भारतीय स्वतन्त्रता का मूल है अक्षुण्ण एकता


डॉ.शंकर सुवन सिंह

भारत में स्वतंत्रता दिवस को बहुत अहम दिन माना जाता है। 200 साल की लम्बी लड़ाई के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश हुकूमत से पूर्ण रूप से आजादी मिली। स्वतंत्रता दिवस,1947 में ब्रिटिश शासन के अंत और स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र की स्थापना का प्रतीक है। यह दो देशों,भारत और पाकिस्तान में उपमहाद्वीप के विभाजन की सालगिरह का प्रतीक है,जो 14 से 15 अगस्त,1947 की मध्यरात्रि को हुआ था। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त मध्यरात्रि को’ट्रिस्ट वीद डेस्टिनी’भाषण के साथ भारत की आजादी की घोषणा की। तब से हर साल 15 अगस्त को भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है,जबकि पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को मनाया जाता है। 15 अगस्त 1947 में भारत आजाद हुआ था। इसलिए भारत इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है। यह भारत का राष्ट्रीय दिवस है। स्वतन्त्रता दिवस से सभी भारतीयों की भावनाएं जुडी हुई हैं।

अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना पहला चौकी 1619 ई. में सूरत के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थापित किया। उस शताब्दी के अंत तक,ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास,बॉम्बे और कलकत्ता में तीन और स्थायी व्यापारिक स्टेशन खोले थे। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक,ब्रिटिशों ने इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार जारी रखा,भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश के वर्तमान समय के अधिकांश हिस्सों पर उनका नियंत्रण था। भारत में ब्रिटिश शासन 1757 ई. में शुरू हुआ, जब प्लासी के युद्ध में ब्रिटिश जीत के बाद,अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश पर नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर 100 वर्षों तक शासन किया। इसे 1857-58 में भारतीय विद्रोह का सामना करना पड़ा। प्रथम विश्व युद्ध (28 जुलाई 1914–11 नवंबर 1918) के दौरान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ। इसका नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी ने किया था। महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के शांतिपूर्ण और अहिंसक अंत की वकालत की। पूरे भारत में स्वतंत्रता दिवस को,झंडा उठाने वाले समारोहों,कवायदों और भारतीय राष्ट्रगान के गायन के साथ चिह्नित किया जाता है। पुरानी दिल्ली के लाल किले के ऐतिहासिक स्मारक में प्रधानमंत्री के झंडा चढ़ाने के समारोह में भाग लेने के बाद,एक परेड सशस्त्र बलों और पुलिस के सदस्यों के साथ होती है। प्रधानमंत्री तब देश को एक टेलिविज़न के माध्यम से एड्रेस देते हैं। यह एड्रेस  भारत की प्रमुख उपलब्धियों को बताता है और भविष्य की चुनौतियों और लक्ष्यों को रेखांकित करता है। 15 अगस्त  को राजपत्रित अवकाश  रखा जाता है। भारत में वर्ष 2021 में 75 वाँ स्वतन्त्रता दिवस मनाया जा रहा है। स्वाधीनता के 74 वर्ष पूरे हो गए। इस बार का स्वतंत्रता दिवस सार्वजनिक भागीदारी पर आधारित है। सत्र 2021 ई. का स्वतन्त्रता दिवस पांच विषयों को लेकर मनाया जाएगा। ये पांच विषय हैं- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय दृष्टिकोण (विचार),भारत की उपलब्धियां,कार्य एवं दृढ संकल्प। स्वतन्त्रता के बाद व्यवस्था क्षीण होती गई। स्वतन्त्रता जैसे शब्द,शब्द तक ही सीमित रह गए। स्वतन्त्रता का अनुपालन सही मायने में नहीं हो सका। सत्य और अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में आरक्षण को लेकर राजनीति न होती। भ्रष्ट प्रशासन,शिक्षा से लेकर न्याय तक का राजनैतिककरण होना,लोकतंत्रात्मक प्रणाली का जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया। भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं ने लोकतंत्र का आधार,आरक्षण को बना दिया है। 