संघ प्रमुख का दूरदर्शन पर आना

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हमारे नीति वाक्‍यों में कहा गया है कि आलोचना के लिए ज्ञान होना अत्‍यधिक आवश्‍यक है और निंदा के लिए सिर्फ शब्दकोश ही काफी होता है। आलोचना करने वालों के पास समाधान का सर्वथा अभाव ही होता है इसीलिए आलोचना किसी की भी की जा सकती है मगर समाधान करना हर किसी के बस की बात नहीं।
हमेशा की तरह कल भी विजयदशमी पर आरएसएस का 89वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का दूरदर्शन पर एक घंटे तक भाषण दिखाया गया। इसके बाद से विरोधी पार्टियों द्वारा सरकारी प्रसारक माध्‍यम का दुरुपयोग किये जाने संबंधी धड़ाधड़ बयान आने लगे और लगभग सभी प्राइवेट चैनलों के प्राइम टाइम में पैनलिस्‍ट बहस करते रहे कि सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए।
उनका विरोध करना बनता भी है क्‍योंकि पहली बार रटी-रटाई तर्ज़ से परे राष्‍ट्रीय चेतना और मुद्दों की बात की गई। राजनीति से परे पहली बार सामाजिक व राष्‍ट्रीय मुद्दों पर दूरदर्शन से कुछ बोला गया, यह अनपेक्षित था। हजम करना आसान भी नहीं होगा, लीक पर चलने वालों को।
यूं तो भारतीय जनता पार्टी के सत्‍ता में आने के बाद से ही राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ का विरोधियों के निशाने पर आ जाना लाजिमी था परंतु हर बात का विरोध सिर्फ इसलिए किया जाये कि विरोध करना जरूरी है, तो यह ठीक नहीं होगा।
हां, भागवत का विरोध किया जा सकता है कि वो राष्‍ट्रीय प्रसारण के माध्‍यम दूरदर्शन पर एक घंटे तक दिखाये गये, मगर गौवध और मांस के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध, चीन के उत्पाद खरीदना बंद करने की अपील या केरल और तमिलनाडु में जिहादी गतिविधियां बढ़ने की बात पर हमें देशहित में उनसे सहमत होना चाहिए। मोहन भागवत की इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में बांग्लादेश से अवैध रुप से आने वाले लोगों के कारण हिन्दू समाज का जीवन प्रभावित हो रहा है।
दरअसल अभी तक हम समाजवादी सोच को ही प्रगति के लिए आदर्श मानते रहे मगर ये भूल गये कि ये समाजवाद दरअसल स्‍वयं में ही अधूरी व्‍याख्‍या के साथ खड़ा है जिसमें परिवार की बात तो की जाती है मगर उसमें अनुशासन गायब हो चुका है। जहां कोई नियामक नहीं है, कोई मुखिया नहीं है, ऐसी समाजवादी सोच ‘सबको सब-कुछ देने’ का कोई प्रॉपर रोडमैप नहीं दिखा पाई नतीजा ये हुआ कि समाज भी नहीं बंधा और राजनैतिक अनुशासन भी छिन्‍न भिन्‍न हो गया।
राष्‍ट्र की बात करने वाले को हम अपने-अपने चश्‍मे से देखने के इतने आदी हो चुके हैं कि अच्‍छी बात को भी संशय के साथ देखा जाता है।
देश के हर नागरिक को अपनी स्‍वतंत्र सोच रखने का अधिकार है मगर इस स्‍वतंत्र सोच ने अब तक देश की सामाजिक व सांस्‍कृतिक ढांचे को किस स्‍तर तक ध्‍वस्‍त कर दिया है, यह भी तो सोचा जाना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत मजबूत बनकर उभर रहा है। दुनिया को भारत की जरूरत है। लोगों के दिलों में उम्मीद की नई किरण जगी है। ऐसे में हमें छोटी छोटी बातों को छोड़ वृहद सोच व लक्ष्‍य रखने चाहिए। कोई दूरदर्शन पर बोले या कतई मुंह सीं कर बैठा रहे, बात तो सोच और लक्ष्‍य की है। यदि बोलने वाले का लक्ष्‍य देशहित है तो उसकी आलोचना में कोई दम नहीं रह जाता।
जो भी हो… जिस दूरदर्शन से आम और यहां तक कि खासजन भी दूर हो चुके थे, उस दूरदर्शन पर संघ प्रमुख के भाषण को लेकर की जा रही तीखी प्रतिक्रिया ने एक बात तो साबित कर ही दी कि मोदी की करिश्‍माई कार्यप्रणाली से दूरदर्शन भी अछूता नहीं रहा और इसीलिए दूरदर्शन का प्रसारण भी अब पैनल डिस्‍कशन का विषय बन गया है।
संघ प्रमुख के भाषण पर लकीर पीटने वाले शायद इस बात से भी परेशान होंगे कि मोदी अपने एक और मकसद में सफल हो गये।

– अलकनंदा सिंह

4 COMMENTS

  1. कितना सत्य कहा श्री अलकनंदा सिंह जी ने कि “आलोचना के लिए ज्ञान होना अत्यधिक आवश्यक है और निंदा के लिए सिर्फ शब्दकोश”!

    यह बात इन आलोचक महानुभावों पर कितनी खरी उतरती है!

