विरोध के बहाने मिशनरी को अपनी जमीन बचाने की चिंता

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आर.एल.फ्रांसिस

जैसे-जैसे नर्मदा कुंभ का दिन नजदीक आता जा रहा है वैसे ही ईसाई मिशनरी इसके विरोध में खुल कर सामने आने लगे है। उन्हें डर सताने लगा है कि इस कुंभ में शामिल होने वाले गैर ईसाई आदिवासियों और ईसाई आदिवासियों के बीच तनाव फैल सकता है और इसके साथ ही घबराहट में ईसाई आदिवासी पुन: हिन्दू धर्म में वापसी कर सकते है।

आगामी 10 से 12 फरवरी को मध्य प्रदेश के मंडला में हिन्दू संगठनों द्वारा नर्मदा के तट पर ”माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ” का आयोजन किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयसवेक संघ के बड़े नेताओं सहित इसमें हजारों साधु-संतो के शिरकत करने की सम्भावना है। कुंभ में लाखों आदिवासी समुदाय के लोग इन्हें सुनने के लिए पुंहचने वाले है। आयोजकों का दावा है कि प्रकृति से जुड़ी जनजातियां जो विकास के वह आयाम तय नहीं कर पाई है, जो किया जाना चाहिए था उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए भी यह सामाजिक कुंभ बड़ा सहायक होगा। अब तक भोले भाले आदिवासी समाज को दिग्भ्रमित कर, उनकी भावनाओं का शोषण किया जाता रहा है। जिस पर अंकुश लगाने के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा अभियान चलाया जा रहा है।

मंडला भारत के सबसे पिछड़े जिलों की सूची में बीसवें स्थान पर है। यहां पर कौल आदिवासी बड़ी संख्या में है। चर्च उनके बीच लम्बे समय से कार्य कर रहा है। हिन्दू संगठनों द्वारा इस क्षेत्र में दखल को चर्च अपने लिए खतरे की घंटी मान रहा है। हालांकि वह सीधे-सीधे ”माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ” पर रोक लगाने की बात तो नही करता लेकिन मध्य प्रदेश सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक जिस तरह की अपनी चिंताओं को वह बता रहा है उसका आशय यही है कि कोई आगे आकर इस आयोजन पर रोक लगा दें। चर्च को डर है कि अगर वह सीधे-सीधे ऐसे आयोजन पर रोक की मांग करता है तो कल को उसके द्वारा की जाने वाली चंगाई सभाओं पर भी ऐसी मांग उठ सकती है।

”माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ” को लेकर चर्च नेता देश भर में भय का वातावरण बनाने में जुट गए है। चर्च की एक तीन मैबरों वाली टीम ने आयोजन को लेकर काफी खौफनाक तस्वीर खींची है। टीम ने कहा है कि अब नहीं तो आयोजन के बाद ईसाई समुदाय पर खतरा बड़ सकता है। टीम की सबसे बड़ी चिंता यह है कि कहीं इससे ईसाई आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी न होने लगे। वहीं स्थानीय ईसाई इस आयोजन से कोई खतरा महसूस नहीं करते। मध्य प्रदेश कैथोलिक ईसाई महासंघ से जुड़े रार्बट फ्रांसिस ने दूरभाष पर बताया कि स्थानीय ईसाइयों को इससे कोई परेशानी नहीं है। उन्होंने कहा कि जब हमारे ऐसे कार्यक्रम होते है तो हिन्दू समुदाय भी हमसे कोई शिकायत नहीं करता। उन्होंने कहा कि हां, कुछ लोगों को अपना कार्यक्षेत्र कम होता जरुर दिखाई दे रहा है और ऐसे ही लोग समुदाय की सुरक्षा की बातें देश-विदेश में कर रहे है। स्थानीय लोग इस बात को जानते है।

मध्य प्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य अन्नद बनार्ड ने कहा कि पिछले कुछ दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन अब आदिवासी समाज के बीच जाकर काम कर रहे है इस कारण इस समुदाय पर से चर्च का एकाधिकार कम होता जा रहा है और यही चर्च की सबसे बड़ी चिंता है। जहां तक सुरक्षा का मामला है तो यह पूरा आयोजन शांतिपूर्वक तरीके से हो रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री ने चर्च नेताओं को सुरक्षा का पूरा भरोसा दिलाया है इस सबके बावजूद कुछ लोग डर का महौल बना रहे है। इसके पीछे एक सोची समझी रणनीति काम कर रही है ताकि ज्यादा लोग इसमें भाग न लें।

दरअसल अब लड़ाई आदिवासी ओर वंचितों को अपने-अपने पाले में रखने की है। ”माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ” की काट भी चर्च मिशनरियों ने ढूढ निकाली है। इस आयोजन के दौरान मिशनरी मंडला से 70 कि.मी. दूर ढिढोरी (जिला ढिढोरी) में एक विशाल स्वास्थ्य कैंप का आयोजन कर रहे है। सेंट इलाईस कालेज, जबलपुर की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। मंडला की तरह ढिढोरी का भी खास महत्व है यह छतीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है। मिशनरियों को आशा है कि इस कैंप के चलते हिन्दू आयोजन में आदिवासियों की भागीदारी कम रहेगी।

चर्च नेता ”माँ नर्मादा सामाजिक कुंभ” पर राज्य सरकार द्वारा खर्च किये जाने वाले सौ करोड़ रुपयों पर भी स्वाल उठा रहे है। अन्नद बर्नार्ड एवं ईसाई विचारक एवं चर्च रेस्टोरेशन के संपादक पी.बी. लोमियो इसे चर्च की सरकार विरोधी मानसिकता बताते है। बनार्ड के मुताबिक यह पैसा हिन्दू संगठनों की जेब में नही गया है बल्कि इस पैसे से रोड, हैंडपंप, और दूसरी बुनयादी सुविधाए प्रशासन द्वारा जुटाई जा रही है और वह स्थानीय लोगो के लिए है। लोमियो कहते है कि प्रभु खीस्त ज्यंती 2000 में वाजपेयी सरकार ने कई सौ करोड़ रुपये अलाट किये थे इसलिए ऐसी बातें केवल सप्रदायों के बीच दूरी बढ़ाने वाली है अत: इनसे बचा जाना चाहिए।

समाज को जोड़ने और उसमें समरसता घोलने का दयित्व सभी का है हिन्दू समाज के साधु संतों को अपने समाज में फैली बुराइयों के विरुद्ध यहा से संघर्ष का बिगुल बजाने की जरुरत है वहीं चर्च को भी धर्मांतरण के चक्रव्यूह से निकलकर अपने ही घर में दयानीय अवस्था में हाशिए पर खड़े करोड़ों धर्मातंरितों की सुध लेनी चाहिए और आशा कि जानी चाहिए कि मंडला और ढिढोरी से सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजेगा।

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