कोरोना के प्रकोप से देशवासियों को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण में तेजी लाना बेहद जरूरी!

दीपक कुमार त्यागी

“हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम ।
तू क्यों सोचे बंदे सब की सोचे राम ॥”

हमारे देश में रोजमर्रा में बोली जाने वाली उपरोक्त कहावत हमें विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन को खुशी के साथ मस्त रहकर जीने का हौसला प्रदान करती है। ठीक उसी प्रकार अधिकांश देशवासियों ने इस कहावत को भयंकर महामारी के काल में सत्य साबित किया है। देश की जनता कोरोना की दूसरी लहर का सामना बेहद नकारात्मक परिस्थितियों के साथ संघर्ष करके लगातार कर रही है। वह ध्वस्त चिकित्सा व्यवस्था व विभिन्न प्रकार के बेहद आवश्यक संसाधनों के अभाव के बाद भी कोरोना वायरस के संक्रमण से पूर्ण हिम्मत व हौसले के साथ लड़ रही है। अपनों के अससमय काल का ग्रास बनने के चलते कोरोना की बेहद घातक इस दूसरी लहर ने बहुत सारे देशवासियों को जीवन भर के लिए बहुत अधिक गहरे जख्म दे दिये हैं। पूर्व की भांति इसबार भी दुनिया भर के कोरोना विशेषज्ञ भारत के नीतिनिर्माताओं व सिस्टम को एकबार फिर से लगातार चेता रहे हैं कि देश को कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने के लिए बहुत जल्द से जल्द धरातल पर ठोस आवश्यक कदम उठाकर तैयार करना होगा। इसके लिए हमारे प्यारे देश में जल्द से जल्द कोरोना के टीके की डोज की किल्लत को दूर करते हुए उसको लगवाने की प्रक्रिया को सरल बनाना बेहद जरूरी है। वैसे एक सच्चाई यह भी है कि जिस समय पूरी दुनिया एक अनजान, अदृश्य और अबूझ बेहद घातक कोरोना वायरस से बुरी तरह डरी-सहमी हुई थी, तब भारत के विद्वान वैज्ञानिक विश्व समुदाय को उस जानलेवा घातक कोरोना वायरस की काट उपलब्ध कराने में अपना दिनरात एक करके बेहद तत्परता से काम करने में लैबोरेट्री में लगे हुआ थे। आज देश के उन वैज्ञानिकों की मेहनत के बलबूते ही भारत ने दुनिया को कोरोना का बेहद कारगर एक टीका बनाकर दिया है। वैसे भी आजकल भारत दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है। यही नहीं देश आज भारतीयों को कोरोना का टीका लगवाने के साथ-साथ कई अन्य देशों को भी “संयुक्त राष्ट्र संघ” समर्थित “विश्व स्वास्थ्य संगठन” के “कोवैक्स” कार्यक्रम के तहत कोरोना का टीका उपलब्ध करवा कर लोगों के अनमोल जीवन को सुरक्षित करने का कार्य कर रहा है। भयंकर आपदाकाल के समय में भारत एक बार फिर दुनिया के लिए उम्मीदों की किरण का बहुत बड़ा केंद्र बनकर उभरा है, क्योंकि हमारे देश में बनने वाला कोरोना वायरस का टीका बेहद प्रभावी होने के साथ-साथ कीमत तापमान व भंडारण के दृष्टिकोण से विकासशील और विकसित सभी श्रेणी के देशों के लिए बेहद अनुकूल है।