    क्या दूरदर्शन पर इन लोगों के चहीते, मनपसन्द्, रटी रटाई बातें बोलने वाले – बोल सकने वाले – ही बोल सकते हैं?

    दुसहरे के शुभावसर पर किसी हिन्दु संस्था तथा राष्ट्रीय हिन्दु संस्था का अधिकारी यदि नहीं बोलेगा तो और कौन बोलेगा? जो दुसहरे को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय महोत्सव के रूप में मनाते हैं — और मनाते चले आरहे हैं–; उस अवसर पर यदि वे नहीं बोलेंगे तो कौन बोलेगा?

    इस पर आपत्ति उठाने वाले महानुभाव सज्जनों से हम पूछना चाहेंगे कि यदि एक राष्ट्रीय हिन्दु संस्था के प्रमुख का उस अवसर पर दूरदर्शन से बोलना अनुचित एवं आपत्तिजनक था; तो उसी दिन और उसी अवसर पर दिल्ली रामलीला मैदान में मिसिज सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी द्वारा — जो हिन्दु भी नहीं और राम रामायण के प्रति निष्ठ भी नहीं विद्विष्ट हैं — उनके द्वारा रावण कुम्भकरण मेघनाद पर तीर कमान से प्रहार करके उनका वध करते दिखाया जाना, क्या न्याय्य, युक्ति-सङ्गत एवं धर्म-सङ्गत था? और किसी भी प्रकार कहा जा सकता है?

    इस पर तो इन महानुभावों में से किसी ने भी कोई आपत्ति उठाई नहीं और श्री मोहन भागवत जी के दूरदर्शन पर बोलने पर धरित्री आकाश एक किय जा रहे हैं । क्यों? कौनसा महाप्राध हो गया इसमें!

    डा० रणजीत सिंह (यू०के)

  2. अलकनंदा जी,मैंने श्री मोहन भागवत का दूर दर्शन द्वारा प्रसारित भाषण नहीं सुना,पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बहुत समय तक करीब रहने के कारण मुझे यह समझने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती कि उन्होंने क्या होगा? पर मैं इस तरह से श्री मोहन भागवत के दूर दर्शन पर आने का स्वागत करता हूँ.अगर यही अवसर लिसी अन्य कोई भी मिले,जो दूर दर्शन पर आकर अपने ढंग से ही सही राष्ट्र हित में बोले,तो उनका भी स्वागत होना चाहिए.मुझे एतराज है ,भाषण के उन अंशों से जिसमे घुसपैठियों से केवल तथाकथित हिन्दुओं के भविष्य को प्रभावित होने की बात कही गयी है..अवैध तरीके से भारत में प्रवेश करने वाला किसी भी भारतीय के लिए खतरनाक है,पूरे राष्ट्र को यह समझना होगा.तभी हम सच्चे और एकजुट भारतीय सिद्ध होंगे.अगर हम हिन्दू मुस्लिम ,सिख,ईसाई,बौद्ध ,जैन इत्यादि सम्प्रदायों में भारत को विभक्त करेंगे,तो असल में राष्ट्र भक्त के मुखौटे में हम राष्ट्र द्रोही का काम करेंगे.

    • आर। आर सिंह जी ,

      भगवत जी ने बांग्लादेशी घुस्पेठियोंकी की बात कही है ये आप भी जानते हो तो फिर क्यों अपनी केजरी ब्रांड एंटी रेशनल और एंटी नेशनल गन्दगी फैला रहे हो !!!!!!

      • श्री नरेंद्र सिंह,गनीमत है,आपने देवनागरी लिपि में हिंदी लिखना सीख लिया या आरम्भ कर दिया अब आप यह भी सीख लीजिये कि हिंदी में ‘आपभी जानते हो’,नहीं होता है ,बल्कि ‘आपभी जानते हैं’ होता है अब यह भी जान लीजिये कि मुझे किसी अन्य के,चाहे वह केजरीवाल ही क्यों न हो ,ब्रैंड को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं वाही लिखता हूँ या बोलता हूँ,जो मुझे उचित लगता है।फिर बात आती है रेशनल और नेशनल पर. सुश्री अलकनंदा ने लिखा है,”मोहन भागवत की इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में बांग्लादेश से अवैध रुप से आने वाले लोगों के कारण हिन्दू समाज का जीवन प्रभावित हो रहा है।” मैंने लिखा है,”मुझे एतराज है ,भाषण के उन अंशों से जिसमे घुसपैठियों से केवल तथाकथित हिन्दुओं के भविष्य को प्रभावित होने की बात कही गयी है..अवैध तरीके से भारत में प्रवेश करने वाला किसी भी भारतीय के लिए खतरनाक है,”
        क्या आप यह समझाने का कष्ट करेंगे कि इसमें मेरा कथन ज्यादा रेशनल और नेशनल है या श्री मोहन भागवत का?
        आपने लिखा है,”भगवत जी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कही है ये आप भी जानते हो” मैंने जो टिप्पणी की है,उसके किस अंश से आपको पता चला कि मैंने किसी अन्य घुसपैठिये के बारे में बात की है?
        अब एक प्रश्न आपसे,”क्या बँगला देशिये घुसपैठियों के आने से केवल हिन्दू समाज का जीवन प्रभावित हो रहा है,किसी अन्य भारतीय का नहीं?”

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