समन्वय नंद
ओड़िशा के कंधमाल जिले से पढाई कराने की बात कह कर ईसाई पास्टर पांच जनजातीय बच्चों को भुवनेश्वर ले कर आ गये थे । लेकिन वहां उन्हें पढाने के बजाए उनसे नौकरों की तरह काम करवाते थे और उत्पीडन करते थे । ये बच्चे किसी तरह से उस पास्टर के चुंगुल से भाग जाने के बाद इस घटना का पर्दाफाश हुआ है। पास्टर के चुंगुल से भागने में सफल होने वाले इन बच्चों में एक का नाम जोशेफ रुपा माझी है । उस बच्चे ने जो गांव वालों को बताया है वह रौंगटे खडे कर देने वाली है । उन्हें न सिर्फ पढाया नहीं जा रहा था, नौकरों की तरह काम करवाया जाता था, उत्पीडन किया जाता था बल्कि उनके अभिभावकों से भी मिलने नहीं दिया जा रहा था । जोसेफ का कहना है कि वे सिर्फ पांच बच्चे नहीं है, ऐसे अनेक बच्चें पास्टरों के चुंगुल में हैं और जिनका उत्पीडन हो रहा है।
य़ह कहानी केवल जोशेकी नहीं है । ऐसे अनेक जोशेफ हैं जो पादरियों व पास्टरों द्वारा शोषण के शीकार हो रहे हैं । लेकिन वे जोशेफ की तरह भाग्यशाली नहीं है ।
इस घटना के सामने आने के बाद पास्टर के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग जोर पकडती जा रही है । लेकिन राज्य़ सरकार पास्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी, इसको लेकर लोगों में संदेह है । इसके कारण भी हैं । ओडिशा में अतीत में चर्च व मिशनरी संस्थाओं के काले कारनामें काफी उजागर हुए । लेकिन राज्य सरकार इस पर कार्रवाई करने में किसी प्रकार की रुचि दिखाने के बजाए लिपापोती में व्यस्त रही ।
चर्च व मिशनरी संस्थाएं हमेशा सेवा, प्रेम व करुणा की बातें करते हैं । लेकिन उनके द्वारा इस तरह के घिनौने कामों के बारे में पर्दाफाश होने की यह कोई नई घटना नहीं है। पिछले एक माह में ही चर्च व मिशनरी संस्थाओं के बच्चों के तस्करी के मामले सामने आये थे । हालांकि इन घटनाओं को राष्ट्रीय मीडिया ने बहुत अधिक महत्व नहीं दिया था ।लेकिन स्थानीय मीडिया में इसकी काफी चर्चा रही ।
गत माह जनजाति बहुल गजपति जिले के बच्चों की तस्करी का मामला सामने आया था। गजपति जिले के 18 बच्चों को तमिलनाडु के कन्याकुमारी के पास स्थित एक चर्च से छुडवाया गया था । तमिलनाडु ने इन बच्चों को चर्च से छुडाया था । इसके अलावा इस घटना के कुछ दिन बाद ही गजपति जिले के ही 15 बच्चों को तमिलनाडु के कोईंबाटुर के पास से छुडाय़ा गया था । इन बच्चों में तीन साल के आयु वर्ग के बच्चे भी शामिल थे ।
यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है । यह वे घटनाओं है जो सामने आयी हैं, लेकिन ऐसे और भी घटनाएं होना संभव है जो लोगों के नजर में नहीं आ रही है । इस कारण मामले की विस्तृत जांच की आवश्यकता है ।
सेवा, प्रेम व करुणा की लुभावन बातें करने वाले चर्च व मिशनरी संस्थाओं द्वारा गरीब बच्चों की तस्करी के एक के बाद एक घटनाएँ क्या सिद्ध करती हैं । इन घटनाओं पर गंभीरता से नजर डालने पर चर्च व मिशनरी संस्थाओं द्वारा बच्चों की संगठित तस्करी के आरोपों को और बल मिलता है ।
चर्च व मिशनरी संगठनों पर तस्करी व उत्पीडन के आरोप केवल ओडिशा या भारत में नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर इन संगठनों पर अतीत में अनेक आरोप लगता रहा है । ओडिशा में घटना में घटने वाली इन ताजा घटनाओं ने उन आरोपों को और दृढ किया है ।