25/08/1949 ई में संविधान सभा में अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र 10 वर्ष तक सिमित रखने के प्रस्ताव  पर एस.नागप्पा व बी.आई.मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आई। डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा मैं नहीं समझता कि हमे इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए। यदि 10 वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाए ढूढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा। आरक्षण वादी लोग,डॉ.अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करता। आरक्षण वादी लोगों ने राष्ट्र का संतुलन ख़राब कर दिया है। अतएव शिक्षित व योग्य व्यक्ति को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। इस प्रकार की आरक्षित कोटे की शिक्षा विकास कि उपलब्धि नहीं है। यह विकास के नाम पर अयोग्य लोगों को शरण देने वाली बात है। किसी भी देश के विकास में आरक्षण अभिशाप है। ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकास पर हावी है। अखंड(अक्षुण्ण) भारत में,आरक्षण दीमक का काम कर रहा है। आरक्षण,भारत को अखंड (अक्षुण्ण) भारत बनाने की दिशा में हानिकारक सिद्ध हो रहा है। आरक्षण समुदाय की स्वतन्त्रता में बाधक है। बिना अखण्डता के स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता है। अतएव आरक्षण लोगों की स्वतन्त्रता में बाधक है। अखंड भारत के लिए आरक्षणमुक्त भारत होंना जरुरी है। आरक्षण,अखंडता  की निशानी नहीं है। आरक्षण,समाज को खंडित करने की निशानी है। आरक्षण,विकलांगता की निशानी है। आरक्षण किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता में बाधक है। स्वतन्त्रता चार उपादानों में निहित है – 1. स्वदेशी,2. स्वाधीन,3. स्वावलम्बी,4. स्वाभिमानी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का”आत्मनिर्भर भारत” का सपना भारत को स्वदेशी बनाने में अहम् भूमिका निभाएगा।  मरने से पहले किसी का ऋण लेकर न मरना यह वाक्य कहने वाला भारत जैसा देश,अरबों रुपयों के विदेशी कर्ज का ऋणी है। अल्प परिमाण में जो स्वाभिमान है,वह सिर्फ भारतीय इतिहासकारों ने बचा रखा है। अतः स्वतन्त्रता  को पुनः जीवित करने के लिए स्वदेशिता, स्वभिमानिता,स्वाधीनता एवं स्वावलम्बन को अपने निजी जीवन में उतारना होगा। अक्षुण्ण भारत (अखंड भारत) स्वदेशी,स्वावलम्बन,और स्वाधीनता को बल प्रदान करता है। जब भारत अखंड/अक्षुण्ण होगा तभी वो अपनी पुरानी संस्कृति व सभ्यता को बचा पाएगा। किसी भी देश की संस्कृति व सभ्यता वहां लोगों को  आत्मबल प्रदान करती है। भारत की संस्कृति बहुआयामी है। जैसा की उपनिषद में कहा गया है- “नायं आत्मा बल हीनेंन लभ्यः” अर्थात यह आत्मा बलहीनो को नहीं प्राप्त होती है। कहने का तातपर्य है कि बिना आत्मबल के सफलता अर्जित नहीं  की जा सकती  है। यही आत्मबल राष्ट्र के विकास में अहम् भूमिका निभाता है। भारत के कुछ राज्यों को लेकर आए दिन सीमा विवाद  तूल पकड़ लेता है। अभी हाल ही में असम और मिजोरम के बीच 49 साल से चल रहे सीमा विवाद ने को उग्र रूप धारण कर लिया। यह दो राज्यों के बीच का सीमा विवाद ना होकर भारत और चीन के बीच का सीमा विवाद बन गया है। भारत और चीन के बीच झड़पों में दशकों से बन्दूक और गोला बारूद का इस्तमाल नहीं किया जाता।  