चक्रव्यूह

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aloneदुनिया तो है एक मेला

पर, देखिये

इस मेले में आदमी

कितना है अकेला .

घिरा है भीड़ से

पर,

कैसे खोजें अपनों को

अजनबियों के बीच से .

भीड़ समस्याओं की भी

लगी है चारों ओर .

हर तरफ है

शोर ही शोर .

समस्याओं के एक चक्रव्यूह से

निकलते ही ,

दूसरे में फंस जाता है.

क्या करे, न करे

समझ नहीं पाता है .

मेले में है,

झमेले में है,

अपनों से बिछुड़े हुए

एक अबोध बालक की तरह .

चौराहे पर खड़ा,

किंकर्तव्यविमूढ़ !

 

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