तुलसी चौरा मुस्कराता

बिल्ली को मौसी कहते हैं ,

और गाय को हम माता|

यही हमारे संस्कार हैं,

पशुओं तक से है नाता|

 

चिड़ियों को देते हैं दाना,

कौओं को रोटी देते|

प्यासों को पानी देने में,

हमको मज़ा बहुत आता|

 

यहाँ बाग में फूलों फूलों

हर दिन भँवरा मड़राता,

पेड़ लगा है जो आंगन में

वह भी तो गाना गाता|

 

देने वाले हाथ हमारे,

हमको देना ही आता|

पर जितना भी हम‌ देते हैं,

दुगना वापस आ जाता|

 

रोज हमारे घर आंगन में,

स्वर्ण सबेरा बिखराता|

रात चाँदनी जब खिलती है,

तुलसी चौरा मुस्कराता|

 

Previous articleआप ही ले जाएगा ।
Next articleमोबाईल का आर्डर‌
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here