आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाएं ?

हमारा समाज पुरुष प्रधान देश है. यहाँ औरतें शुरू से ही जुर्म का शिकार होती रही हैं. शादी के पहले उस पर बेटी, बहन के नाम पर पाबंदी लगाई जाती है. थोड़ी सी आज़ादी पर ही उसके भाई, पिता, नाते रिश्तेदार घर की मर्यादाएं तोड़ने का आरोप लगा डालते हैं. वहीं शादी के बाद उसे एक बहु और पत्नी बनकर घर की मर्यादाओं का पालन करना पड़ता है. मेरा यहाँ आज़ादी से मतलब अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपनी ज़िन्दगी से जुड़े फैसले लेने के हक से है. जहाँ एक स्त्री अपनी सोच को जीवित रूप दे सके.

 

हमारे समाज में महिलाओं के शिक्षित होने के बावजूद भी उसे सताए जाने, दहेज उत्पीडन, जलाये जाने जैसे घिनौने अपराधों से पीड़ित किये जाने के मामले मामले आए दिन सामने आते रहते हैं. लडकी अगर अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है तो हमारा समाज उसे इसकी इजाजत नही देता. उस पर तरह-तरह के कलंक लगा दिए जाते हैं. अक्सर ही आनर कीलिंग की खबरें हमारे आसपास से सुनने को मिलती रहती हैं. जहाँ खोखली इज्जत के नाम पर अपनों के द्वारा ही अपनों का खून बहा दिया जाता है. हमारे घर समाज में अक्सर ही दावे किये जाते हैं कि अब लड़का लड़की को समान समझा जाता है, पर क्या यही है समानता ? ऊपर से कुछ और और अंदर से कुछ और. ये तो “हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और” जैसी कहावत जैसा है.

 

सोचिये अभी भी जब कहीं-कहीं शिक्षित महिलाओं की यह स्थिति है तो जो महिलाएं अशिक्षित हैं उनकी स्थिति कितनी दयनीय होगी. हम अक्सर इक्की दुक्की महिलाएं जो कामयाबी के शिखर तक पहुच गई हैं उनके उदहारण देकर खुश होते रहते हैं. हम झट से बोल पड़ते हैं कि अब तो महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. लेकिन जो महिलाएं आफिस या कहीं और काम करने जाती हैं क्या हमें पता है कि घर में उनके साथ कैसा सुलूक किया जाता है.

 

आज मै आपको ऐसी ही महिला से परिचित कराना चाहती हूँ जो शिक्षित होने के बावजूद भी सुखी जीवन की तालाश में इधर-उधर भटक रही है. बात मई माह कि है जब मैं अपने घर से कॉलेज बस में जा रही थी. तभी एक महिला मेरी बगल वाली सीट पर आकर बैठी. वो मुझसे महिला आयोग का पता पूछने लगी. फिर मैंने उससे पूछा कि वह महिला आयोग क्यों जा रही है ? क्या वह वहां कर्मचारी है ? पूछने पर उसने बताया कि वह वहां एक शिकायत दर्ज करने जा रही है. फिर वह शुरुआत से अपनी आपबीती बताने लगी. उसने अपना नाम कुसुम बताया और वह पेशे से वकील है. उसने बताया कि उसकी शादी 13 साल पहले हुई थी. तब से उसके ससुराल वाले दहेज या किसी और बात को लेकर झगड़ते रहते हैं. उसके ससुराल में कोई भी उससे अच्छा व्यवहार नहीं करता. उसके दो बच्चे भी है. उसके घरवालों ने उसके बच्चों को भी अब तक नहीं अपनाया है.

 

वह पहले भी पुलिस में शिकायत कर चुकी है तब इसके घरवालों ने माफ़ी मांगी थी और मिल जुलकर रहने का वादा किया था. लेकिन एक दो महीनों में वही पहले वाला रवैया शुरू हो गया. अब वह पिछले एक साल से ससुराल वालों से अलग उसी घर के नीचे वाले फ्लोर में अपने दोनों बच्चो के साथ रहती है तथा अपना खर्चा खुद ही चलाती है. यह कुसुम के पति का दूसरा विवाह है. पहला विवाह उसी किसी दूर रिश्तेदार की बहन से हुआ था, जिसकी छः महीनों में अकारण मृत्यु हो गयी थी. उसने बताया कि उसे भी अपनी जान का खतरा सताने लगा है, इसलिए वह महिला आयोग शिकायत दर्ज करने जा रही है.