असम और मिजोरम का सीमा विवाद इतना भयावह हो गया था कि वो बंदूकें जिन्हें पुलिस को आतंकवादियों और अपराधियों से लड़ने के लिए दिए जाते हैं,वह एक दूसरे पर दाग दिए गए। वह हथियार जो कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए दिया जाता है,उसका इस्तमाल कानून तोड़ने के लिए किया गया। जो बेहद शर्मनाक और निन्दनीय था। जिसमे काफी पुलिस वाले मारे गए। 164.6 किलोमीटर लंबी अंतरराज्‍यीय सीमा मिजोरम और असम को सीमांकित करती है। मिजोरम के तीन जिले आइजल,ममित और कोलासिब असम के तीन जिलों करीमगंज,कछार और हैलाकांडी के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं। मिजोरम का दावा है कि उसके लगभग 509 वर्गमील इलाके पर असम का कब्‍जा है। भारत के पूर्वोत्तर  में सिर्फ असम और मिजोरम के बीच ही सीमा विवाद नहीं है। असम का सीमा विवाद नागालैंड,मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के साथ भी है। कारण साफ है- अंग्रेजों के ज़माने में सिक्किम को छोड़ कर पूरा पूर्वोत्तर सिर्फ असम राज्य के नाम से ही जाना जाता था। त्रिपुरा,मिजोरम,मेघालय,मणिपुर और नागालैंड का गठन अलग-अलग समय पर असम को विभाजित करके किया गया। अगर पूर्वोत्तर के सीमा विवाद की जड़ तक जाएं,तो इसकी जिम्मेदारी ब्रिटिश हुकूमत और स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी की सरकार की है। अंग्रेजों ने ना सिर्फ भारत और तिब्बत के बीच विवादित नक्शा बनाया जिसके फलस्वरूप आज भी भारत और चीन के संबंधों के कटुता है। बल्कि पूर्वोत्तर के कई जंगली हिस्सों का जहां वह जा नहीं सके ठीक से नक्शा नहीं बनाया गया। आज़ादी के बाद नेहरु सरकार ने राज्य पुनर्गठन के लिए एक आयोग का गठन किया। जिसने अंग्रेजों के गलत और अनमने ढंग से बनाये नक्शों के आधार पर ही नये राज्यों का गठन कर दिया। विवाद खत्म नहीं हुआ बल्कि पूर्वोत्तर में आतंकवाद की शुरुआत ही इसी मुद्दे के आधार पर हुई। कांग्रेस सरकार इन विवादों को सुलझाने की जगह उस पर लीपापोती का काम ही करती रही। विभिन्न राज्यों के बीच सीमा का विवाद सिर्फ पूर्वोत्तर तक ही सीमित नहीं है। महाराष्ट्र और कर्नाटक,कर्नाटक और केरल,केरल और आंध्रप्रदेश,पंजाब और हरियाणा के बीच भी विवाद है। यह अलग बात है कि असम और मिजोरम के बीच युद्ध जैसे हिंसक झड़पें कहीं और नहीं हुई। सच्चाई यह है कि आज तक किन्हीं भी दो राज्यों के बीच का सीमा विवाद सुलझा नहीं है। फ़िलहाल असम और मिजोरम के बीच का सीमा विवाद सिर्फ थम गया है,ख़त्म नहीं हुआ है। चूंकि केंद्र और पूरे पूर्वोत्तर में बीजेपी या एनडीए के तहत बीजेपी के सहयोगी दलों की सरकार है। केंद्र सरकार इस विवाद पर सिर्फ टालम टोल (ढुलमुल रवैया) करने में ही सफल हुई है। राज्यों का सीमा विवाद एक ऐसा ज्वालामुखी है जो भविष्य में कभी भी फट सकता है। राज्यों के सीमा विवाद का युद्ध में तब्दील हो जाना अच्छे संकेत नहीं हैं। यही स्थिति रही तो भारत में गृह युद्ध जैसा माहौल हो जाएगा। तब वो दिन दूर नहीं जब विदेशी आक्रांता फिर से भारत को गुलाम बना लेंगे। अब वह समय आ गया है कि राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक नए आयोग को गठित किया जाए। आज की ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण और राज्यों की सीमाओं का विवाद भारत की स्वतन्त्रता पर हावी हो गए हैं। अभी भारत को सम्पूर्ण स्वतन्त्रता की आवश्यकता हैं। हमें भारत की अक्षुण्ण एकता को बनाए रखना होगा। भारत की अविभाजित एकता ने ही भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत को अखंड भारत बनाने के लिए सभी सामाजिक कुरीतियों को ख़त्म करना होगा। अखंड भारत ही आत्मनिर्भरता की निशानी है। यही अखंड भारत,स्वतन्त्रता का असली परिचायक होगा। अतएव हम कह सकते हैं कि स्वतन्त्रता,अक्षुण्ण एकता की मिसाल है।

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