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तुम चलत सहमित संस्फुरत ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
उड़िकें गगन आए धरणि, बहु वेग कौ करिकें शमन; वरिकें नमन भास्वर नयन, ज्यों यान उतरत पट्टियन ! बचिकें विमानन जिमि विचरि, गतिरोध कौ अवरोध तरि; आत्मा चलत झाँकत जगत, मन सहज करि लखि क्षुद्र गति !