हिमांशु तिवारी आत्मीय
अपने लाल की फिक्र में वो न रात सोई है,
हौले से उठाती है वो अपना आंचल,
सूखे हुए आंसुओं से भी तलाश लेती है हर दर्द उसका,
वो उंगलियां थामकर चलता था,
हर तकलीफ में उसे मां याद आती थी,
नींद न आती तो मां उसे लोरियां सुनाती थी,
कई दफे किस्से ख़त्म हो जाते,
तो वो अपने किस्से बनाती थी,
लाल अब बेटा हो गया,
मां के नाम का बंटवारा हो गया,
एक मां घर में रहती थी,
और एक मां जिसमें उसका लाल रहता था,
मां की हिफाजत के लिए वो मां को घर में छोड़ आया,
गज़रों की महक को, चहकती हुई नन्हीं चिड़िया को,
सीमा पर तनाव के ख्वाब के साथ जोड़ आया,
एक रोज़ नींद टूटी तो मां को तार मिला,
बेटा शहीद हो गया है,
अगली सुबह ऐसा उजड़ा संसार मिला,
वो रोती रही, बिलखती रही
नन्हीं चिड़िया पापा से उठने की मिन्नतें करती रही,
कोई सुहागन आंखों में आंसुओं का दरिया लिए
अपने हाथों की चूड़ियों को
दरवाजे की चौखट पर पटकती रही
लेकिन वो लाल मां के प्यार से मालामाल हो गया था,
जिद्दी था वो, इतनी आवाजों के बाद भी न उठा,
उसकी जिद देख माहौल भी ख़ामोश हो गया था…..
दो मांओं का लाल गहरी नींद सो गया था………..