सूरज चाचा

sun
सूरज चाचा कैसे हो,
क्या पहले के जैसे हो,
बिना दाम के काम नहीं,
क्या तुम भी उनमें से हो?
 
बोलो बोलो क्या लोगे?
बादल कैसे भेजोगे?
चाचा जल बरसाने का,
कितने पैसे तुम लोगे?
 
पानी नहीं गिराया है,
बूँद बूँद तरसाया है,
एक टक ऊपर ताक रहे,
बादल को भड़काया है|
 
चाचा बोले गुस्से में,
अक्ल नहीं बिल्कुल तुममें,
वृक्ष हज़ारों काट रहे,
पर्यावरण बिगाड़ रहे|
 
ईंधन खूब जलाया है,
जहर रोज फैलाया है,
धुँआ धुँआ अब मौसम है,
गरमी नहीं हुई कम है|
 
बादल भी कतराते हैं,
नभ में वे डर जाते हैं,
पर्यावरण सुधारोगे,
तो ढेर ढेर जल पा लोगे|
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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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