अयोध्या निर्णय के बाद इस मौलाना को याद करना जरूरी है

अयोध्या केस का फैसला आ गया है, फैसले में किसी भी पक्ष की न जीत हुई है, न किसी पक्ष की हार हुई है। वर्षों तक विवादित रही इस भूमि को हिंदू मुस्लिम एकता के लिए रोडा माना जाता रहा है ‌। जबकि यह सुप्रीम कोर्ट का दिया निर्णय इन दोनों ही धर्मों के मानने वालों के आपसी भाईचारे की अनोखी मिसाल कहा जा सकता है। इस फैसले के बीच देश के वातावरण से वह महीन सी विचारधारा झलक रही है, जिसे हमारे पूर्वज गंगा जमुनी तहजीब कहा करते हैं। इस तहजीब को विकसित करने में एक मौलाना का नाम उल्लेखनीय हैं, जिनका आज जन्मदिन भी है। मौलाना आजाद वह नीव का पत्थर है, जो ऐसे ही भारत की कल्पना करते थे, जहां यह दोनो धर्म एक भारतीयता के रंग में रंगे हुए दिखे।

     मौलाना अबुल कलाम आजाद एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देश के पहले शिक्षा मंत्री के साथ – साथ एक धर्म गुरु मौलाना भी थे। इनका जन्म 11 नवंबर 1888 में मक्का सउदी अरब में हुआ था। वह इस्लाम की गहरी समझ रखते थे, जब देश का धर्म के नाम पर विभाजन हो रहा था, उस समय मौलाना आजाद इस्लामी मुल्क पाकिस्तान के साथ न होकर धर्मनिरपेक्ष देश भारत के साथ थें। मौलाना आजाद ने एक मर्तबा रामगढ़  1923 में भाषण देते हुए कहा था कि यदि कोई आसमानी फरिश्ता उनके पास आकर कहे कि वह हमें हिंदू-मुस्लिम एकता की कीमत पर 24 घंटे के भीतर स्वतंत्रता दे देंगे, तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को त्यागना बेहतर समझूंगा. स्वतंत्रता मिलने में होने वाली देरी से हमें थोड़ा नुकसान तो ज़रूर होगा लेकिन अगर हमारी एकता टूट गई तो इससे पूरी मानवता का नुकसान होगा।”

        वजिन मुल्कों में मुस्लिम राजा होता है उन देशों को दारूल इस्लाम या दारूल सलाम कहा जाता है, वही जिन देशों में मुस्लिमों का शासन नहीं होता है, उसे दारूल हरब कहा जाता है, वही मौलाना ने भारत को एक नया नाम दिया था, दारूल अमन। जिसका मतलब होता है, शांति का देश। मौलाना आजाद को काफी प्रगतिशील मुस्लिम के तौर पर देखा जाता है और उनकी कुरान पर पकड़ इस कदर थी, कि उनके दीनी ज्ञान के आगे पृथकतावादी ताकते काफी बौनी नजर आती थी। मुस्लिम लीग व उसके आक्रमक नेता मोहम्मद अली जिन्ना, मौलाना आजाद को कांग्रेस का पोस्टर ब्वॉय कहते थे, जिसके ज़बाब में महात्मा गांधी ने कहा था कि आजाद देश के हीरो है ।

आजाद युवाओं के लिए एक आदर्श के तौर पर पेश हो सकते हैं, उन्होंने अपनी 12 साल की उम्र में इस्लाम की दीनी पढ़ाई कर ली थी, जिसे अन्य छात्र 23 साल की उम्र तक पूरी कर लेते हैं, आजाद ने कम उम्र में ही अपनी विद्वत्ता का परिचय देते हुए अल हिलाल नाम का एक अखबार शुरू किया, जिसके बढते प्रभाव से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने उसे दो साल के भीतर ही बंद कर दिया था। आजाद अलहिलाल के लिए कहते थे, कि “मैं यह बताना चाहता हूं कि मैंने अपना सबसे पहला लक्ष्य हिंदू-मुस्लिम एकता रखा है. मैं दृढ़ता के साथ मुसलमानों से कहना चाहूंगा कि यह उनका कर्तव्य है कि वे हिंदुओं के साथ प्रेम और भाईचारे का रिश्ता कायम करें जिससे हम एक सफल राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे।” हिंदू मुस्लिम एकता के इस पुरोधा नेता को अल्पसंख्यकों का नेता कहकर इनके त्याग को कम करके आंका जाता है, जबकि देश के पहले शिक्षा मंत्री के नाते इनके यूजीसी जैसी संस्था इनकी देन रही है।यह सही मायनों में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल थे, इन्होंने अपने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में पहले ही बता दिया था कि यदि मु्स्लिमो का एक नया देश बना तो उसमें आपसी मतभेदों के कारण वह टूकडों में बंट जाएगा और इनकी मौत के एक अरसे बाद पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग हुआ जिससे इनके कहे शब्द सच साबित हुए। जब पंडित नेहरू ने  जब जेल में बंद रहने के दौरान 900 पन्नों की बेहद रोचक ‘विश्व इतिहास की झलक’ किताब लिखी, तो उनके पास तथ्यों और संदर्भों को जांचने के लिए कोई रेफ़रेंस लाइब्रेरी या सामग्री नहीं थी। लेकिन उनके साथ आज़ाद थे, जिन्हें विश्व के कई देशों के भूगोल से लेकर सामाजिक तानेबाने की जानकारी थी। मौलाना के इस ज्ञान का देश के शिक्षा मंत्री के तौर पर देश ने लाभ उठाया, इसी पद पर रहते हुए 22 फरवरी 1958 को इनका देहान्त हो गया था।

                                                          शुभम शर्मा

                                                 छात्र आई.आई.एम.सी नयी दिल्ली

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here