वैसे कोरोना की दूसरी लहर के हालात के मद्देनजर देखा जाये तो देशवासियों को भविष्य में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए जल्दी से कोरोना का टीका लगवा कर उनके जीवन को सुरक्षित करना होगा। लेकिन यह तो भविष्य में आने वाला समय ही बतायेगा कि भारत के कर्ताधर्ताओं ने कोरोना की दूसरी लहर से कुछ सबक लिया है या नहीं। हालांकि विश्व के सभी देशों के आकड़ों के आधार पर भारत सरकार लगातार यह कहकर खुद अपनी पीठ थपथपा रही है कि भारत दुनिया में सबसे तेज कोरोना टीके से लोगों का टीकाकरण करने वाला देश है, वैसे इसे आकड़ों के अनुसार देखा जाये तो यह बात सत्य भी है, लेकिन इसके लिए इतनी अधिक आत्ममुग्धता अभी ठीक नहीं है। क्योंकि अभी तक के आकड़ों के अनुसार विश्व में 141 करोड़ लोगों को कोरोना के टीके की पहली डोज दी जा चुकी है, जिसमें से 34.6 करोड़ लोग दूसरी डोज लेकर अपने आपका पूर्ण रूप से टीकाकरण करवा चुकें हैं, जो कि पूरी दुनिया की आबादी का मात्र 4.4 प्रतिशत बैठता है। वहीं भारत में 16 जनवरी 2021 को फ्रंटलाइन वर्कर के साथ शुरू हुए टीकाकरण अभियान का विस्तार करके बहुत कम समय में ही 18 करोड़ लोगों को टीके की पहली डोज लगायी जा चुकी है, 3.98 करोड़ लोगों ने दोनों डोज लेकर अपना टीकाकरण पूरा कर लिया है, लेकिन अगर हम बात जनसंख्या के प्रतिशत की करें तो मात्र 2.9 प्रतिशत लोगों को भारत में कोरोना के टीके की दोनों डोज अभी तक लग पायी है, जो स्थिति हमें विकासशील व अन्य बहुत सारे देशों से बहुत पीछे करती हैं। वैसे भी कोरोना की तीसरी लहर के प्रकोप से बचने के मद्देनजर यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। टीके की डोज की भारी किल्लत की वजह से देश में जनसंख्या के हिसाब से टीकाकरण का कार्य बेहद धीमा चल रहा है, उस हिसाब से तो टीके की दोनों डोज देशवासियों को देने में लगभग दो से तीन वर्ष का लंबा समय लग सकता है। इतने लंबे समय तक अपने आपको कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए हम सभी देशवासियों को सरकार की कोरोना गाइडलाइंस का अक्षरशः पालन करना होगा। हालांकि कोरोना विशेषज्ञों के अनुसार जब तक आप बचाव के उपाय करते हुए सावधानियां बरतते हैं तब तक सब ठीक है। लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि टीका लगने के बाद कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा बेहद कम हो जाता है। लेकिन अगर आप टीका लगने के बाद भी रोजमर्रा के जीवन में लापरवाही करते हैं, तो उसका परिणाम यह होगा कि आप भी वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। वैसे टीका लगवाने के बाद लोग खुद को मानसिक व शारिरिक स्तर पर बहुत अधिक सुरक्षित महसूस करते हुए सब कुछ करने के लिए खुद को स्वतंत्र महसूस करेंगे, लेकिन कोरोना महामारी के काल में इस तरह के सकारात्मकता भरे व्यवहार में कदम-कदम पर सावधानी बरतनी बेहद आवश्यक है।

