बुधवार को जब अधिकांश देशवासी निद्रा में लीन थे तब हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक एक ऐसी उपलब्धि के साक्षी बन रहे थे जिसने भारत को चीन और जापान से भी आगे की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है| जी हां, हमारे मंगलयान ‘मार्स आर्बिटर’ को धरती से ६६.६ करोड़ किलोमीटर दूर स्थित मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित करने की अंतिम जद्दोजहद आखिरकार रंग ला ही गई| अपने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला भारत एकलौता देश है| देखा जाए तो मंगलयान मंगल की दहलीज पर तो सोमवार को ही पहुंच चुका था| इस यान के मुख्य इंजन को चार सेकंड के लिए चालू करके भी देख लिया गया था| यही इस अभियान का सबसे ज्यादा संवेदनशील कार्य था, जो कि सकुशल संपन्न हो चुका था| संवेदनशील इसलिए क्योंकि मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद यान के इसी इंजन को ही काम करना है| यानी, यह इंजन चालू नहीं होता, तो मिशन विफल हो जाता, मगर इंजन चालू हुआ और सही मायनों में मंगलयान का मंगल मिशन उसी दिन इतिहास रच गया था| भारत इस कदम के साथ ही मंगल ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाला विश्व का चौथा देश भी बन गया है| अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ जैसे भारत से अति विकसित देश भी अपने पहले प्रयास में मंगल को नहीं भेद पाए थे| भारत की कामयाबी के बाद अमेरिका और चीन, दोनों का एक स्वर में यह कहना कि भारत की इस बड़ी कामयाबी ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है, अतिशयोक्ति नहीं है| अमेरिकी पत्रिका ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने लिखा है कि दुनिया को मानकर चलना चाहिए कि अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत अब चीन और जापान से आगे निकल गया है| वहीं चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि यह कामयाबी भारत की अंतरिक्ष में अब तक की सबसे ऊंची छलांग है| दरअसल तीन वर्ष पहले चीन का ऐसा ही अभियान विफल हो गया था और अमेरिका ने भी कई प्रयास किए, तब जाकर उसे सफलता मिली है| इस मायने में हम अब एक शक्ति, एक प्रेरणा बनकर उभरे हैं जिसका अनुसरण पूरा विश्व करेगा| मंगलयान को कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया सुबह ४:१७ बजे शुरू हुई| ७.१७ बजे ४४० न्यूटन की लिक्विड अपोजी मोटर और आठ छोटे तरल इंजन २४ मिनट के लिए स्टार्ट हुए| यह यान की गति को २२.१ किमी प्रति सेकंड से कम कर ४.४ किमी प्रति सेकेंड तक ले आए जिससे यान मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर गया| इस पूरी प्रक्रिया में २४९.५ किलो ईधन का इस्तेमाल हुआ| सुबह ७:५८ पर प्रक्रिया पूरी हो गई थी किन्तु ग्रहण के रास्ते में होने के कारण मिशन पूरा होने की पुष्टि सुबह ८:०१ बजे हुई| देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने| वैज्ञानिकों की सफलता में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले प्रधानमंत्री का यह कहना कि जिस तरह क्रिकेट टीम के विजेता बनने पर पूरा देश ख़ुशी से झूम उठता है, वैज्ञानिकों के योगदान पर भी देश को गर्व होना चाहिए और देशवासियों को खुशियां मनानी चाहिए, इस अभियान की सफलता से जुडी ख़ुशी जाहिर करता है| प्रधानमंत्री की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों का भी उत्साहवर्धन किया|
मंगलयान इस सफलता इस मायने में भी ख़ास है कि संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल ४५० करोड़ रुपए या छह करोड़ ७० लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है| यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने १५ महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह ३०० दिन में ६७ करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंचा| यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है| श्रीहरिकोटा में इसके प्रक्षेपण के समय मोदी ने कहा था कि मंगल मिशन का कुल खर्च विदेश में बनने वाली किसी भी फिल्म के बजट से कम है, यह दिखाता है कि हमारे वैज्ञानिक किसी भी परिस्थिति में अपना सर्वश्रेष्ठ देने को तत्पर हैं| उन्हें बस ज़रूरी संसाधन मुहैया करवा दें, वे इतिहास पर इतिहास रचते जाएंगे| यह भी गौर करने की बात है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन ‘मेवन’ की लागत ‘मार्स आर्बिटर’ के मुकाबले लगभग १० अधिक रही है| मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान ‘क्यूरियॉसिटी’ की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी| इस सफलता से देखा जाए तो अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है| मंगल मिशन के सफलता के करीब पहुंचने के बाद भारत अब चांद पर रोबोट उतारने और अंतरिक्ष में मानव भेजने के कार्यक्रमों पर तेजी से आगे बढ़ेगा| मिशन मंगल में इसरो ने अभी तक अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं का शानदार प्रदर्शन किया है| माना जा रहा है कि इसके बाद इसरो के लिए चंद्रयान-२ और अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना ज्यादा कठिन लक्ष्य नहीं रह गया है| मंगलयान की सफलता से अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत का आत्मविश्वास निश्चित रूप से बढ़ा है| सूत्रों के अनुसार अब अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की योजना पर अमल की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे| इसके लिए इसरो ने पहले ही जरूरी अध्ययन कर लिए है| २०१७ के बाद इस मिशन पर कार्य शुरू होगा और २०२० में इसरो अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजेगा| पहले चरण में करीब ५०० किलोमीटर की ही दूरी तक धरती की निचली कक्षा में मानव मिशन भेजा जाएगा और उसके बाद यह दायरा बढ़ाया जाएगा| इस योजना पर करीब १२ हजार करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान व्यक्त किया गया है| इसके साथ ही इसरो सूर्य के इर्द-गिर्द भी अपना एक उपग्रह आदित्य-१ भेजने की योजना बना रहा है| इसका मकसद सौर ऊर्जा और सौर हवाओं पर अध्ययन करना है| इस मिशन में भी अब तेजी आएगी| जहां तक मंगलयान की बात है तो यह मंगल पर जीवन की संभावनाओं को खोजेगा| यान में लगा मीथेन सेंसर फॉर मार्स उपकरण विशेष रूप से मीथेन गैस का पता लगाने के लिए है| मीथेन जो कार्बन के एक और हाइड्रोजन के चार अणुओं का मिश्रण है, उसका अरबवां हिस्सा भी यदि मंगल के वातावरण में मौजूद हुआ तो यह उपकरण उसका पता लगा लेगा| वहीं मार्स एक्सोफेरिक कंपोजिसन एक्सोप्लोरर नाम का उपकरण यह पता लगाएगा कि मंगल के ऊपरी वायुमंडल की प्राकृतिक संरचना कैसी है? यदि वहां हाइड्रोजन, मीथेन आदि नहीं भी है तो क्या है? मूलतः यह मंगल पर मौजूद किसी भी प्राकृतिक संघटकों का पता लगाने का कार्य करेगा| यानी, हमारी खोज से एक नई दुनिया के बारे में विश्व बिरादरी जानेगी| इस सफलता और गर्व को महसूस करवाने के लिए हमारे वैज्ञानिक असीम श्रद्धा के पात्र हैं|