ईरान पर ट्रंप का बरस पड़ना

डा. वेद प्रताप वैदिक

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका और ईरान में फिर से तनाव बढ़ गया है। ट्रंप प्रशासन ने ईरान पर कुछ नए प्रतिबंध लगा दिए हैं, क्योंकि ईरान ने एक प्रक्षेपास्त्र-परीक्षण कर लिया है। ईरान का कहना है कि इस परीक्षण से उसने किसी भी संधि का उल्लंघन नहीं किया है। उसके अनुसार 2015 में परमाणु-परीक्षणों के बारे में उसने अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों से जो समझौता किया था, उसमें परमाणु बम नहीं बनाने और परमाणु-प्रक्षेपास्त्र नहीं छोड़ने का संकल्प किया था। उसने अभी जो छोड़ा है, वह परमाणु-प्रक्षेपास्त्र नहीं है। वह सिर्फ प्रक्षेपास्त्र है।

इसी आधार पर ईरान का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2010 में ईरान के विरुद्ध जो प्रस्ताव पारित किया था, उसमें भी परमाणु-प्रक्षेपास्त्र पर आपत्ति थी लेकिन ट्रंप ने ईरान को कड़ी चेतावनी दे दी है। उसने कहा है, ईरान, तुम मुझे ओबामा मत समझ लेना। मैं तुम्हें ठीक कर दूंगा। ये प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) जो तुमने छोड़ा है, क्या यह बंदरों को अंतरिक्ष की सैर कराने के लिए छोड़ा है? ट्रंप ने अपने चुनाव-अभियान के दौरान भी कई बार ईरान-विरोधी टिप्पणियां की थीं।

ईरान ने ट्रंप की धमकियों का करारा जवाब दिया है। उसने कुछ अमेरिकियों पर जवाबी प्रतिबंध लगा दिए हैं और सर्वोच्च ईरानी नेता आयतुल्लाह खामेनई ने कहा है कि ट्रंपजी, ईरान को तुम हुसैन का इराक मत समझ लेना। ईरान तुम्हारा मुकाबला डटकर करेगा।

आशा है कि ट्रंप सउदी अरब और इजराइल के उकसावे में नहीं आएंगे। इजराइल ने 2015 के परमाणु समझौते का कड़ा विरोध किया था। यूरोपीय राष्ट्रों ने कई वर्ष लगा कर यह समझौता करवाया था। इजराइल को डर है कि ईरानी बम का प्रयोग अगर होगा तो इजराइल के खिलाफ ही होगा। ट्रंप यदि इस परमाणु-समझौते को भंग करना चाहेंगे तो यूरोपीय देश उनका साथ शायद ही दें। यदि ट्रंप ने जिद कर ली तो सारे पश्चिम एशिया के शिया उनके खिलाफ हो जाएंगे। अमेरिका को ईरान के अलावा लेबनान, इराक, सीरिया, जोर्डन, कुवैत आदि में फैली शिया ताकतों से जूझना होगा। इसके अलावा सीरिया के कट्टरपंथी सुन्नियों से उसकी लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी।

यदि अमेरिका ईरान के खिलाफ कोई मोर्चा खोलेगा तो भारत को भी उसका साथ देने में कठिनाई होगी। ईरान का असर अफगानिस्तान के मध्य-देश में बसे हजारा लोगों में भी काफी ज्यादा है। ईरान को ‘सबसे बड़ा आतंकवादी देश’ घोषित करने की बजाय यह बेहतर होगा कि उसे शांति और सहयोग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाए।

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