कैथोलिक बिशप काउनसिल आफ ओडिशा (सीबीसीआई) कैथोलिक ईसाइयों का एक प्रमुख संस्था है । गत मार्च के माह में बंगलूरू में इसकी बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद एक आधिकारिक बक्तव्य जारी किया गया था । भारत के निर्माण में चर्च की भूमिका विषय पर यह बक्तव्य था । इस बयान के 8.6 बिंदु पर नजर डालेंगे तो काफी कुछ स्पष्ट होगा । इसमें कहा गया है चर्च मानव तस्करी के पीडितों के लिए कार्य करेगा।
यहां चर्च के कथनी व करनी का अंतर स्पष्ट होता है । सीबीसीआई जैसे ईसाइयों के सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था एक और मानव तस्करी से पीडित लोगों के लिए काम करने की उदघोषणा कर बाकयदा बय़ान जारी करती है वहीं दूसरी ओर तस्करी का शिकार हुए गरीब बच्चों को चर्च से छुडाया जाता है । इसे पाखंड नहीं कहा जाएगा तो क्या कहा जाएगा । इस लिए सेवा करुणा व प्रेम की बातें करने वाले चर्च के लुभावनें शब्दों के जाल में कितनी सच्चाई है इस पर ध्यान देने की जरुरत है ।
लेकिन अब यह प्रश्न आता है कि इस पूरे प्रकरण पर सरकार का दृष्टिकोण क्य़ा है । गजपति के घटना को एक माह से अधिक हो चुका है । लेकिन राज्य सरकार ने इस पर कुछ खास किया हो, ऐसा लगता नहीं है । इस घटना के पीछे कौन कौन है, इसके तार कहां तक जुडे हैं इसकी विस्तृत जांच कराये जाने चाहिए थे ताकि आगामी दिनों में इस तरह के गरीब बच्चों के तस्करी को रोका जा सके । लेकिन नवीन पटनायक सरकार ने ऐसा कुछ भी करना उचित नहीं समझा ।
समीक्षकों का मानना है कि नवीन पटनायक सरकार का इतिहास रहा है कि जब भी चर्च व उससे जुडे संस्थाओं के लोगों पर किसी तरह का आरोप लगता है तो सरकार जांच कराने के बजाए उन्हें बचाने में लग जाती है । जांच को बंद कर देती है । इसके लिए एक ही उदाहरण देना उचित होगा । कंधमाल जिले में नंदपुर में स्थित राहत शिविर में बम बनाया जा रहा था । लेकिन इसमें असावधानता के कारण बम फट गया और कुछ लोग हताहत हुए । नंदपुर स्थित शिविर में कौन बम बना रहा था, किस उद्देश्य से बना रहा था इसकी जांच की मांग हुई । ऐसा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई । लेकिन नवीन पटनायक सरकार ने जांच कराना उचित नहीं समझा । जांच कराने से चर्च से जुडे अनेक चेहरे बेनकाब होने का खतरा था ।
इस कारण राज्य के बच्चों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार पर प्रबल जनमत का दबाव डालने की आवश्यकता है । तभी इसके पीछे की साजिश व उद्देश्यों का पर्दाफास हो सकता है।
जबसे केन्द्र में कांग्रेस की सरकार आई है तबसे इस तरह की गतिविधियों में निरंतर इजाफा होता जा रहा है. गत दिनों कन्धमाल में हुए दंगे आखिर किस ओर इशारा कर रहे हैं. प्राचीन मंदिरों की सम्पतियाँ सरकार की नजर में चुभ रही हैं उनपर जाँच के नाम पर अपनी पकड़ बनाने की घृणित कोशिश की जा रही है पर क्या इसी तरह का कोई प्रयास चर्च या उससे जुड़े लोगों के बारे में भी हो रही है?
भाई चर्च का मामला है, पर्दे पड़े रहने दो. कोई साध्वी या साधू बतलाओ, बिना अपराध के भी धरलेंगे और टांग देंगे. ज़रा सोनिया माता को तो लिहाज करो, क्यूँ चर्च की चर्चा करते हो. उनके १०० खून माफ़ (१०० से अधिक हों तो भी चलेगा)