटते गए और अपना हिंदुस्तान काटते गए । देश के बंटने का सबसे ताजा उदाहरण पाकिस्तान के बनने का है । इसमें भी गांधीजी जैसे नेता अंत में इसलिए बंटवारे पर सहमत हुए कि वह पाकिस्तान समर्थक जिन्ना और उसके लोगों की रोज – रोज की कलह से दुखी हो चुके थे । यद्यपि इस प्रकार जिन्ना के सामने आत्मसमर्पण करना गांधी और उनके समर्थक लोगों के भीतर इतिहासबोध न होने को भी प्रकट करता है । यदि गांधी जी और उनके समर्थक लोग इतिहासबोध को गहराई से अंगीकार किए होते तो वह पहले दिन से ही इस बात के प्रति सतर्क और सावधान होते कि इस्लाम के फंडामेंटलिज्म के कारण हम ईरान और अफगानिस्तान को अपने आप से काट चुके हैं। जिसका एक ही एजेंडा है कि लड़ते रहो , लड़ते रहो और अंत में एक देश ले जाओ । सावरकर जी जैसे दूर दृष्टि रखने वाले और इतिहास बोध को गहराई से समझने वाले नेता इस तथ्य को समझ रहे थे कि इस्लाम का फंडामेंटलिज्म उनसे क्या कहता है और उनके फंडामेंटलिज्म के कारण भारत अतीत में कितने जख्म सह चुका है ? 
तनिक सोचिए ! जब हमारी सीमाएं ईरान तक हुआ करती थीं और जब ईरान को अरब के लोगों ने आक्रमण कर करके हमसे छीना होगा तो हमारे देश के लोगों पर उस समय क्या बीती होगी ? उसके पश्चात गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रथम , नागभट्ट द्वितीय , गुर्जर सम्राट मिहिरभोज , राजा जयपाल , आनंदपाल त्रिलोचनपाल आदि देशभक्त शूरवीर सम्राटों के हाथों से जब अफगानिस्तान छिना होगा तो उनके दिल पर क्या गुजरी होगी ? हमें यह तथ्य भी ध्यान रखना चाहिए कि राजा जयपाल जिस समय युद्ध कर रहे थे , उसी समय एक ‘जयचंद’ बना राजकुमार उनके विरुद्ध होकर शत्रु से जा मिला था। उसने राजा जयपाल को परास्त कराने के लिए गजनवी को सारे रहस्य बता दिए। इसका कारण भी यह बताया जाता है कि वह राजकुमार किसी मुस्लिम महिला पर आसक्त होकर देश के साथ इतनी बड़ी गद्दारी कर बैठा था । इतना ही नहीं वह गजनवी के साथ जाकर मुसलमान भी बन गया था। तब हमारे राजा जयपाल ने अपनी पराजय से उद्भूत अपमान के उन क्षणों में आग में जलकर आत्मदाह कर लिया था। 
बाद में उस राजकुमार को अपने किए पर पश्चाताप हुआ तो वह पुनः हिंदू बना। फिर क्या होना था ? तीर कमान से छूट चुका था और चिड़िया खेत चुग चुकी थीं । राजा ने आत्मदाह केवल इसलिए किया था कि वह अपमान का जीवन जीना नहीं चाहता था । मां भारती की सिमटती हुई सीमाओं को राजा देखना नहीं चाहता था ।
हिंदू समाज के लोगों की एक सबसे बड़ी दुर्बलता है कि वह अधिक देर कलह और क्लेश में जीना नहीं चाहते। वह बहुत जल्दी परिस्थितियों से समझौता करते हैं और कलह , क्लेश करने वाले बेटे तक से शीघ्र पल्ला झाड़ लेते हैं अर्थात उसे भी अलग कर देते हैं। फिर उनकी उदारता उन पर दबाव बनाती है और उनका वात्सल्य या ममता उनके भीतर उमड़ती है और फिर उसी बेटे से प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित कर लेते हैं। ऐसा शायद वह फिर लात खाने के लिए या अपने संस्कारों के वशीभूत होकर प्रेमपूर्ण सृष्टि करने के लिए करते रहते हैं ? 
पाकिस्तान बन गया तो उसके पश्चात पाकिस्तान को हमारी कश्मीर में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसने दिया और क्यों दिया ? उसके पश्चात हमारी कश्मीर में रहने वाले उन लोगों को इतने अधिकार किसने दिए जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को 1989 में भगाकर देश के भीतर ही उन्हें विस्थापित कर दिया ? सारा देश इस अन्याय पर आज तक क्यों मौन है कि जो देश में आग लगाने वाले लोग हैं उनके लिए केंद्र सरकार हर बार पैकेज पर पैकेज भेजती है और जो देश भक्त हैं वह देश के भीतर ही दर – दर की ठोकर खा रहे हैं ? 