कोरोना आपदाकाल के आने वाले समय में हम सभी देशवासियों के रोजमर्रा के जीवन को सुरक्षित व सरल बनाने के लिए कोरोना का टीका लगवाना आवश्यक है।
भारत जैसे 138 करोड़ की आबादी वाले देश में इसके लिए भारी मात्रा में टीके की डोज की आवश्यकता है, फिलहाल 18 वर्ष से कम आयु वर्ग वाले 32 करोड़ लोगों के लिए टीके का ट्रायल चलने के कारण देश में कोरोना के टीके अभी उपलब्ध नहीं है। तो देश में बाकी बची 106 करोड़ लोगों की आबादी को कोरोना का टीका सरकार को जल्द उपलब्ध करवाने हैं। देश में हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता का लक्ष्य हासिल करने के लिए आबादी का 70 प्रतिशत यानी 96.6 करोड़ लोगों का दोनों डोज लगाकर टीकाकरण होना बेहद आवश्यक है। जिसके लिए कम से कम 193.2 करोड़ डोज चाहिए, जिसमें से 18 करोड़ डोज लोगों को दी जा चुकी हैं, अभी कम से कम 175.2 करोड़ टीके की डोज देशवासियों के टीकाकरण करने के लिए चाहिए, क्योंकि हर्ड इम्युनिटी विशेष तौर पर टीका लगाए जाने से हासिल की जाती है। वैसे इस संबंध में अधिकतर वैज्ञानिकों का एकमत है कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए क्षेत्र विशेष में रहने वाली कम से कम 70 प्रतिशत आबादी में घातक विषाणु को हराने के लिए एंटीबॉडीज डवलप होनी चाहिए। इस लक्ष्य को एक वर्ष के अंदर हासिल करने के लिए प्रतिदिन 48 लाख लोगों को टीका लगाना होगा, जबकि आज के समय में हम 20 से 25 लाख डोज ही प्रतिदिन लगा पा रहे हैं। हालांकि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार व कंपनियों की निजी स्तर पर जबरदस्त तैयारियां चल रही है। इस कड़ी में ही भारत सरकार ने 18 साल से कम उम्र के लोगों को टीका उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से ट्रायल चलाने की अनुमति स्वदेशी कंपनी भारत बायोटैक को दे दी है। अभी हमारे देश भारत में निर्मित कोविशील्ड और कोवैक्सीन के टीके की डोज देश में टीकाकरण के लिए उपलब्ध हैं। रूस के टीके स्पूतनिक वी का इस्तेमाल भी देश के हैदराबाद शहर में शुरू हो गया है, अन्य कंपनियों के टीकों की डोज देश की जनता को उपलब्ध करवाने के लिए उच्च स्तर पर विचार चल रहा है। लेकिन इस सबकी मौजूदा डोज व भविष्य में उपलब्ध होने वाली डोज से भारत में टीके कार्यक्रम का लक्ष्य जल्द हासिल नहीं हो सकता है, इसके लिए केंद्र सरकार को कम्पनियों के साथ मिलकर टीके के उत्पादन को बढ़ाने के तरीकों पर युद्धस्तर पर कार्य करना होगा, क्योंकि कोरोना से बचाव के लिए लगने वाले लॉकडाऊन से लोगों व भारत सरकार को जबरदस्त राजस्व की हानि बहुत लंबे समय से हो रही है, जिसके सामने सरकार के द्वारा टीकाकरण पर खर्च होने वाली धनराशि कुछ भी मायने नहीं रखती है। इसलिए भारत सरकार को देश में टीका बनाने कंपनियों को कार्य करने के लिए धन के साथ-साथ कार्य करने के लिए दवाब मुक्त बेहतर माहौल, कच्चा माल व अन्य सभी संसाधन बड़े पैमाने पर उपलब्ध करवाने चाहिए। वैसे देशहित में सरकार को भारत बायोटैक की कोवैक्सीन के उत्पादन को विभिन्न अन्य स्वदेशी कंपनियों के साथ मिलकर बढ़ाना चाहिए, इससे भारत सरकार के “आत्मनिर्भर भारत” के सिद्धांत को देश व विदेश में मजबूती मिलेगी। वैसे हाल के दिनों में कोरोना टीके के संकट को दूर करने के लिए दिल्ली-उत्तर प्रदेश समेत देश के लगभग दस राज्य विदेशों से टीका खरीदने का फैसला कर चुके हैं, वो इसके लिए विश्वस्तर पर टेंडर की प्रक्रिया भी शुरू कर चुकें हैं। लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि टीके की तैयार डोज की जो स्थिति हमारे देश में बनी हुई है, अमूमन वैसी ही स्थिति विश्व में कोरोना के टीके बनाने वाले अन्य देशों व अन्य कंपनियों की बनी हुई है। इसलिए टेंडर होने के बाद विदेशों से बहुत जल्द आयातित टीका मिलने की संभावना बहुत कम है। वहीं एक मई से देश में शुरू हुए 18 से 44 वर्ष की आयु वर्ग के लिए टीके का इंतजाम राज्यों को खुद अपने स्तर पर करने की बड़ी चुनौती है, इस आयु वर्ग में अभी तक मात्र 42 लाख डोज दी गयी हैं। क्योंकि देश में कोरोना का टीका उत्पादन करने वाली दो कंपनियां सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटैक के पास केंद्र सरकार का 16 करोड़ डोज का ऑर्डर पहले से है, नियमानुसार वह अपने कुल टीके की डोज के उत्पादन का आधा राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों को दे सकते हैं। इसलिए राज्यों को उनकी जरूरत का मात्र 10 से 15 प्रतिशत टीका ही फिलहाल मिल पा रहा है। इस हालात से निपटने के लिए केंद्र सरकार को भारतीय टीका निर्मात कंपनियों के साथ मिलकर के टीके की डोज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तेजी से कार्य करना होगा।

