टोटल लॉक डाउन में अपनी रक्षा स्वयं कीजिए

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(लिमटी खरे)

आप लगतार लगभग सवा माह से घरों में बंद थे। टोटल लॉक डाउन लागू है। कुछ स्थानों पर कर्फ्यू भी लगाया गया है। लोगों की सुविधा को देखते हुए टोटल लॉक डाउन में कुछ ढील के लिए देश भर के जिलों को रेड, आरेंज और ग्रीन जोन में बांटा गया है। जिन स्थानों पर ढील दिए जाने की घोषणा की गई, उनें से अनेक जगहों पर शासन प्रशासन के दिशा निर्देशों की अव्हेलना की बातें भी सामने आईं हैं, यह दुखद और शर्मनाक माना जा सकता है।

जो कुछ भी हो रहा है वह सब आपके स्वास्थ्य को देखते हुए ही किया जा रहा है। केंद्र और सूबाई सरकारों ने जमीनी हालातों को देखते हुए ही कार्य योजना बनाकर सोच समझकर ही ढील के आदेश दिए हैं। लगातार 40 दिनों तक लॉक डाउन होने के बाद इस तरह की ढील देना आवश्यक प्रतीत हो रहा था।

देखा जाए तो सामाजिक और आर्थिक संरचना की ओर से भी इस तरह की छूट की मांग उठती दिख रही थी। लोगों की रोजमर्रा की जरूरत और जिंदगी को आसान बनाने के लिए इस तरह की छूट की दरकार भी महसूस की जा रही थी। रेड, आरेंज और ग्रीन जोन में शर्तों के साथ छूट प्रदाय की गई है। सिर्फ कंटेनमेंट क्षेत्र में ही पूरी तरह की पाबंदियां लागू हैं, यह जरूरी भी हो गया था।

चूंकि यह सब कुछ आम आदमी के स्वास्थ्य को देखकर ही किया जा रहा था। इसलिए इस तरह की रियायत देने का जोखिम सरकार के द्वारा उठाया गया है। आम आदमी को सरकार के प्रति इस तरह की रियायत के लिए आभार व्यक्त किया जाना चाहिए, क्योंकि अगर इन रियायतों का अगर सम्मान हम नहीं करेंगे तो स्थितियों को एक बार फिर पुराने स्वरूप में आने में समय नहीं लगने वाला। देश की सियासी राजधानी दिल्ली जहां की गतिविधियों से समूचे देश में संदेश प्रसारित होता है में ही शारीरिक दूरी का मजाक साफ उड़ता दिखा।

दिल्ली सहित अनेक शहरों में शराब की दुकानें खोलने की छूट प्रदाय की गई है। शराब दुकानों में जिस तरह की भीड़ उमड़ रही है उससे निकलने वाले संदेश को समझना होगा। अनेक स्थानों पर पुलिस को बल का प्रयोग करने पर मजबूर भी होना पड़ा। जहां उल्लंघन होता दिखा, वहां प्रशासन को कड़ाई करने पर मजबूर होना पड़ा। कई जगहों पर होम डिलेवरी पर भी सहमति बनी है। जिस तरह का परिदृश्य दिख रहा है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि देश के युवा नशे का गुलाम हो चुकी है।

बहरहाल, अब हमें खुद ही समझना होगा। हमें खुद ही नियम कायदों में रहने का अभ्यास करना होगा। किसाी भी महापुरूष या शास्त्र में यह नही लिखा है कि खुद को नुकसान पहुंचाओ। गौतम बुद्ध ने भी कहा था कि प्रकाशमान होकर स्वयं दीप बनो। सरकारों के द्वारा छूट की सीमाएं तय की जाएंगी। उसके बाद आपको ही तय करना है कि उस सीमा में आप इलास्टिक को कितना खींच समते हैं, अर्थात कितनी कम से कम स्थितियों में आप अपना गुजारा कर साकते हैं।

बाजार खुल रहे हैं, हमें ही सावधानी रखना होगा कि हम भीड़ के रूप में एकत्र न हों। बाजार पर्याप्त समय के लिए खुल रहे हैं, इसलिए हमें ही तय करना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे कर पाएंगे। अपनी सुरक्षा हमें खुद ही करना है। स्वनिर्धारण हमें ही करना है, स्वनिर्धारण, स्व सतर्कता, स्व नियमन में बहुत ज्यादा ताकत होती है यह बात ध्यान रखना चाहिए। अगर हम इसी तरह नियम कायदों को हवा में उड़ाते रहेंगे तो पुलिस या प्रशासन हमें कब तक बख्शेंगे!

देखा जाए तो आज के समय की जरूरत और पाबंदी यही है कि हम भीड़ के रूप में एकत्र न हों। जब आपदा की घड़ी है तो हमें जिम्मेदार नागरिक की भूमिका में न केवल दिखना जरूरी है वरन उसका पालन भी हो रहा हो, यह जरूर दिखे। इस आपदा की घड़ी में हमें समस्या बनने के बजाए समाधान का हिस्सा बनने का प्रयास करना चाहिए। अगर हम यह ठान लें कि हम दो गज की दूरी का पालन सुनिश्चित करेंगे तो उसके बाद शायद ही लॉक डाउन की जरूरत आगे पड़े। सरकार भी इसे बढ़ाना नहीं चाहती पर लोगों के स्वास्थ्य को लेकर वह फिकरमंद है और यही कारण है कि सरकार के द्वारा इसे तीसरे चरण में भी लागू किया गया है। हम चाहते हैं कि लॉक डाउन का चौथा चरण न आए तो हमें अभी से ही इसकी तैयारी करना जरूरी है, अगर ऐसा हुआ तो समचा देश ही ग्रीन जोन का हिस्सा बना दिख सकता है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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