पाकिस्तान कश्मीर में निरंतर कलह कराए रखना चाहता है । उसे इतिहास का यह तथ्य पता है कि भारत दुखी होकर अंत में एक अलग देश देने के लिए तैयार हो ही जाता है । इसलिए कलह करते रहो , दुखी करते रहो , उपद्रव करते रहो, उत्पात मचाते रहो — एक दिन सफल हो जाओगे । इस सोच के वशीभूत होकर पाकिस्तान नाम की विचारधारा कार्य करती आ रही है। वह इस प्रतीक्षा में है कि भारत कलह से दुखी होकर अपने बेटे अर्थात सिरमौर कश्मीर को अलग कर फेंक दे और उसकी बात बन जाए। प्रधानमंत्री मोदी से पहले हमारे देश के राजनीतिक नेतृत्व की सोच लगभग ऐसी बनती जा रही थी कि रोज – रोज की कलह से अच्छा है कि समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पा लिया जाए। यह वही पराजित मानसिकता थी , जिसने 1947 में देश का बंटवाया था। 
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आज के ‘ जयपाल’ को नीचा दिखाने के लिए भी कितने ही सिद्धू जैसे राजकुमार हैं जो किसी ‘पाक ‘ नाम की महिला पर आसक्त हैं और वह देश के साथ कुछ भी कर सकते हैं। कुल मिलाकर देश के प्रधानमंत्री को इस बात पर आंखें खोल कर ही चलना होगा कि इतिहास उनके पीछे एक भूत के साए की तरह काम कर रहा है । इतिहास के तथ्य और आंकड़े चीख – चीख कर हम को सावधान करते जा रहे हैं कि यहां पर भी धोखा है ,यहां पर भी छल है , यहां पर प्रपंच या षड्यंत्र है , या घात है या प्रतिघात है। इसलिए एक-एक कदम को फूंक फूंककर रखने की आवश्यकता है । यह सच है कि घर के भीतर भी ‘जयचंद ‘ है और घर के बाहर एक नहीं अनेकों ‘ गजनवी ‘ और ‘गोरी ‘ तैयार खड़े हैं । ‘जयचंद्र’ हमारे लिये चिता जला रहा है, तो ‘ गोरी ‘ हमारे लिए तलवार लिए खड़ा है। दोनों ओर मौत हमारी प्रतीक्षा कर रही है । देश के लिए काम करने का अभिप्राय ही मौत से जूझना है , इस देश के इतिहास का कड़वा सच है यह।
हमें इतिहास के भूत को मारना होगा। यदि इतिहास का भूत हमने मार दिया अर्थात इतिहास के इस कड़वे सच को हमने समझना होगा कि इस्लाम पहले एक देश छीनता है , फिर उस देश को नया देश बनाने के लिए ‘बेस कैंप ‘ के रूप में प्रयोग करता है और फिर हमारी एकता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है । जिस दिन हम इस सत्य को समझ जाएंगे और जब हमारे देश के राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति इस प्रकार की बन जाएगी कि हमें हर स्थिति में इस भूत को मारना है , तब हमारा राष्ट्रबोध , गौरवबोध , आत्मबोध , और इतिहासबोध जागृत हो उठेगा । उसी दिन सचमुच में यह कहा जा सकेगा कि भारत की सीमाएं अब सुरक्षित हैं । सचमुच हमें देश की सीमाओं की रक्षा के लिए आज फिर एक ‘ चाणक्य ‘ की आवश्यकता है। जो देश की सीमाओं के बारे में भी यह ध्यान रखता था कि सेल्यूकस किस समय देश की सीमाओं में घुसा और किन किन रास्तों से होता हुआ वह तेरे पास तक पहुंचा ? वह विश्वसनीय व्यक्तियों के पीछे भी गुप्तचर रखता था । विदेशी धर्मावलंबी और इस देश को अपनी पुण्यभूमि और पितृभूमि ना मानने वाले लोगों के लिए उसके यहां क्षमा का कोई स्थान नहीं था । 
हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने किर्गिस्तान में जाकर जो संदेश दिया है उसी पर अमल भी होना चाहिए । माना कि ‘ सबका साथ , सबका विकास और सबका विश्वास ‘ — उनकी राष्ट्रनीति का एक आधारभूत सत्य और तथ्य है , परंतु ‘ सबका विश्वास ‘ करना सदा घातक रहा है , इतिहास के इस तथ्य पर भी ध्यान देना होगा । देश में उत्पात , उग्रवाद ,आतंकवाद , दुराचार और पापाचार को प्रोत्साहित करने वाले लोगों को शासक से डरना चाहिए और शासक को उन पर विश्वास भी नहीं करना चाहिए , राष्ट्रनीति का यह भी एक आवश्यक और अनिवार्य तथ्य है। विश्वास करके बार-बार धोखा खाना धोखे खाने को अपनी नियति बना लेना है ,और ऐसा वही राष्ट्र करते हैं जो मरने की तैयारी कर रहे होते हैं। भारत को मरना नहीं है अपितु विश्व गुरु बनना है। इसलिए उसके लिए अपेक्षित यही है कि वह इतिहास के भूत को मारने के लिए अपने राष्ट्रीय संकल्प के साथ उठ खड़ा हो। 

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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