आज फटी जींस फैशन है या कुछ और

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पिछले दो-तीन दिनों से *फटी हुई जींस* को लेकर मीडिया व अखबारों में काफी चर्चा बनी हुई है और मुझे भी लगता है कि फैशन करने में बुराई नहीं है पर उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जी ने जींस का रिश्ता लड़िकयों के संस्कार से जोड़ दिया। इसके बाद उनके इस बयान की चारो तरफ जमकर आलोचना होने लगी। लेकिन जिस जींस की इतनी चर्चा हो रही है, आप उसके इतिहास को कितना जानते हैं ? आखिर जींस पैंट की शुरुआत कैसे हुई ? डेनिम यानी जींस से बने ट्राउजर्स भारत में डूंगा के नाविक पहना करते थे, जिन्हें डूंगरीज के नाम से भी जाना जाता था। जबकि फ्रांस में गेनोइज नेवी के वर्कर इस जींस को पहनते थे, क्योंकि ये उनकी यूनिफॉर्म थी। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि ये मजदूरों और मेहनत का काम करने वाले लोगों द्वारा पहनी जाती थी, और उनके कपड़े जल्दी गंदे हो जाते थे। इसलिए उनके लिए नीले रंग की जींस बनाई गई, ताकि उनके कपड़े जल्दी गंदे न हों। वहीं, इसे नीला रंग देने के लिए इंडिगो डाई का इस्तेमाल किया जाता था। आज भी फौज में भी कुछ मैकनिकल कार्य करने वाले जवान डूंगरी पहनते हैं जो कि पैंट व कमीज़ एक मोटे कपड़े की बनी होती हैं।18 वीं शाताब्दी में जींस के चलन ने जोर पकड़ा। वहीं,1850 तक जींस का काफी प्रचलन हो चुका था।इसके बाद 1950 में जेम्स डीन ने एक हॉलीवुड फिल्म ‘रेबल विदाउट अ कॉज’ बनाई, जिसमें पहली बार जींस को बतौर फैशन इस्तेमाल किया गया था। अमेरिका में स्कूल, रेस्तरां और थियटर्स में जींस पहनकर जाने पर बैन लगा दिया गया था। लेकिन लोगों के बीच जींस ने ऐसी जगह बनाई कि 1970 में इसे फैशन के तौर पर स्वीकार कर लिया गया।


दरअसल, 19वीं सदी में फ्रांस के शहर NIMES में इसका अविष्कार हुआ था। वहीं, जिस कपड़े से जींस बनी उसे फ्रेंच में Serge कहते हैं और ऐसे में इसका नाम पड़ गया Serge de Nimes। लेकिन लोगों ने इसका नाम छोटा करके Denims रख दिया।आप अगर जींस पैंट पहनते हैं, तो आपने एक बात ध्यान दी होगी कि अधिकतर जींस की पैंट पर लगी चैन पर YKK लिखा होता है, जिसका मतलब होता है Yoshida Kogyo Kabushikikaisha। ये उस कंपनी का नाम है, जो दुनियाभर में ज्यादातर जींस बनाने वाली कंपनियों के लिए चैन बनाती है। इसलिए ज्यादातर जींस की पैंट की चैन पर ये नाम लिखा होता है।अमूमन आपने देखा होगा कि जींस में चार बड़ी जेब के साथ सीधे हाथ की तरफ एक छोटी जेब भी होती है, जिसमें अक्सर लोग सिक्के रख लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये जेब आखिर बनाई क्यों गई थी? शायद नहीं, तो आपको बता दें कि ये जेब घड़ी रखने के लिए बनाई गई थी, ताकि लोग इसमें अपनी हाथ की घड़ी रख सकें। लेकिन अब इसका इस्तेमाल कई छोटी चीजों को रखने के लिए होता है। जींस पहनने में कोई बुराई नहीं लेकिन फटे हुए वस्त्र पहन कर अगर आप अपने जिस्म को दिखाते हैं तो निश्चित रूप से चाहे आप कुछ भी कहे, कहीं ना कहीं हंसी मजाक का कारण तो बनते हैं। चाहे पुरुष हो या महिला। जितना हम अपने बच्चों को संस्कारों और सही वस्त्रों को पहनना सिखाएंगे उतने ही आपके बच्चे संस्कारी और साधारण बनेंगे। मुख्यमंत्री तीरथ जी ने *जीन्स*  का नहीं *फटी जीन्स* का विरोध किया है।. और वैसे भी आपकी पर्सनैलिटी कपड़ों से नहीं आपके संस्कारों से तय होती है। हम सोचना चाहिए कि अगर फैशन से ही योग्यता का मूल्यांकन किया जाए तो योग्यता का कोई महत्व नहीं रहता।  अतः हमे फैशन के स्थान पर अपनी संस्कृति पर ज्यादा ध्यान  देना चाहिए। इसलिए कपड़ों को महत्व देने की बजाए हमे अपनी योग्यता और अपने संस्कारों को बढ़ावा दें। यूँ भी सनातन धर्म में फटे वस्त्र दरिद्रता का धोतक होते है। एक रणनीति के तहत हिंदू समाज के बच्चों को पथभ्रष्ट किया जा रहा है क्योंकि माना जाता हैं कि जिस समाज का विनाश करना है उसकी संस्कृति को बिगाड़ दो। ब्रिटिश शासन इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।पहनावा आधुनिकता का प्रतीक नही होता और अगर होता तो शायद आज सीता, गार्गी,सती पद्मावती, द्रोपती ,यशोधरा, सुलोचना,उर्मिला, मन्दोदरी, अहिल्या, अनुसूया, तारा और लीलावती ज्योतिबा फुले  जैसी देवियों के स्थान पर आधुनिक देवियों की पूजा शुरू हो जाती और उन्हें देवियां मानी जाती और उनकी मंदिरो व पूजा के स्थानों पर उनकी पूजा प्रारंभ हो जाती। पर अभी तक ऐसा नहीं हो पाया।

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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