काल स्वयं मुझसे डरा है.
मैं काल से नहीं,
कालेपानी का कालकूट पीकर,
काल से कराल स्तंभों को झकझोर कर,
मैं बार बार लौट आया हूं,
और फिर भी मैं जीवित हूं,
हारी मृत्यु है, मैं नहीं….।।
ऐसे बहुत कम होता है कि जितनी ज्वाला तन में हो उतना ही उफान मन में हो. जिसके कलम में चिंगारी हो उसके कार्यों में भी क्रांति की अग्नि धधकती हो. वीर सावरकर ऐसे महान सपूत थे जिनकी कविता भी क्रांति मचाती थी और वह स्वयं भी क्रांतिकारी थे. उनमें तेज भी था, तप भी था और त्याग भी था. वेे जन्मजात कवि थे. अल्प आयु में ही उनकी कविताएं क्रांति की धूम मचाती थी. महान वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक में हुआ था। वह अपने माता पिता की चार संतानों में से एक थे। उनके पिता दामोदर पंत एक शिक्षित व्यक्ति थे. वे अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे. लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को अंग्रेजी के साथ – साथ रामायण, महाभारत, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी आदि महापुरूषो के प्रसंग भी सुनाया करते थे. सावरकर का बचपन भी इन्हीं बौद्धिक वातावरण में बीता। सावरकर अल्प आयु से ही निर्भीक होने के साथ – साथ बौद्धिक रूप से भी संपन्न थे.
वीर सावरकर हमेशा से जात- पात से मुक्त होकर कार्य करते थे. राष्ट्रीय एकता और समरसता उनमें कूट कूट कर भरी हुई थी. रत्नागिरी आंदोलन के समय उन्होंने जातिगत भेदभाव मिटाने का जो कार्य किया वह अनुकरणीय था. वहां उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश के लिए सराहनीय अभियान चलाया. महात्मा गांधी ने तब खुल मंच से सावरकर की मुहिम की प्रशंसा की थी.
सावरकर पहले भारतीय थे जिन्होंने विदेशी कपड़ो की होली जलाई थी। सावरकर को किसी भी कीमत पर अंग्रेजी दासता स्वीकार नहीं थी. वह हमेशा अंग्रेजों का प्रतिकार करते रहे. उन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया था. फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया. 24 साल की आयु में सावरकर ने इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस नामक पुस्तक की रचना कर ब्रिटिश शासन को झकझोर दिया था. अंग्रेजी सरकार ने इस किताब को प्रकाशित होने से पहले ही बैन कर दिया. सावकर एक मात्र ऐसे भारतीब थे जिन्हें एक ही जीवन में दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी. काले पानी की कठोर सजा के दौरान सावरकर को अनेक यातनाएं दी गयी. अंडमान जेल में उन्हें छ: महिने तक अंधेरी कोठरी में रखा गया. एक -एक महिने के लिए तीन बार एकांतवास की सजा सुनाई गयी. सात – सात दिन तक दो बार हथकड़ियां पहनाकर दिवारों के साथ लटकाया गया. इतना ही सावरकर को चार महिनों तक जंजीरों से बांध कर रखा गया. इतनी यातनाएं सहने के बाद भी सावरकर ने अंग्रेजों के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया. सावरकर जेल में रहते हुए भी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे. वह जेल की दिवारों पर कोयले से कविता लिखा करते थे और फिर उन कविताओं को याद करते थे. जेल से छुटने के बाद सावरकर ने उन कविताओं को पुन: लिखा था. यह भी अजीब विडंबना है कि इतनी कठोर यातना सहने वाले योद्घा के साथ तथाकथित इतिहासकारों ने न्याय नहीं किया. किसी ने कुछ लिखा भी तो उसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया.
82 वर्ष की उम्र में 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर का निधन हो गया. भले ही आज वीर सावरकर लोगो के बीच में नही है लेकिन उनकी प्रखर राष्ट्रवादी सोच हमेसा लोगो के दिलो में जिन्दा रहेगी ऐसे भारत के वीर सपूत वीर सावरकर को हम सभी भारतीयों को हमेशा गर्व रहेगा.