 

जब मैंने इस महिला की आपबीती सुनी तो मै

12 COMMENTS

  1. सुनील पटेल जी,, यह तो ठीक से मालूम नहीं है कि एक डेढ़ हजार वर्ष पहले महिलाओं की क्या हालत थी,पर इतना अवश्य है कि आपके द्वारा दर्शाए गए सुझाओं पर ध्यान दिया जाए और भ्रूण हत्या आदि पर रोक लगे तो महिलाओं की दशा अवश्य सुधरेगी.इस सकारात्मक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

  2. आज की तारिख में बहुत ही ज्वलंत प्रश्न है की “आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाएं” – उत्तर है बिलकुल रुकेगी. १००% रुकेगी. बहुत जल्द रुकेगी.
    जरुरत है तो सोच बदलने की. यहाँ सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है की सोच बदलेगी कैसे, किसकी सोच बदलेगी, कौन बदलेगा सोच.
    १. किसी भी महिला पर अत्याचार की सबसे बड़ी दोषी एक महिला ही होती है (अधिकतर मामलो में) – महिला वर्ग की सोच बदलनी होगी.
    २. किसी भी घर में सबसे पहले शिक्षक एक महिला ही होती है. अगर महिला किसी बालिका को ससक्त होने की सिक्षा देगी तो वोह बालिका बड़ी होकर किसी भी विपरीत परिस्थिति से लड़ सकेगी.
    ३. अगर घर की महिला सोच ले की हमारे घर में किसी महिला (खुद के घर की या ब्याह कर आई हुई नवयुवती) पर कोई अत्याचार नहीं होगा तो कुछ समय बाद किसी भी महिला पर कोई अत्याचार हो ही नहीं सकता है.

    शुरुआत कैसे होगी :
    १. अगर में अपने घर में लड़की के साथ साथ लडको को भी यह सिखाएगी की किसी मेहमान के आने पर पानी लेकर आना है, चाय बनानी है, अपने बर्तन खुद धोने की जगह लेकर जाता है, हो सके तो खुद ही अपने बर्तन, कपडे धोना है. इस प्रकार लडको में यह बात आ जाएगी की हमे भी घर के सामान्य कार्य करना है, उनकी भी जिम्मेदारी है. लड़की को भी पढाई का पूरा मौका मिलेगा, घर में लडको का बराबर प्रोतसहन मिलेगा.
    २. घर में लड़की को भी उतना ही सम्मान दिया जाय जितना लडको को. लड़का बचपन से ही समझेगा की वोह और लड़की बराबर है.
    ३. जो लड़का बचपन में अपने परिवार से नैतिकता सीखेगा. महिलाओ को इज्जत देना सीखेगा, अच्छे संस्कार सीखेगा तो विस्वास मानिये की किसी भी परिस्थिति में वोह अपने संस्कारो के डिगेगा नहीं. कितनी भी बुरी संगत में पद जाय किन्तु महिलाओ पर अत्त्याचार नहीं करेगा. बचपन की सीख पत्थर की लकीरों के सामान होती है तो कभी मिटटी नहीं है.

    बहुत विस्तृत विषय है. निष्कर्ष निकलना बहुत आसन है. परिवार से शुरुआत हो जाय तो कुछ ही समय (सालो) में सब कुछ सामान्य हो जायेगा.
    सच्चा इतिहास पढ़ा जाय तो पता चलेगा की डेड-दो हजार साल पहले तक हिंदुस्तान में लघभग सभी जगह महिलाओ को बराबरी का दर्जा मिला था.

  3. मुर्ख ह्रदय न चेत ,जो गुरु मिलै बिरंची सम .
    फूलहि फलहि न बेत , जदपि सुधा बरसत अयन .

  4. विमलेश जी आपका भी जबाब नहीं मेरे उस टिप्पणी का अर्थ केवल यही था कि कोई भी मर्द आदिम काल से चली आरही अपनी वर्चस्व को अपने ही हाथों समाप्त नहीं करना चाहेगा,अतः औरतों को यातनाओं से मुक्ति कभी नहीं मिलेगी.आम मर्द औरत को अपने से कमजोर समझता है और कमजोरों को मजबूत होते देखना कोई पसंद नहीं करता. इस मामले में हिन्दुओं का वैचारिक दोगलापन तो और प्रखर है.एक तरफ तो वे विद्या की देवी ,धन की देवी और शक्ति की देवी को अपना आराध्य मानते हैं,दूसरी तरफ अपने घर की देवियों को हर तरह की प्रताड़ना के साथ उनको जला कर मारने से भी बाज नहीं आते,आपने तो पता नहीं मेरी पिछली टिप्पणी क्या अर्थ लगाया?

  5. हमारे समाज में आज दोनों ही एक दुसरे से प्रतारित होने लगे हैं, इसके लिए बेहतर है कि दोनों एक दुसरे को समझे और शांतिपूर्वक साथ रहे.

  6. बहुत अच्छा लेख है अन्नपूर्णा जी, मै आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ.

  7. सादाब जी व श्री सिंह साहब से पूर्णतया सहमत .
    औरते किस आजादी की बात करती है केवल यही विचारणीय बिंदु .

