अघोषित युद्ध….. 

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अनिल अनूप 

बेशक अफगानिस्तान के खिलाफ पाकपरस्त आतंकी ‘अघोषित युद्ध’ जारी रखे हों, लेकिन विश्व के कई मंचों पर पाकिस्तान को नंगा किया जाता रहा है। यहां तक कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में यह मुद्दा उठाते हुए पाकिस्तान को ‘आतंकवादी देश’ घोषित करने की भी मांग कर चुके हैं। अब पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के मंच से प्रधानमंत्री मोदी ने नाम लेकर कहा है कि दुनिया में जब भी कोई और किसी भी जगह पर आतंकी हमला होता है, तो उसके पीछे पाकिस्तान की भूमिका जरूर होती है। पाकपरस्त आतंकवाद का मुद्दा जी-20 देशों के सम्मेलन में भी उठा, ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के साझा घोषणा पत्र में भी दर्ज किया गया, आपसी द्विपक्षीय शिखर संवादों में भी आतंकवाद पर चिंताएं जताई गई हैं, लेकिन हैरानी है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी आतंकवाद की परिभाषा तक तय नहीं की गई है। लिहाजा जब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी ने अमरीकी छात्रों को पाकिस्तान के ‘अघोषित युद्ध’ के बारे में बताया होगा, तो नौजवान पीढ़ी हैरान नहीं हुई होगी! वैसे अमरीकी सरकार ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद कई बार रोकी है और कई बार तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के आतंकवाद के प्रति सचेत भी किया है, लेकिन पाकपरस्त आतंकवाद जारी रहा है। अब कोई सियासी बयानबाजी नहीं है, बल्कि अफगानिस्तान के चुने हुए राष्ट्रपति ने खुलासा किया है। अफगान राष्ट्रपति ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वाशिंगटन की एक यूनिवर्सिटी के छात्रों को बताया है कि पाकिस्तान लगातार उनके मुल्क के खिलाफ एक तरह का ‘अघोषित युद्ध’ छेड़े है और अस्थिरता फैला रहा है। अफगान राष्ट्रपति जब संवाद कर रहे थे, तो उन्हें खबर दे दी गई कि उनके मुल्क के दो जिलों जगोरी और मलिस्तान में तालिबान आतंकियों ने हमला कर दिया है और 30 इलीट कमांडो भी ‘शहीद’ हो चुके हैं। कई पुलिसवाले भी मारे गए हैं। दरअसल ये इलाके अभी तक अफगानिस्तान के बिलकुल सुरक्षित क्षेत्र माने जाते रहे हैं, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि तालिबान आतंकियों ने ज्यादातर इलाके में कब्जा जमा लिया है। क्या अफगानिस्तान में तालिबानों की दोबारा हुकूमत बनने के आसार बन रहे हैं? ये अधिकतर आतंकी पाकपरस्त हैं। उन इलाकों की शिया आबादी वहां से पलायन कर रही है, जबकि पाकपरस्त तालिबान सुन्नी मुसलमान हैं।अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक दौर की वापसी के बाद भारत सरकार ने विकास और पुनरोत्थान के कई कार्य किए हैं। सरकार के उच्च अधिकारी भी काबुल भेजे जा रहे हैं। भारत की दुनिया में वाहवाही के मद्देनजर पाकिस्तान भी अफगानिस्तान में काम करना चाहता है, लेकिन उसकी भूमिका दोगली है। अफगान हुकूमत बार-बार पाकिस्तान से आग्रह करती रही है कि आतंकवाद को विदेश नीति के तौर पर इस्तेमाल न किया जाए, लेकिन वहां हुकूमत बदली है और इमरान खान नए प्रधानमंत्री बने हैं। उसके बावजूद आतंकवाद जारी है। पाकिस्तान का यही ‘अघोषित युद्ध’ भारत में जारी है और यही अफगानिस्तान के साथ खेला जा रहा है। सवाल है कि बार-बार घोषणाओं और आपत्तियों के बावजूद अमरीका की पाकपरस्त आतंकवाद को रोकने में कोई दिलचस्पी है या नहीं? अमरीका के सैनिक अफगानिस्तान में हैं, व्यापक स्तर पर हथियार वहां हैं, कहने को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी है, लेकिन अफगानिस्तान में कौन सी लड़ाई अमरीका लड़ रहा है? उसकी मजबूरी यह है कि अफगानिस्तान में प्रवेश करने के लिए उसे पाकिस्तान से गुजर कर जाना पड़ता है। सवाल यह भी है कि अमरीका आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का कभी असल विरोध कर पाएगा या जुबानी जमाखर्च ही चलता रहेगा? चूंकि अमरीका दुनिया का ‘दादा’ है, लिहाजा उसका हस्तक्षेप अनिवार्य है। अब पाकिस्तान ने समानांतर तौर पर चीन का आसरा ढूंढ लिया है। क्या आतंकवाद को खत्म करने की कोई सार्थक शुरुआत नहीं की जाएगी? लगता है, वह भूमिका भी भारत को अदा · करनी पड़ेगी!

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