सरकार को देश में टीकाकरण की प्रक्रिया को बेहद तेज व सरल करने के लिए जल्द से जल्द युद्धस्तर पर कारगर रणनीति बनानी होगी। क्योंकि आज के परिदृश्य में कोरोना महामारी की बहुत तेजी से फैलने वाली क्षमता के हिसाब से देश में अभी टीकाकरण की प्रक्रिया बहुत धीमी और जटिल है। टीकाकरण के लिए “कोविन प्लेटफ़ॉर्म” के मोबाइल पर एप के माध्यम से रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आसानी से शहरी क्षेत्रों में ही ओटीपी नहीं आ पाता है, तो देश के दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति क्या होगी, वहां पर तो अभी तक एंड्रॉयड मोबाइल भी सभी लोगों की पहुंच में नहीं हैं। वैसे रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के समय अगर आपका ओटीपी आ भी जाये और आसानी से नाम भी जुड़ भी जाये, तो टीका लगवाने के लिए अपना समय बुक करवाने में लोगों के छक्के छूट जाते हैं, लगातार प्रयास से समय भी मिल जाये तो धरातल पर टीकाकरण केंद्र को ढूढना बहुत जटिल प्रक्रिया है क्योंकि वेबसाइट पर अधिकांश टीकाकरण केंद्रों का पूरा पता नहीं दिया गया है, लेकिन सबसे बड़ी गंभीर समस्या तो जब शुरू होती है कि जब टीकाकरण केंद्र पर भी पहुंच जाओं और वहां जाकर पता चलता है कि टीकाकरण केंद्र तो पिछले कई दिनों से खुला ही नहीं है या केंद्र पर टीका उपलब्ध ही नहीं है। सरकार को इस तरह की सभी गंभीर समस्या की तरफ तत्काल ध्यान देना होगा, क्योंकि जो व्यक्ति लॉकडाऊन के नियमों का पूर्ण ईमानदारी से घर में रहकर पालन कर रहा था, वो सिस्टम की इस लापरवाही भरी प्रक्रिया में कोरोना वायरस की चपेट में आकर संक्रमित हो सकता है। वैसे अगर सरकार वास्तव में देश को जल्द से जल्द कोरोना से मुक्त करना चाहती है, तो उसको पोलियो बीमारी के टीके की तरह कोरोना के टीकाकरण के कार्यक्रम को सरल व तेज बनाना होगा। हालांकि इसके लिए टीके को सुरक्षित रखने के लिए जरूरत के मुताबिक तापमान व भण्डारण की व्यवस्था करना सरकार व निर्माता कंपनियों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है।

देश की जनता को सुरक्षित करने के लिए विश्व में जितने भी पूर्ण रूप से सुरक्षित कोरोना के टीके बन रहे हैं, भारत सरकार को उनको जल्द से जल्द सरकारी स्तर पर प्रयास करके देश में लाना चाहिए, उनको कम से कम खुले बाजार में तो जनता के लिए उपलब्ध करवाना चाहिए, जिससे की जो लोग पैसा देकर कोरोना का कोई भी टीका बाजार से खरीद कर लगवाना चाहते हैं वो निजी अस्पतालों के माध्यम से जल्द से जल्द टीका लगवा सकें। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि सरकारी तंत्र पर से टीका खरीदने का भार काफी कम हो जायेगा और देश में बहुत सारे लोगों का समय से टीकाकरण भी हो जायेगा। वैसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि देश में आजकल राज्य स्तर पर कोरोना के टीके खरीदने के लिए विश्वस्तर पर टेंडर निकाले जा रहे हैं, केंद्र सरकार को राज्यों से सामंजस्य करके इस स्थिति पर लगातार नजर रखनी होगी कि कोरोना का टीका बनाने वाली कोई भी कंपनी राज्यों से अधिक दाम ना वसूल सकें। क्योंकि पिछले वर्ष कोरोना की जांच किट व कोरोना महामारी से जुड़े अन्य सामान की खरीद प्रक्रिया में कई राज्यों के साथ ऐसा हो चुका है, इसलिए सबसे सही तो यह है कि कोरोना के टीके के लिए केंद्र सरकार के द्वारा ही विश्वस्तर पर टेंडर प्रक्रिया जारी करनी चाहिए और हर हाल मे अधिक से अधिक कोरोना के टीके की डोज देश की जनता के लिए सरकारी स्तर पर व खुले बाजार में टीकाकरण के लिए सुलभता से उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास करना चाहिए, तब ही देश कोरोना महामारी के प्रकोप से जल्द से जल्द मुक्त होगा। हालांकि देश के कर्ताधर्ताओं व सिस्टम के सामने सभी को कोरोना का टीका जल्द से जल्द उपलब्ध करवाने की चुनौती बहुत बड़ी है, लेकिन सिस्टम में बैठे ईमानदार व मेहनतकश बुद्धिजीवी लोगों की बेहतर रणनीति, युद्धस्तर पर कार्य करने की क्षमता के बलबूते इस बेहद कठिन लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है, ऐसा हम सभी देशवासियों को भरोसा है।

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