    सायद जिसका जवाब देना किसी को भी अच्छा ना लगे
    किन्तु समझदार के लिए इशारा काफी होता है

    आज महिलाओ को ५०% आरक्षण के बाद देश को वैचारिक रूप से ५०% तथा २५% आधुनिक नगरवधुए प्राप्त हो गयी है जो की शत प्रतिशत की ओर शातात अग्रसर है
    प्रस्तु आकड़ा जब शत प्रतिशत हो जायेगा उस समय अन्नपूर्णाजी जैसी प्रगतीशी लेखिकाओ का सपना पूरा हो जायेगा तब जाकर पूर्ण आजादी मिलेजी ! महिलाओ को. .
    उस समय की कल्पना कीजिये जब देबी आरती की जगह प्रत्येक घर में शिला की जवानी से दिन के सारे शुभ कार्य प्रारंभ होंगे .
    और ये कलयुगी देविया हमारे बुजुर्गो व भद्र पुरुषो को इठला इठला कर आशीर्वाद प्रदान करेंगी

  8. आप के लेख का शीर्षक है,
    ‘आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाएं ?”
    उत्तर है,”कभी नहीं”.

  9. आपने बिलकुल ठीक लिखा है आपको हार्दिक बधाई औरत पर ज़ुल्म और अन्याय तब तक होता रहेगा जब तक वः सहती रहेगी संघर्ष जरी रखना होगा जैसे देश और गुलाम आज़ाद हुए वैसे ही औरत भी ज़रूर आज़ाद होगी विशवास करो इंसाफ की इस जंग में हम जैसे लोग आपके साथ हैं. संपादक पब्लिक ऑब्ज़र्वर नजीबाबाद

  10. बहुत अच्छा लिखा है आपने, अभी भी औरतें जुर्म का शिकार होती हैं, और जरूरी नही की वो पुरुषों के द्वारा प्रतारित की जाती हैं, अधिकतर किस्सों में एक महिला ही दूसरी की दुश्मन बन जाती है और उसकी जान लेने पर उतारू हो जाती है.

  11. अन्नपूर्ण मित्तल जी, आप एक महिला है और महिला होने के नाते आप ने जो भी लिखा, जो भी सुना वो सच नही। मुझे ये तो ज्यादा पता नही कि दुनिया मैं महिलाओ को लोग किस नजरिये से देखते है पर हा इतना जरूर पता है कि हमारे देश में नारी को पूजा जाता है लक्ष्मी के रूप मैं, पार्वती के रूप मैं, सीता के रूप मैं, सरस्वती के रूप मैं और दुर्ग के रूप मैं। आज समाज और पुरूषो पर तरह तरह के आरोप लगाये जाते है, समाज और पुरूष महिलाओ पर अत्याचार कर रहे है पर क्या ये हकीकत है नही बिल्कुल नही। आज आधुनिकता की दौड़ में नारी इस हद तक गिर चुकी है कि उसे अपनी अपने परिवार की इज्जत का बिल्कुल ख्याल नही। इस का ताजा उदाहरण मैं वीना मलिक के रूप में आप को देना चाहॅूॅगा। जिस नारी को एक मां अपनी कोख में छुपा कर नो महीने रखती है जिस को वो अपनी छाती का दूध ढक कर पिलाती है जिस बेटी को बाप दुनिया की बुरी नजर से बचाने के लिये अपनी इज्जत की खातिर अपनी जान तक दे देते हो, जिस के शादी और पढाई की खातिर उस का परिवार खुद को महाजन की दुकान पर गिरवी रख देता हो क्या वो मां, बाप, भाई उस का कभी बुरा चाहेगे। अगर बुरा नही चाहेगे तो उस से बुरे की उम्मीद भी नही करेगे। जो सांस अपने बेटे के लिये चांद सी बहू, गुणवान, भाग्यवान राजलक्ष्मी ढूढते ढूढते अपने ऑखो की रोशनी तक खो देती हो क्या वो सांस कभी उस बहू का बुरा चाहेगे। पर ऐसा होता नही वीना मलिक जैसी बदनाम औरते कुछ रूपयो की खातिर अपने मां बाप भाई खानदान का ख्याल नही करती। और अपने बदन की सरेआम नुमाईश कर पूरे नारी समाज को बदनाम कर देती है। बेटी बहन को इस तरह कौन सा बाप या भाई देख सकता है शायद मुझ से ज्यादा आप जानती होगी, शादी के दो तीन, या एक साल बाद बूढे मां बाप को अकेला छोड पति अपनी पत्नी संग अलग गृहस्थी क्यो बसा लेता है इस का जवाब भी आप के जरूर होगा। आज टीवी, चैनलो, अखबारो में नारी वन पीस, और टू पीस कपडे पहन कर किस प्रकार नारी का मान सम्म्मान बढा रही है आप को जरूर ऐसे औरतो पर गर्व होता होगा।

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